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WWE Payback में सिजेरो व शेमस की जोड़ी से जैफ हार्डी और मैट हार्डी की फाइट चल रही थी. मुकाबले के दौरान शेमस और सिजेरो दोनों एक दूसरे को टैग कर के अटैक करते दिखे. कई बार मैट ने जैफ को टैग कर दिया, लेकिन शेमस ने जैफ को रिंग के बाहर फेंक दिया. सिजेरो और शेमनस दोनों टैग करते करते जैफ पर अपरकट और शॉल्डर से अटैक करते दिखे. EXCLUSIVE: #RAW Tag Team Champion @JEFFHARDYBRAND receives medical attention for his broken tooth after #WWEPayback. pic.twitter.com/jYpjKnXhIN — WWE (@WWE) May 1, 2017 जोरदार मुकाबले में आखिरकार जैफ हार्डी और मैट हार्डी की जोड़ी ने स्वानटॉन बॉम्ब मारके सिजेरो और शेमस को हराकर अपने खिताब को बरकरा रखा। मैच खत्म होने के बाद रिंग से बाहर आने के बाद हार्डी बॉयज से फिर से शेमस और सिजेरो से हाथ मिलाया. इसके बाद शेमस और सिजेरो ने जैफ हार्डी को मुक्का जड़ दिया, इसी दौरान उनका दांत टूटा. EXCLUSIVE: #RAW Tag Team Champion @JEFFHARDYBRAND receives medical attention for his broken tooth after #WWEPayback. pic.twitter.com/jYpjKnXhIN
यह लेख है: संसद का आखिरी सत्र भारी शोर-शराबे के बीच शुरू हुआ। तेलंगाना मुद्दे पर जोरदार हंगामे के बीच दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित हुई। सत्र के पहले ही दिन लोकसभा तेलंगाना के समर्थकों और विरोधियों के भारी हंगामे के चलते कल तक स्थगित कर दी गई। लोकसभा में स्थगन से पहले भाजपा ने पूर्वोत्तर के छात्रों की असुरक्षा का मु्द्दा उठाया। अरुणाचल के छात्र नीडो तानियाम की मौत का मुद्दा लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने उठाया। उन्होंने सरकार से पूर्वोत्तर के छात्रों की हिफाजत का मामला उठाते हुए इन छात्रों के लिए ज्यादा हॉस्टल बनाने की मांग की। सुबह कार्यवाही शुरू होने पर अध्यक्ष मीरा कुमार ने सदन को पूर्व सदस्यों एमएम हाशिम, पीके घोष, दीपक कुमार और पीयूष तिर्की के निधन तथा लाटविया एवं रूस में त्रासदपूर्ण घटनाएं समेत आंध्र प्रदेश की रेल दुर्घटना, गोवा के पणजी में निर्माणाधीन इमारत गिरने, मुंबई में भगदड़, अंडमान-निकोबार में पर्यटक नाव डूबने की त्रासदी में जानमाल के नुकसान की जानकारी दी। सदन ने कुछ पल मौन रखकर इन घटनाओं में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद अध्यक्ष ने जैसे ही प्रश्नकाल चलाने को कहा, सीमांध्र क्षेत्र के कांग्रेस सदस्य और टीडीपी सदस्य एकीकृत आंध्र प्रदेश की मांग करते हुए अध्यक्ष के आसन के समीप आ गए। उनके हाथों में तख्तियां थीं, जिसे पर लिखा था, 'आंध्र प्रदेश को एकजुट रखें'। इसके साथ ही अकाली दल के सदस्य 1984 के सिख विरोधी दंगों का विषय उठाते हुए आसन के समीप आ गए। उनके हाथों में तख्तियों थीं, जिन पर मामले में तेजी से कार्रवाई सुनिश्चित करने की मांग की गई थी। कई सदस्य राष्ट्रीय राजधानी में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों की सुरक्षा के विषय को उठाते हुए कथित भेदभाव किए जाने का आरोप लगा रहे थे। कार्यवाही दोबारा शुरू होने पर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अरुणाचल प्रदेश के छात्र नीडो की हत्या के मामले को जोर-शोर से उठाया। इससे पूर्व, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सभी पक्षों से अपील की कि वे संसद में महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में सरकार का सहयोग करें। तेलंगाना मुद्दे पर संसद के बाधित होने की संभावना पर एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि यह दिक्कतें हैं। वहीं वित्तमंत्री पी चिंदबरम ने कहा कि संसद के इस सत्र में कोई विधेयक पारित होने पर शक है। संसद भवन परिसर में प्रधानमंत्री ने संवाददाताओं से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि संसद में सुचारू रूप से कामकाज होगा। तेलंगाना मुद्दे पर संसद के बाधित होने की आशंका पर एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा, कुछ दिक्कतें हैं। उम्मीद है कि सभी पक्ष अपने पूर्वाग्रह अलग रखकर विवेक दिखाएंगे और सदन के सहज कामकाज के लिए अनुकूल माहौल बनाएंगे। तेलंगाना, चॉपर डील, महंगाई जैसे मुद्दे एक बार फिर संसद में गूंज सकते हैं। भाजपा आज से शुरू हो रहे संसद सत्र में वीवीआइपी हेलीकॉप्टर घोटाले का मुद्दा उठाएगी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि एनडीए चाहती है कि संसद की कार्यवाही बिना बाधा के चले, लेकिन उसे संदेह है कि कांग्रेस और उनके साथी इसमें बाधा डालेंगे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वीवीआईपी चॉपर डील में इटली की कंपनी द्वारा सोनिया के करीबियों से संपर्क साधने के मुद्दे को वह जोर−शोर से उठाएंगे। वैसे, भारत सरकार 3600 करोड़ का कॉन्ट्रेक्ट पिछली जनवरी में रद्द कर चुकी है। उस डील के आधार पर भारत को तीन वीवीआईपी हेलीकॉप्टर मिल चुके हैं, जो अभी तक इस्तेमाल नहीं किए गए। संसद के आखिरी सत्र में सरकार अंतरिम बजट भी पेश करेगी। आखिरी सत्र में यूपीए सरकार राहुल गांधी के चुनिंदा बिलों को पास कराने की कोशिश में है। भ्रष्टाचार निरोधी बिल और महिला आरक्षण बिल समेत सरकार ने करीब 39 बिल संसद में पास कराने के लिए प्रस्तावित कर दिए हैं। वहीं समाजवादी पार्टी को छोड़कर अधिकतर दलों ने भ्रष्टाचार निरोधी बिल पर अपनी सहमति दे दी है। समाजवादी पार्टी का कहना है कि इस सत्र में सिर्फ वित्तीय विधेयकों को ही पारित कराया जाए। गौरतलब है कि 15वीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने में अब एक महीने से भी कम का वक्त बचा है। ऐसे में अगर 15वीं लोकसभा में हुए काम पर नजर डाली जाए तो आजादी के बाद से अब तक 15वीं लोकसभा में सबसे कम काम हुआ है। संसद के दोनों सदनों में कुल मिलाकर अभी 126 बिल पेंडिंग हैं। इनमें से 72 बिल लोकसभा में पेंडिंग हैं और 54 बिल राज्यसभा में पेंडिंग हैं। संसद के कामकाज के ये आंकड़े PRS Legislative Research द्वारा जारी किए गए हैं।
