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अब जिस परमाणु से इलेक्ट्रॉन निकल गए
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उसमें प्रोटोनों की मात्रा इलेक्ट्रॉनों से अधिक हो जाती है
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अतः उस परमाणु में धन आवेश हो जाता है
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इसी तरह जिस परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रोटोनों से
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अधिक हो जाती है उसमें ॠण आवेश हो जाता है
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इन आवेश वाले परमाणुओं को आयन कहते हैं
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पानी की बूँदों को ऊपर की ओर ले जाती है
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अब धन आवेश वाले आयन हल्के होने की वजह से ऊपर उठते हैं और
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ॠण आवेश वाले आयन धरती की ओर बादल के निचले हिस्से की ओर जाते हैं
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बादल के निचले हिस्से वाले ॠण आयन धरती की सतह के
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धन आयनों को आकर्षित करते हैं
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यह आयन एक दूसरे की ओर आते हैं ओर इसी से बिजली पैदा होती है
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अब यह गर्म वायु बहुत तेज़ी से फैलती है बिल्कुल बम के धमाके की तरह और
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जब बिजली की चमक समाप्त हो जाती है
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तो उतनी ही रफ्तार से सिकुड़ती है
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एक गुब्बारा
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एक दीवार
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गुब्बारे को फुलाएँ और ऊन या रेशम को गुब्बारे पर रगड़ें
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अब गुब्बारे को दीवार पर रखें ओर देखें कि
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जैसे चुम्बक के साथ लोहे का टुकड़ा
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ऐसा क्यों होता है
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गुब्बारे पर ऊन रगड़ने से
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गुब्बारे में इलेक्ट्रॉनों की मात्रा अधिक होने से उसमें
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ॠण आवेश हो जाता है
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अब जब तुम इस गुब्बारे को दीवार पर लगाते हो
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तो गुब्बारे के ॠण आयन दीवार के धन आयनों की ओर आकर्षित होते हैं और
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गुब्बारा दीवार पर चिपक जाता है
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उसकी पसंद या नापसंदगी बड़ी ज़बरदस्त थी
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जो काम वह नहीं करना चाहता वह कोई भी उससे करवा नहीं सकता था और
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न ही कोई उसे अपने मन का काम करने से रोक सकता था
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मोरू एक पहेली जैसा था
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पेड़ों पर चढ़कर कच्चे आम तोड़ना मोरू को अच्छा लगता था
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वह टहनियों पर रेंगते हुए ऐसी कल्पना करता मानो किसी घने जंगल में
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उसे कीड़े पकड़ना भी पसंद था
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कहीं ऊपर तक उड़ाता जैसे वह एक चमकता हुआ पक्षी हो
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जो सूरज तक पहुँचने की कोशिश कर रहा हो
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मोरू कल्पना करता कि वह एकएक कर के सीढ़ी चढ़ रहा है
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कभीकभी तेज़ी से दो कभीकभी तीनचार सीढ़ी एक साथ चढ़ा जा रहा है
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जब वह थक जाता तो खुद को सीढ़ियों के जंगले पर फिसलते हुए देखता और
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सब अंक उसकी ओर हाथ हिला रहे होते
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दोपहर के खाने में अक्सर सबके आधे पेट रह जाने पर ख़त्म हो जाने वाले चावल से नहीं उन दोस्तों से नहीं जिन्हें खेल जमते ही
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घर जाना होता अंक हमेशा मोरू के पास रहते
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कभी न ख़त्म होने वाले अंक कि जब चाहे उनके साथ बाज़ीगरी करो
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एक साथ मिलाओ या अलग कर दो
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स्कूल के अहाते के अन्दर खेल का मैदान उसे अच्छा लगता था
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पर उसे कक्षा में जाना अच्छा नहीं लगता था
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उसे शिक्षक अच्छे नहीं लगते थे
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बच्चे सवाल नहीं पूछ सकते थे वे इधरउधर घूम नहीं सकते थे और
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शिक्षक के तेवर चढ़े रहते थे
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मोरू को लगता था कि शिक्षक को बच्चे बिलकुल अच्छे नहीं लगते थे
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शायद उन्हें शिक्षक होना भी पसंद नहीं था और
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स्कूल आना भी अच्छा नहीं लगता था
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यूँ बच्चे भी शिक्षक को पसंद नहीं करते थे
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उसके बाद ऊँची आवाज़ में सब बच्चों को अपनी स्लेटों पर
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उसे उतारने का आदेश देते
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फिर वह बाहर चले जाते
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अगर लड़के बोर्ड पर लिखी चीज़ों की नकल अच्छे से
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करते तो वह उन पर नज़र डाल लेते
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अगर वह ऐसा नहीं कर पाते तो वह नाराज़ हो जाते
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जब वह गुस्से में होते तो बच्चों को बुरा भला कहते
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और जब गुस्सा और बढ़ जाता तो वह उन्हें मारते थे
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एक दिन शिक्षक ने कुछ सवाल बोर्ड पर लिखे
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बड़े सारे और सब एक जैसे
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मोरू ने सवाल नहीं किये
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उसका सवाल करने का मन नहीं कर रहा था और
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उसके पास स्लेट भी नहीं थी
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उसकी स्लेट टूट गई थी और
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उसकी माँ के पास नई स्लेट खरीदने के पैसे नहीं थे
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उसने बाहर पेड़ को देखा और उसे उसकी पत्तियाँ बिलकुल सही लगीं
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सही पत्तियों की परछाईं भी सही होती है
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तो सारे छेद भरने में एक हज़ार से ज़्यादा रुपये लगेंगे
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मोरू शिक्षक ने कड़क के कहा तुम कुछ करते क्यों नहीं हो
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शिक्षक चिल्लाये मोरू को दिख रहा था कि वे गुस्से में थे
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मोरू बोला
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शिक्षक गुस्से में थे और उन्होंने अपनी छड़ी से मोरू को पीटा
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मोरू धीरे से बोला
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अगर स्लेट होती तो भी मैं सवाल नहीं करता क्योंकि मैं करना नहीं चाहता
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शिक्षक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया
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मोरू का गाल सुर्ख लाल हो गया
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वह खड़ा हुआ और कमरे से बाहर भागा
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अगले दिन सुबह माँ ने उसे स्कूल के समय पर जगाया
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पर मोरू नहीं उठा
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वह पतली सी चारपाई पर कस के आँखें मूँदे पड़ा रहा
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अगले दिन भी वही किस्सा था और उससे अगले दिन और उससे भी अगले दिन
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कोई भी मोरू को वापस स्कूल आने के लिये मना नहीं पाया
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एक हफ़्ता गुज़रा और फिर एक महीना
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माँ ने डाँटा भाई ने चिढ़ाया दादी ने मिन्नत की
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चाचा ने टॉफ़ी का वादा किया और
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सबने सोचा कि अब तक मोरू भूलभाल गया होगा और
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सबके साथ वह स्कूल चला जायेगा
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उसके जैसे और बच्चे जिन्होंने स्कूल छोड़ दिया था
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पुराने शिक्षक चले गये एक नये नौजवान शिक्षक उनकी जगह आये
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शिक्षक भी वहाँ से गुज़र रहे थे
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मोरू ने उन्हें देखा
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उन्होंने मोरू को देखा
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शिक्षक ने ऊपर देखा और हल्के से मुस्कराये
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मोरू झट दीवार से नीचे कूद कर भाग गया
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कुछ दिनों बाद शिक्षक फिर वहाँ से जा रहे थे
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थैला बहुत भारी था
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शिक्षक काफ़ी मुश्किल में थे
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