इंग्लैंड के स्पिनर मोंटी पनेसर नाइट क्लब में हुए विवाद के वहां के बाउंसरों पर पेशाब करने को लेकर खबरों में हैं. अब नई जानकारी ये आई है कि बाउंसरों पर पेशाब करने के बाद शराब के नशे में धुत्त मोंटी पनेसर भागकर एक पित्जा कॉर्नर में छिपने की कोशिश करने लगे. मगर पेशाब से भीगे बाउंसरों ने उन्हें वहां दबोच लिया और घसीटकर क्लब के बाहर ले आए. इस दौरान मोंटी फूट फूटकर रो रहे थे. कुछ लड़कियों ने क्लब को शिकायत की कि पनेसर उन्हें परेशान कर रहे हैं.जब बाउंसरों ने उन्हें निकाला तो वे क्लब के ऊपर चढ़कर सूसू करने लगे. बाउंसरों पर पेशाब गिरी तो उन्होंने ऊपर देखा.उन्हें पहले लगा कि कहीं से पानी गिर रहा है. मौके पर मौजूद लोगों के मुताबिक जब बाउंसरों ने उन्हें ललकारा तो पनेसर एक पित्जा रेस्टोरेंट की तरफ भागे. बाउंसरों ने उन्हें वहां दबोच लिया और हाथ पीछे बांधकर काबू में कर लिया. मोंटी इस दौरान चीखते हुए हेल्प हेल्प बोलने लगे.जब पनेसर को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता, तो उन्होंने चीखना बंद कर दिया. रोने लगे और चुपचाप बाउंसरों के साथ क्लब की तरफ चलने लगे. पहले वोदका बार गए, फिर नाइट क्लब 31 साल के भारतीय मूल के शादीशुदा क्रिकेटर मोंटी पनेसर जिस क्लब में मूतने के बाद पकडे़ गए, उसके पास ही रहते हैं. उन्हें बाउंसरों ने 45 मिनट पकड़े रखा, फिर पुलिस आई और फाइन हुआ.बताया जा रहा है कि इस नाइट क्लब में जाने से पहले पनेसर एक वोदका बार में गए थे. उधर इस प्रकरण पर मोंटी के प्रवक्ता ने कहा है कि हां ये सच है कि शराब पीकर हुड़दंग करने के चलते पनेसर को फाइन किया गया. इस मसले पर मोंटी ने सभी से माफी मांगी है. जानें क्या हुआ नाइट क्लब में पनेसर के साथ
संसद की कार्यवाही में बाधा पहुंचाने को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस पर करारा प्रहार किया है. संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि कांग्रेस को शर्म आनी चाहिए, वह तमाशा कर रही है. दरअसल, 'ललितगेट' और कुछ अन्य मुद्दों को लेकर कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने संसद के दोनों सदनों में शुक्रवार को भी खूब शोर-शराबा मचाया, जिससे संसद की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. दूसरी ओर, कांग्रेस ने मोदी सरकार पर पलटवार करते हुए कहा कि छोटी-छोटी बातों पर भी इस्तीफा मांगने की परंपरा बीजेपी ने ही शुरू की है. सोमवार को सर्वदलीय बैठक में बनेगी बात? संसद की कार्यवाही ठीक तरीके से चल सके, इसे लेकर सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है. मोदी सरकार का कहना है कि वह सभी मसलों पर चर्चा कराने को तैयार है, लेकिन कांग्रेस जान-बूझकर सदन की कार्यवाही में अड़ंगा लगा रही है. '40 लोग संसद को बंधक नहीं बना सकते' सदन में वेंकैया नायडू ने कहा, 'इन लोगों को (शोर शराबा कर रहे विपक्षी सदस्य) देश की जनता ने अस्वीकार कर दिया है. सत्ता खोने से हताश हो गए हैं. लोकतंत्र के नाम पर फ्रॉड किया जा रहा है. 40 लोग संसद को बंधक नहीं बना सकते हैं. मैं आपसे (स्पीकर) इस स्थिति को गंभीरता से लेने का आग्रह करता हूं. क्या यह तमाशा है? इन्हें देश के लोगों की कोई चिंता नहीं है.' शोर-शराबे से नाराज सुमित्रा महाजन ने कहा, 'अगर आप इन सब चीजों को टीवी पर दिखाना चाहते हैं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं, पूरा देश देख ले. लेकिन आज मैं सदन की कार्यवाही स्थगित नहीं करूंगी.' हालांकि, शोर-शराबा जारी रहने पर उन्होंने लंच से लगभग आधा घंटा पहले ही सदन की कार्यवाही दोपहर दो बजे स्थगित कर दी. सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने पर अध्यक्ष ने कार्यस्थगन के सभी नोटिसों को अस्वीकार करते हुए कहा कि ये महत्वपूर्ण मामले हैं और इन्हें अन्य अवसरों पर उठाया जा सकता है. हंगामे के बीच भी चली कार्यवाही वामदलों समेत कुछ अन्य पार्टियों के सदस्यों के भारी हंगामे के बावजूद अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने शुक्रवार को लोकसभा में प्रश्नकाल सहित अन्य कार्यवाही चलाने का प्रयास किया. अध्यक्ष ने शोर-शराबे में ही प्रश्नकाल की पूरी कार्यवाही चलाई. इस दौरान कंपनी बोर्ड में महिला निदेशक, चाय अनुसंधान और विकास केंद्र, महिला व बाल अधिकारों का उल्लंघन, विमान दुर्घटना, राज्यों को विशेष पैकेज, आयुष संबंधी एनएसएसओ सर्वेक्षण आदि विषयों पर सदस्यों ने सवाल पूछा और संबंधित मंत्रियों ने उनके जवाब दिए. कांग्रेस सदस्यों ने बांधी काली पट्टी काली पट्टी बांधकर सदन में नहीं आने की लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की चेतावनी के बावजूद कांग्रेस सदस्य शुक्रवार को भी सदन में अपनी बांह पर काली पट्टी लगाकर आए थे. कांग्रेस, वामदल और अन्य सदस्य आसन के समीप आकर नारेबाजी करते रहे.
दिए गए शीर्षक के अनुरूप एक पाठ यह हो सकता है: भारतीय सीनियर पुरुष हॉकी टीम हॉकी वर्ल्ड लीग (एचडब्ल्यूएल) के सेमीफाइनल चरण में तीसरा स्थान हासिल करने के लिए रविवार को ब्रिटेन से भिड़ेगी। विश्व रैंकिंग में चौथी टीम बेल्जियम ने सेमीफाइनल में बिना कोई गलती किए भारत को शुक्रवार को एकतरफा मैच में 4-0 से हराया, वहीं ब्रिटेन को दूसरे सेमीफाइनल मैच में विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के हाथों 1-3 से हार झेलनी पड़ी।टिप्पणियां 10 देशों के बीच हो रहे इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम का सफर ऊपर-नीचे होता रहा है। भारतीय टीम ने फ्रांस और पोलैंड के खिलाफ लगातार दो जीत हासिल करते हुए टूर्नामेंट की बेहद सफल शुरुआत की। तीसरे मैच में हालांकि उन्हें अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ ड्रॉ से संतोष करना पड़ा, वहीं चौथे मैच में ऑस्ट्रेलिया के हाथों 2-6 से करारी मात खानी पड़ी। भारतीय टीम ने हालांकि बेहद रोमांचक मुकाबले में मलेशिया को 3-2 से मात देकर सेमीफाइनल में जगह बना ली। दूसरी ओर ब्रिटेन को टूर्नामेंट में अब तक सिर्फ एक हार का सामना करना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में मिली हार के अलावा ब्रिटिश टीम अब तक तीन मैच जीतने में सफल रही है, जबकि उसके दो मैच ड्रॉ रहे हैं। विश्व रैंकिंग में चौथी टीम बेल्जियम ने सेमीफाइनल में बिना कोई गलती किए भारत को शुक्रवार को एकतरफा मैच में 4-0 से हराया, वहीं ब्रिटेन को दूसरे सेमीफाइनल मैच में विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के हाथों 1-3 से हार झेलनी पड़ी।टिप्पणियां 10 देशों के बीच हो रहे इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम का सफर ऊपर-नीचे होता रहा है। भारतीय टीम ने फ्रांस और पोलैंड के खिलाफ लगातार दो जीत हासिल करते हुए टूर्नामेंट की बेहद सफल शुरुआत की। तीसरे मैच में हालांकि उन्हें अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ ड्रॉ से संतोष करना पड़ा, वहीं चौथे मैच में ऑस्ट्रेलिया के हाथों 2-6 से करारी मात खानी पड़ी। भारतीय टीम ने हालांकि बेहद रोमांचक मुकाबले में मलेशिया को 3-2 से मात देकर सेमीफाइनल में जगह बना ली। दूसरी ओर ब्रिटेन को टूर्नामेंट में अब तक सिर्फ एक हार का सामना करना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में मिली हार के अलावा ब्रिटिश टीम अब तक तीन मैच जीतने में सफल रही है, जबकि उसके दो मैच ड्रॉ रहे हैं। 10 देशों के बीच हो रहे इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम का सफर ऊपर-नीचे होता रहा है। भारतीय टीम ने फ्रांस और पोलैंड के खिलाफ लगातार दो जीत हासिल करते हुए टूर्नामेंट की बेहद सफल शुरुआत की। तीसरे मैच में हालांकि उन्हें अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ ड्रॉ से संतोष करना पड़ा, वहीं चौथे मैच में ऑस्ट्रेलिया के हाथों 2-6 से करारी मात खानी पड़ी। भारतीय टीम ने हालांकि बेहद रोमांचक मुकाबले में मलेशिया को 3-2 से मात देकर सेमीफाइनल में जगह बना ली। दूसरी ओर ब्रिटेन को टूर्नामेंट में अब तक सिर्फ एक हार का सामना करना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में मिली हार के अलावा ब्रिटिश टीम अब तक तीन मैच जीतने में सफल रही है, जबकि उसके दो मैच ड्रॉ रहे हैं। भारतीय टीम ने हालांकि बेहद रोमांचक मुकाबले में मलेशिया को 3-2 से मात देकर सेमीफाइनल में जगह बना ली। दूसरी ओर ब्रिटेन को टूर्नामेंट में अब तक सिर्फ एक हार का सामना करना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में मिली हार के अलावा ब्रिटिश टीम अब तक तीन मैच जीतने में सफल रही है, जबकि उसके दो मैच ड्रॉ रहे हैं।
चीन ने सोमवार को ऐलान किया कि वह हिंद महासागर के सेशेल्स द्वीप पर अपना पहला सैन्य ठिकाना स्थापित करेगा ताकि उसकी नौसेना के लिए आवश्यक आपूर्ति और अन्य सुविधाएं मिल सकें। यह चीन का विदेश में पहला सैन्य अड्डा होगा और उसके इस कदम से भारत की चिंता निश्चित तौर पर बढ़ सकती है। चीन के रक्षा मंत्रालय ने आज एलान किया कि इस सैन्य अड्डे के जरिए सेशेल्स अथवा दूसरे देशों के बंदगाहों पर आपूर्ति और सहायता अभियानों में भी मदद की जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र समर्थित इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर करके चीन पहले ही हिंद महासागर में अपना कदम रख चुका है। उसके इस अनुबंध का मकसद हिंद महासागर में पॉलीमेटलिक सल्फाइड अयस्क के उत्खनन का अधिकार हासिल करना था। चीन की ओर से अनुबंध पर इसी साल हस्ताक्षर किया गया था। इससे बीजिंग को हिंद महासागर में 10 हजार वर्गकिलोमीटर तक उत्खनन का अधिकार मिल गया है। जानकारों का मानना है कि सेशेल्स में सैन्य ठिकाना विकसित करने का चीन का कदम महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि चीन अपना पहला विमान वाहक पोत सामने लाने वाला है। फिलहाल इसका अंतिम दौर का परीक्षण चल रहा है। इस मामले पर चीन के रक्षा मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि निकट के स्थानों के नौसेना के बेड़ों तक आपूर्ति सुनिश्चित करना एक दीर्घकालीन मिशन का हिस्सा है। इस अड्डे को स्थापित करने का फैसला चीन के रक्षा मंत्री जनरल लियांग गुआंगली की सेशेल्स की सद्भावना यात्रा के समय लिया गया था। यह यात्रा इस महीने की शुरुआत में हुई थी। चीन के रक्षा मंत्री की यात्रा के दौरान सेशेल्स के विदेश मंत्री जीन पॉल एडम ने कहा कि उनके देश ने बीजिंग को सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए निमंत्रित किया है।
26 मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 85वॉ (लीप वर्ष मे 86 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 280 दिन बाकी है। प्रमुख घटनाएँ 1552 : गुरू अमरदास सिखों के तीसरे गुरू बने। 1668: इंग्लैंड ने बंबई पर अधिकार कर लिया। 1780 : ब्रिटेन के अखबार ब्रिट गैजेट और संडे मॉनीटर पहली बार रविवार के दिन प्रकाशित हुए। 1799 : नेपोलियन बोनापार्ट ने जापां फिलिस्तीन पर कब्जा किया। 1812: वेनेजुएला के काराकास में भीषण भूकंप आया जिसमे 20 हजार लोगों की मौत हुई। 1971: 26 मार्च को बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हो गया. 26 मार्च को बांग्लादेश स्वंतत्रता दिवस मनाता है। 1973: लंदन स्टॉक एक्सचेंज में 200 साल पुराने इतिहास को तोड़ते हुए पहली बार महिलाओं की भर्ती की। 1972 : भारत के राष्ट्रपति वी वी गिरि ने पहले अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन का उद्घाटन किया। 1979: 30 साल से जारी युद्ध विराम के लिए इसराइल और मिस्र ने शांति समझौते पर हाथ मिलाए, यह समझौता अमेरिका द्वारा करवाया गया। जन्म 1907: महादेवी वर्मा, हिन्दी कवयित्री और हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक। 1893 - धीरेन्द्र नाथ गांगुली, बंगाली सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और निर्देशक निधन 2006 अनिल बिस्वास ,भारतीय राजनीतिज्ञ बाहरी कडियाँ बीबीसी पे यह दिन मार्च
यह लेख है: अभिनेता रितेश देशमुख ने कहा है कि अगले कुछ समय में उनकी धर्मपत्नी बनने जा रहीं अभिनेत्री जेनेलिया डिसूजा अव्वल दर्जे की पेशेवर हैं और शूटिंग के वक्त वह सिर्फ अपने काम पर ही ध्यान देती हैं। जेनेलिया के साथ तीन फरवरी को शादी रचाने जा रहे रितेश ने कहा, "फिल्म 'तेरे नाल लव हो गया' की शूटिंग के दौरान जेनेलिया ने मुझे तनिक भी आराम नहीं करने दिया। हम बहुत पुराने दोस्त हैं लेकिन जेनेलिया के लिए काम सर्वोपरि है।" "मैं जेनेलिया को सात साल से जानता हूं लेकिन उनके पेशेवर रवैये में बिल्कुल बदलाव नहीं आया है। आप किसी इंसान को कितनी भी अच्छी तरह क्यों नहीं जानते हों लेकिन पेशेवर तौर पर वह आपकी सोच से बिल्कुल अलग इंसान हो सकता है। यह एक अच्छी बात है।" "जेनेलिया के साथ काम करना चुनौती है क्योंकि वह बेहद प्रतिभाशाली और अपने के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। हमारी ताजातरीन फिल्म की शूटिंग के दौरान जेनेलिया ने मुझे एक पल भी आराम नहीं करने दिया।" रितेश मानते हैं कि जेनेलिया के साथ शादी करने के बाद भी उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कोई आंच नहीं आएगी। रितेश ने कहा कि जब आप किसी व्यक्ति को लम्बे समय से जानते हैं और फिर उसके साथ ही शादी करने जा रहे हों तो फिर इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल शामिल नहीं होता। "मैं जेनेलिया को सात साल से जानता हूं लेकिन उनके पेशेवर रवैये में बिल्कुल बदलाव नहीं आया है। आप किसी इंसान को कितनी भी अच्छी तरह क्यों नहीं जानते हों लेकिन पेशेवर तौर पर वह आपकी सोच से बिल्कुल अलग इंसान हो सकता है। यह एक अच्छी बात है।" "जेनेलिया के साथ काम करना चुनौती है क्योंकि वह बेहद प्रतिभाशाली और अपने के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। हमारी ताजातरीन फिल्म की शूटिंग के दौरान जेनेलिया ने मुझे एक पल भी आराम नहीं करने दिया।" रितेश मानते हैं कि जेनेलिया के साथ शादी करने के बाद भी उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कोई आंच नहीं आएगी। रितेश ने कहा कि जब आप किसी व्यक्ति को लम्बे समय से जानते हैं और फिर उसके साथ ही शादी करने जा रहे हों तो फिर इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल शामिल नहीं होता।
भारत की सबसे बेहतरीन तीरंदाज दीपिका कुमारी ने तीरंदाजी के वर्ल्ड कप फाइनल मुकाबले में सिल्वर मेडल जीता है। इस्तांबुल में खेले गए फाइनल मुकाबले में दीपिका मामूली अंतर से गोल्ड मेडल जीतने से चूक गईं। एक समय तक वे 4−2 के अंतर से आगे चल रही थीं लेकिन आखिरी समय में चीन की मिंग चेंगा ने उलटफेर दिखाते हुए उन्हें 6−5 से हरा दिया। अगर दीपिका गोल्ड मेडल जीत लेती तो वो ऐसा कारनामा दिखाने वाली दूसरी भारतीय होतीं। तीन साल पहले दुबई में डोला बनर्जी ने इस चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था।
उत्तर प्रदेश के शहारनपुर स्थित देवबंद सीट से चुने गए बीजेपी विधायक बृजेश सिंह ने मुस्लिम बहुल इस इलाके का नाम बदल कर देववृंद करने की मांग की है. सिंह ने इस संबंध में विधानसभा में प्रस्ताव रखने की बात कही. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रजेश सिंह का कहना है कि महाभारत काल में यह शहर देववृंद के नाम से ही जाना जाता था और पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां एक वर्ष तक रुके थे, जिसके प्रमाण सर्वविदित हैं. बीजेपी विधायक सिंह ने कहते हैं, 'हालांकि बाद मुगलों के दौर में इसका नाम बदल कर देवबंद कर दिया गया और इस्लामी तालीम का संस्थान दारुल उलूम यहां स्थापित किया गया.' वह कहते हैं, 'जब किसी जगह से महाभारतकालीन इतिहास जुड़ा है, तो फिर इसे बस एक स्कूल के नाम से ही क्यों जाना जाए? मैं विधानसभा में यह मुद्दा उठाऊंगा.' देवबंद के आसपास बसे तीन गांवों से जुड़े ऐतिहासिक प्रणाम का हवाला देते हुए बृजेश कहते हैं, 'यह कोई हिंदु-मुस्लिम का मुद्दा नहीं है. मेरे खुद का गांव जोदड़ाजत रणखांडी गांव का हिस्सा है. महाराभारत का रण यहीं से शुरु हुआ था. मेरठ के पास हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र के लिए पांडव मेरे गांव से होकर ही गुजरे थे.' बता दें कि लखनऊ से करीब 150 किलोमीटर दूर स्थित देवबंद में इस्लामिक तालीम का सबसे बड़ा संस्थान हैं, जहां देश भर के मुस्लमान धार्मिक शिक्षा लेने आते हैं. मुस्लिम बहुल इस इलाके से बृजेश सिंह ने सपा और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवारों को हराकर विधानसभा में पहुंचे हैं.
पहली घड़ी 1352 और 1354 के बीच बनाई गई थी और 16वीं शताब्दी की शुरुआत में इसने काम करना बंद कर दिया था। दूसरी घड़ी 1547 और 1574 के बीच हेर्लिन, कॉनराड डेसिपोडियस, हैब्रेक्ट बंधुओं और अन्य लोगों द्वारा बनाई गई थी। इस घड़ी ने 1788 या 1789 में काम करना बंद कर दिया था (क्योंकि इसने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया था, प्रत्येक घटक अलग हो गया था)
केंद्रीय भूमिका को स्वीकार करते हुए आर्थिक विकास संभावित रूप से मानव विकास, गरीबी में कमी और सहस्त्राब्दी विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति में भूमिका निभा सकता है, यह विकास समुदाय के बीच व्यापक रूप से समझा जा रहा है कि आर्थिक विकास में समाज के गरीब वर्गों को भाग लेने में सक्षम बनाने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। गरीबी में कमी पर आर्थिक विकास का प्रभाव - गरीबी की विकास लोच - असमानता के मौजूदा स्तर पर निर्भर कर सकता है। उदाहरण के लिए, कम असमानता वाले देश, जिसकी विकास दर 2% प्रति व्यक्ति है और उसकी 40% आबादी गरीबी में रहने वाली है, दस वर्षों में गरीबी को आधा कर सकते हैं, लेकिन उच्च असमानता वाले देश को समान कमी प्राप्त करने में लगभग 60 वर्ष लगेंगे । संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून के शब्दों में: "जबकि आर्थिक विकास आवश्यक है, यह गरीबी कम करने की प्रगति के लिए पर्याप्त नहीं है।"
यह एक लेख है: पिछले दिनों मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्य सचिव एमएम कुट्टी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि दिल्ली के अस्पतालों में दवाओं और दूसरे हेल्थकेअर उत्पाद सप्लाई करने वालों का बकाया भुगतान काफी लंबे समय से नही हो पाया है, जिसके चलते अस्पतालों में दवाओं की किल्लत है. सीएम ने मुख्य सचिव को भुगतान में देरी के कारणों पर 24 घंटे में रिपोर्ट देने को कहा है. साथ ही इसके लिए पूरा सिस्टम बनाने, भुगतान में देरी होने अफसर की जिम्मेदारी तय करने और बकाया पर ब्याज देने की स्तिथि में पैसा संबंधित अफ़सर के वेतन सर काटने के लिए भी कहा है. केजरीवाल ने मुख्य सचिव से सोमवार तक पूरा प्लान मांगा था. वैसे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की तरफ भुगतान ना होने पर केजरीवाल ने मुख्य सचिव को चिट्ठी लिखी है तो इसके कुछ कारण हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने काम करने का तरीका बदल दिया है. अब वो किसी काम के लिए उस विभाग के मंत्री को बताने या आदेश करने की बजाय संबंधित विभाग के प्रमुख अधिकारी या दिल्ली सरकार के सभी अफसरों के प्रमुख मुख्य सचिव को आदेश या निर्देश देकर काम पर लगाते हैं. इसी तरह उनकी जिम्मेदारी भी तय करने की कोशिश करते हैं.   वैसे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की तरफ भुगतान ना होने पर केजरीवाल ने मुख्य सचिव को चिट्ठी लिखी है तो इसके कुछ कारण हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने काम करने का तरीका बदल दिया है. अब वो किसी काम के लिए उस विभाग के मंत्री को बताने या आदेश करने की बजाय संबंधित विभाग के प्रमुख अधिकारी या दिल्ली सरकार के सभी अफसरों के प्रमुख मुख्य सचिव को आदेश या निर्देश देकर काम पर लगाते हैं. इसी तरह उनकी जिम्मेदारी भी तय करने की कोशिश करते हैं.
लेख: मुंबई की 23 हफ्ते की गर्भवती महिला के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महिला का गर्भपात कराने की इजाजत दे दी है. KEM अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में महिला की टेस्ट रिपोर्ट दाखिल करते हुए बताया कि गर्भ में पल रहे बच्चे के बचने की उम्मीद कम है, क्योंकि बच्चे की किडनियां नहीं हैं. अगर बच्चे ने जन्म ले भी लिया तो ज्यादा दिन जिंदा रहने की उम्मीद नहीं है. न ही इसका उपचार हो सकता है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. साथ ही KEM अस्पताल को महिला की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन करने के आदेश दिए थे. गुरुवार को महिला की ओर से सुप्रीम कोर्ट में CJI खेहर की बेंच के सामने मामले को रखा गया. कोर्ट को बताया गया कि चूंकि बच्चे की दोनों किडनियां नहीं हैं और जन्म के बाद बच्चे को डायलिसिस पर रखना होगा लेकिन इसके बावजूद उसका बच पाना मुश्किल है. ऐसे में कोर्ट महिला को गर्भपात कराने की इजाजत दे. देश में 20 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने की अनुमति नहीं है. इससे पहले भी कोर्ट ने मुंबई की महिला को 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने की इजाजत दी थी. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. साथ ही KEM अस्पताल को महिला की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन करने के आदेश दिए थे. गुरुवार को महिला की ओर से सुप्रीम कोर्ट में CJI खेहर की बेंच के सामने मामले को रखा गया. कोर्ट को बताया गया कि चूंकि बच्चे की दोनों किडनियां नहीं हैं और जन्म के बाद बच्चे को डायलिसिस पर रखना होगा लेकिन इसके बावजूद उसका बच पाना मुश्किल है. ऐसे में कोर्ट महिला को गर्भपात कराने की इजाजत दे. देश में 20 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने की अनुमति नहीं है. इससे पहले भी कोर्ट ने मुंबई की महिला को 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने की इजाजत दी थी.
ओबामा की पहली पसंद बने लेफ्टिनेंट जनरल कार्ल एकेनबेरी ने कहा है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान से अमेरिका पर हमले का खतरा बरकरार है. इन दोनों देशों में पनाह लिए बैठे आतंकवादी संगठन अपनी ताकत दिखाने के लिए कभी भी हमला कर सकते हैं. कार्ल ने कहा कि आतंकवादी अफगानिस्तान और पाकिस्तान में खौफ, अराजकता पैदा करना चाहते हैं, ताकि इलाके पर उनका दबदबा बने. अगर आतंकवादी इसमें कामयाब हो गए तो इसका खामियाजा अमेरिका समेत पूरी दुनिया को भुगतना पड़ सकता है. कार्ल का यह बयान ऐसे समय आया है जब बराक ओबामा अफगानिस्तान-पाकिस्तान पर अमेरिकी रणनीति का खुलासा करने वाले हैं. कुछ हद तक ओबामा की रणनीति की झलक कार्ल के बयानों में दिखने लगी है.
नैन्सी पेट्रीसिया पेलोसी (जन्म 26 मार्च 1940) एक अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी की राजनीतिज्ञ हैं, जो जनवरी 2019 से संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष के रूप में सेवारत हैं। वह इस पद पर रहने वाली अमेरिकी इतिहास की पहली महिला हैं। वह 1987 में पहली बार कांग्रेस के लिए चुनी गईं, वह पेलोसी संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में सबसे अधिक रैंकिंग वाली महिला निर्वाचित अधिकारी हैं। सदन के अध्यक्ष के रूप में, वह उपराष्ट्रपति के तुरंत बाद, राष्ट्रपति उत्तराधिकारी की पंक्ति में दूसरे स्थान पर हैं। 2019 तक, पेलोसी कांग्रेस के सदस्य रूप में अपने 17 वें कार्यकाल में हैं। वह कैलिफोर्निया के 12वें कांग्रेस जिले का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें सैन फ्रांसिस्को शहर के चार पाँचवें हिस्से और काउंटी शामिल हैं। पेलोसी ने शुरुआत में 5वें जिले (1987-1993) का प्रतिनिधित्व किया, और फिर जब 1990 की जनगणना में जिले की सीमाओं में बदलाव किया गया तब पेलोसी ने 8वें जिले (1993-2013) का नेतृत्व किया। उन्होंने 2003 से हाउस डेमोक्रेट का नेतृत्व किया है- कांग्रेस में एक पार्टी का नेतृत्व करने वाली पहली महिला होने के नाते- दो बार सदन अल्पसंख्यक (माइनॉरिटी) नेता (2003-2007 और 2011-2019, जब रिपब्लिकन पार्टी सदन में बहुमत में थी), और सदन के अध्यक्ष के रूप में (2007-2011 और 2019-वर्तमान, जब डेमोक्रेटिक बहुमत में है)। पेलोसी इराक युद्ध के साथ-साथ बुश प्रशासन के 2005 के सामाजिक सुरक्षा को आंशिक रूप से निजीकरण के प्रयास की भी एक प्रमुख विरोधी थी। अपने पहले सदन के अध्यक्षता के दौरान, पेलोसी ने कई विषेश बिल पारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें अफोर्डेबल केयर एक्ट, डोड-फ्रैंक वॉल स्ट्रीट रिफॉर्म और कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, डोन्ट आस्क, डोन्ट रिप्लाई एक्ट, द अमेरिकन रिकवरी और पुनर्निवेश अधिनियम और 2010 कर राहत अधिनियम शामिल हैं। 2010 के चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी ने प्रतिनिधि सभा में बहुमत खो देने के बाद, जनवरी 2011 में पेलोसी ने स्पीकरशिप खो दी। हालांकि, उन्होंने हाउस डेमोक्रेटिक कॉकस के नेता के रूप में अपनी भूमिका बरकरार रखी और सदन के अल्पसंख्यक नेता की भूमिका में काम किया। 2018 के मध्यावधि चुनावों में, डेमोक्रेट ने सदन में बहुमत वापस जीत लिया और 3 जनवरी 2019 को 116वीं कांग्रेस बुलाई गई जिसमें पेलोसी को एक बार फिर से स्पीकर चुना गया। 1955 में सैम रेबर्न के बाद इस पद पर लौटने वाली पहली पूर्व स्पीकर भी बन गईं। 24 सितंबर 2019 को पलोसी ने डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग की सुनवाई शुरू करने की घोषणा की। संदर्भ
बॉलीवुड सितारों में टैटू के पीछे कोई न कोई कहानी होती है, कोई इसके जरिए अपने प्यार का इजहार करता है तो कोई महज शौक पूरा करने के लिए टैटू करवा लेता है. आलिया भट्ट ने भी अपने नेक पर टैटू करा रखा है 'पटाखा'. पिछले कुछ महीनों से आलिया की गर्दन पर ये टैटू है. ऐसा कहा जा रहा था कि फिल्म 'हाईवे' के गाने 'पटाखा कुड़ी...' को लेकर आलिया ने ये टैटू कराया. लेकिन उन्होंने इस अटकल को खारिज कर दिया है. ये टैटू उनकी आने वाली फिल्म 'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' के कैरेक्टर को लेकर है. आलिया इस फिल्म में 'पटाखा' पंजाबी लड़की के किरदार में नजर आएंगी. फिल्म में उनके साथ नजर आएंगे वरुण धवन. फिल्म 11 जुलाई को रिलीज होनी है.
असम के डिब्रूगढ़ स्थित मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एएमसीएच) की एक स्नातकोत्तर मेडिकल छात्रा की गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में एक वार्ड ब्वॉय ने कथित तौर पर हत्या कर दी, जिसके बाद अस्पताल के जूनियर चिकित्सकों ने एक अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी। पुलिस सूत्रों ने बताया कि छात्रा डॉक्टर सरिता तसनीवाल का शव शुक्रवार सुबह आईसीयू के भीतर चिकित्सकों के लिए बने विश्राम कक्ष के बिस्तर पर पड़ा हुआ मिला। उसके गले के बाएं हिस्से में ऑपरेशन में इस्तेमाल आने वाली छुरी घुसी हुई थी। सूत्रों ने बताया कि सुबह करीब आठ बजे आईसीयू के नर्सों ने सरिता का शव डॉक्टरों के कमरे में बिस्तर पर पड़ा देखा, जिसके गले में ऑपरेशन में इस्तेमाल होने वाली छुरी घुसी हुई थी। सरिता की रात्रिकालीन ड्यूटी रात के 10 बजे से सुबह छह बजे तक थी। डॉक्टरों ने दावा किया कि सरिता सुबह साढ़े पांच बजे तक काम कर रही थी और उसके बाद वह डॉक्टरों के विश्राम कक्ष में चली गई थी। पुलिस ने बताया कि आईसीयू वार्ड ब्वाय खीरू मेक सहित चार लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया है। खीरू ने सरिता की हत्या करना स्वीकार किया है। सरिता ऑब्सट्रेट्रिक्स एंड गाइनेकोलोजी एमडी की प्रथम वर्ष की छात्रा थी।
लोकसभा चुनाव में हारने के बाद राहुल गांधी आज पहली बार अमेठी पहुंचे. अमेठी पहुंचकर राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और उनसे बातचीत भी की. राहुल गांधी ने अपने इस दौरे को मीडिया से दूर रखा है और ट्विटर के माध्यम से उनके इस दौरे की जानकारी मिल रही है. राहुल ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा कि अमेठी आकर खुश हूं, अमेठी आना घर आने जैसा लगता है. राहुल गांधी के पहुंचने से पहले अमेठी का सियासी तापमान भी बढ़ा हुआ दिखाई दिया. राहुल गांधी के दौरे के ठीक पहले केंद्रीय कांग्रेस मुख्यालय के गेट पर पोस्टर लगाए गए थे, जिसमें लिखा था 'न्याय दो, न्याय दो परिवार को, न्याय दो, दोषियों को सजा दो, संजय गांधी अस्पताल अमेठी में जिंदगी बचाई नहीं जाती गंवाई जाती है, राहुल गांधी जवाब दो.' इस पोस्टर में किसी पब्लिशर का नाम नहीं लिखा था. अमेठी आकर बहुत खुश हूँ। अमेठी आना घर आने जैसा लगता है। pic.twitter.com/B6YW2f7aLg राहुल गांधी की इस यात्रा का संदेश यह है कि भले ही वह अमेठी से चुनाव हार गए हैं, लेकिन उनका आत्मीय रिश्ता अमेठी से बना हुआ है. यह उनकी कर्मभूमि है, जो उन्हें विरासत में मिली है, और इसे वह संभाल कर रखना चाहेंगे. अमेठी ऐसी संसदीय सीट रही है जिसका कांग्रेस और खासकर गांधी परिवार से गहरा रिश्ता रहा है. अमेठी पहुंचे राहुल गांधी का जबरदस्त स्वागत हुआ. कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद यादव ने एक ट्वीट के जरिए बताया कि जब राहुल, अमेठी पहुंचे तो एक नौजवान दुकानदार अपने हाथों से जलेबी खिलाने के लिए राहुल गांधी के पास पहुंचा था. अमेठी भ्रमण के दौरान राहुल जी को जिलेबी खिलाता एक नौजवान दुकानदार। pic.twitter.com/ouGsU2dhJE लोकसभा चुनावों में अमेठी की सीट से राहुल गांधी को मिली हार के बाद पूरी पार्टी सकते में थी. स्मृति इरानी की अप्रत्याशित जीत को बीजेपी को अपनी बड़ी कामयाबी मान रही है. कांग्रेस इस वक्त आत्ममंथन के दौर से गुजर रही है. कई बड़े नेताओं ने पार्टी में अपने पदों से इस्तीफा दे दिए हैं, जिनमें खुद राहुल गांधी शामिल है. अगले कुछ महीनों में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उससे पहले कांग्रेस खुद को नए सिरे से तैयार कर रही है. इसी कड़ी में राहुल गांधी वहां पहुंचे, जहां से उन्हें हार मिली थी.
VIDEO: सपा नेताओं का इस्‍तीफा हालांकि इस बात की भी चर्चा है कि फूलपुर से सांसद केशव प्रसाद मौर्य को मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है. माना जा रहा है कि 15 अगस्‍त के बाद केंद्र में मोदी मंत्रिमंडल का विस्‍तार हो सकता है और केशव प्रसाद मौर्य को वहां जगह मिल सकती है.
NIT श्रीनगर में छात्रों के बीच तनाव का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि जम्मू-कश्मीर के रजौरी में बाबा गुलाम शाह बादशाह यूनिवर्सिटी के दो छात्र समूहों के बीच झड़प का मामला सामने आ गया है. चश्मदीदों के मुताबिक झड़प में कुछ छात्रों को चोट आई है. #WATCH : Clash between two groups of students in Baba Ghulam Shah Badshah University in Rajouri (J&K) https://t.co/8plPzv4fBE — ANI (@ANI_news) April 18, 2016 Clashes break out between two groups of students in Baba Ghulam Shah Badshah University in Rajouri (J&K) pic.twitter.com/wiesVhSeOP — ANI (@ANI_news) April 18, 2016 Clash between two groups of students in Baba Ghulam Shah Badshah University in Rajouri (J&K) pic.twitter.com/W8z1T1rlgl — ANI (@ANI_news) April 18, 2016 There was heavy clash between 2 groups of local students & valley students, few are injured: Eyewitness at BGSBU pic.twitter.com/DNtOIVUZk6 — ANI (@ANI_news) April 18, 2016 झड़प में कुछ स्थानीय छात्रों के साथ ही कश्मीर के छात्र भी शामिल हैं. खबरों के मुताबिक बाहरी छात्र क्लास अटेंड नहीं कर रहे थे और स्थानीय छात्र उनपर क्लास में मौजूद रहने के लिए दबाव बना रहे थे. इसलिए दोनों गुटों के बीच झड़प शुरू हो गई.
श्रीपाद श्री वल्लभ कलियुग (लौह युग या अंधकार युग) में श्री दत्तात्रेय का पहला पूर्ण अवतार (अवतार) है। श्रीपाद श्री वल्लभा का जन्म 1320 में श्री अप्पाराजा और सुमति सारमा के साथ भाद्रपद सुधा चैविथि (गणेश चतुर्थी) के दिन पितापुरम (आंध्र प्रदेश, भारत) में हुआ था। श्रीपाद का जन्म अप्पलाराजा और सुमति सरमा श्री दत्तात्रेय के भक्त थे। उनके दो बेटे और तीन बेटियां थीं। उनका पहला बेटा लंगड़ा था और दूसरा अंधा था। एक बार अप्पाराजा सरमा परिवार श्राद्ध (दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि देने के लिए एक वार्षिक समारोह) की तैयारी कर रहा था और कई ब्राह्मणों को इस कार्यक्रम के लिए अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। दोपहर के समय भिक्षा के लिए एक भिक्षुक आया। हालांकि रिवाज इसे रोकता है लेकिन वेद कहते हैं कि जो कोई भी खाने के समय भोजन के लिए आता है वह स्वयं विष्णु के अलावा और कोई नहीं होता है, आमंत्रित ब्राह्मणों को भोजन कराने से पहले, सुमति ने भीष्म को भोजन कराया, उन्हें भगवान विष्णु मानते हुए, जिसके लिए संपूर्ण वार्षिक समारोह आयोजित किया जा रहा था की पेशकश की। उसका विश्वास भगवान के दिल को छू गया और उसने एक बार उसे इस सच्चे रूप के दर्शन दिए। उनके शानदार रूप में तीन सिर थे, एक बाघ की खाल में लिपटे हुए थे और उनका शरीर विभूति (पवित्र राख) के साथ था। प्रभु ने कहा, "माता, मैं आपकी भक्ति से प्रसन्न हूं। ब्राह्मण मेहमानों को खिलाने से पहले ही, आपने मुझे पूरे विश्वास के साथ भोजन दिया है कि यह आड़ में भगवान है। अब आप मुझसे जो कुछ भी चाहते हैं, वह मांग लें। दी जाएगी ”। दृष्टि ने उसकी आँखों को आशीर्वाद दिया और अब उसके कान उसके प्यारे शब्दों से पवित्र हो गए। "भगवान", उसने कहा, "भगवान! आपने मुझे माँ के रूप में संबोधित किया है, कृपया अपने वचन को वास्तविकता में बदल दें" भगवान ने तथागत को उत्तर दिया (ऐसा ही हो) और उसे आशीर्वाद दिया कि वह एक पुत्र होगा जो एक गुरु होगा सब। प्रभु ने उसे यह भी बताया कि मैं तुम्हारे साथ 16 साल तक रहूंगा और फिर 17 साल के लिए दूसरी जगह जाऊंगा। भगवान उसका आशीर्वाद देकर गायब हो गए। सुमति ने दिव्य दृष्टि के अपने पति को बताया कि भगवान ने उन्हें और उनके दिव्य पुत्र की कामना करने के लिए शुभकामना दी थी। दंपति हर्षित हो गए और एक वर्ष के भीतर उन्हें एक बेटा हुआ। सुमति ने एक को जन्म दिया था जो वास्तव में जन्म से ही कमतर है। उन्होंने बच्चे का नाम 'श्रीपाद' रखा। श्रीपाद के सभी लक्षण, दिव्य विशेषताएं और आकाशीय चमक थी। बचपन और संन्यास श्रीपाद ने कभी औपचारिक शिक्षा नहीं ली। परंपरा के अनुसार, वह पवित्र धागे के साथ निवेश किया गया था। आम तौर पर, पवित्र धागा समारोह के बाद एक लड़के को गुरु द्वारा 8 साल के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए इससे पहले कि वह वेदों (आध्यात्मिक ज्ञान के बाहरी भंडार) को पूरी तरह से याद कर सके। लेकिन इस बालक, श्रीपाद ने, अपने पुतले (पवित्र धागा समारोह) के क्षण से ही इस शिष्य को श्रीपाद वैदिक ज्ञान प्रदान करना शुरू कर दिया। यह सब विशुद्ध ईश्वरीय चमत्कार था। जब वह 16 साल की उम्र में पहुंची, तो उसके माता-पिता ने उसकी शादी करने की सोची। हालाँकि, उन्होंने कहा, "इस दुनिया में सभी महिलाएं मेरी माँ की तरह हैं" और उन्होंने केवल एक महिला "वैराग्य-विवाह" (विघटन-महिला) से शादी की, "मेरा मिशन साधुओं (पवित्र पुरुषों) को दीक्षा और मार्गदर्शन देना है।" "और उसे" श्रिया-वल्लभ "कहा जाना चाहिए। इस प्रकार "श्रीपाद श्रीवल्लभ" नाम। इस प्रकार बोलते हुए उन्होंने अपने माता-पिता से संन्यासी (भिक्षु) बनने और घर छोड़ने की अनुमति मांगी। माँ ने श्रीपाद से पूछा कि क्या वह अपने माता-पिता को छोड़ देता है, जो उनके बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेगा? (उनका पहला बेटा लंगड़ा था और दूसरा अंधा था।) श्रीपाद को उनकी स्थिति का एहसास हुआ। उसने अपने अंधे और लंगड़े भाइयों को, अपने दिल को, अपने माता-पिता में आँसू को देखकर करुणा से पिघलते हुए बुलाया, श्रीपाद ने अपने भाइयों को छू लिया और उन्हें एक पल में पूरा कर दिया। इस चमत्कार ने भ्रम के घूंघट को हटा दिया जिसने उन्हें संसार में बांध दिया। तब प्रभु ने उन्हें उनके वास्तविक दिव्य रूप के दर्शन दिए। उनकी अनुमति के साथ, उन्होंने सभी सांसारिक संबंधों को त्याग दिया और काशी-तीर्थयात्रा के लिए अपने घर छोड़ दिया। श्रीपदा ने कई पवित्र स्थानों जैसे द्वारका, मथुरा और बद्रीनाथ की यात्रा की। श्रीपाद इस यात्रा के दौरान कई आध्यात्मिक साधकों को आशीर्वाद देते हैं। तीर्थयात्रा के बाद, श्रीपाद दक्षिण में गोकर्ण महाबलेश्वर गए। महाबलेश्वर में 3 साल बिताने के बाद वह श्री शैला पर्वत गए। कई साधकों को आशीर्वाद देने के बाद, भगवान कौरव के पास गए और वहां बस गए। श्रीपादजी अपने जीवन के अधिकांश समय यहीं रहे और इस स्थान पर कई चमत्कार किए। उनके सभी चमत्कारों को श्रीपाद श्रीवल्लभ चारितामृतम् नामक पुस्तक में संकलित किया गया था। ये कहानियाँ श्रीपदा के भक्त शंकर भट द्वारा संकलित की गई थीं। श्रीपाद चरित्रम (दिव्य जीवनी) के पीछे की कहानी श्रीपाद श्रीवल्लभ चारितामृतम् एक 53 अध्याय की पुस्तक है जो मूल रूप से श्रीपाद के समकालीन कन्नड़ भक्त शंकर भट द्वारा संस्कृत में लिखी गई थी। इस पुस्तक में श्रीपाद के जीवन और उनके द्वारा देखे गए लेखक और उनके द्वारा किए गए विभिन्न मुठभेड़ों और चमत्कारों के विभिन्न प्रकरणों को दर्ज किया गया है। बाद में शंकर भट ने इस पुस्तक का तेलगु भाषा में अनुवाद किया। उन्होंने मूल पांडुलिपि में यह भी उल्लेख किया है कि यह चारित्र 32 पीढ़ियों तक गुप्त रहेगा और श्रीपद श्रीवल्लभ की 33 वीं पीढ़ी द्वारा प्रकाश में लाया जाएगा (व्यापक रूप से प्रकाशित) " तदनुसार, नवंबर 2001 में, श्रीपदवल्लभ के जीवन पर 53 अध्याय चारित्र को मल्लदी गोविंदा देक्शीथुलु नाम के उनके भक्त द्वारा लाया गया था जो श्रीपद श्रीवल्लभ के मातृ दादा के वंश से संबंधित थे। पुस्तक के मूल पांडुलिपि को नवंबर 2001 में प्रकाशित करने से पहले श्रीपद के मातृ पक्ष की 32 पीढ़ियों के लिए एक रहस्य के रूप में संरक्षित किया गया था ताकि दिव्य से एक संदेश प्राप्त करने के बाद इसका खुलासा किया जा सके। जैसा कि मूल पांडुलिपि में सुझाया गया है, देकशिटुलु ने पांडुलिपि की एक अच्छी प्रतिलिपि बनाई और परायण (भक्तिपूर्ण पठन) के बाद विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश) के पास कृष्णा नदी को मूल स्क्रिप्ट की पेशकश की। इस व्यापक रूप से प्रकाशित चारितामृतम की प्रस्तावना में, देक्शितुलु लिखते हैं: “इस पुस्तक में लिखा गया हर शब्द बिल्कुल सत्य है। इस पुस्तक में कहीं भी कोई अतिशयोक्ति या अनावश्यक वर्णन नहीं है। इस पुस्तक के लेखक शंकर भट पंडित या विद्वान नहीं थे, लेकिन श्रीपाद के प्रति गहरी श्रद्धा थी। उनकी भक्ति को देखते हुए श्रीपाद ने उन पर एक दिव्य कृपा की और उनके द्वारा लिखा गया यह चरित्र था। जो कोई भी इस पुस्तक के पारायण करता है उसे सभी इच्छाएँ पूरी होंगी ” श्रीपद चरितामृतम् दिव्य जीवनी श्रीपद चरितामृतम् (दिव्य जीवनी) हर अध्याय में श्रीपर्व श्रीवल्लभ और उनके चमत्कारों के बारे में विशद वर्णन किया गया है। यह महान पुस्तक वास्तव में एक दिव्य अमृत है। चारित्र श्रीपद के जीवन, उसकी लीलाओं (चमत्कारों), उसकी महानता, उसके अत्यधिक उत्थान उपदेश के बारे में है। वर्तमान में, तेलुगु, मराठी और अंग्रेजी श्रीपद श्रीवल्लभ महास्थान संस्थान पिठापुर में उपलब्ध हैं। 'श्रीपाद श्रीवल्लभ दिव्य चारित्रमृत' नाम से कन्नड़ अनुवाद भी उपलब्ध है। 1450 ई। के आसपास श्री सरस्वती गंगाधर द्वारा लिखित श्री गुरुचरित्र में श्रीपाद श्रीवल्लभ के बारे में 5 अध्याय हैं। इसे बाद में तेलुगु में ब्रह्मसरी पन्नला वेंकटाद्रि बट्टू सरमा द्वारा पिठापुर में अनुवादित किया गया। "दिगंबरा दिगंबर श्रीपाद श्रीवल्लभ दिगंबर" इन्हें भी देखें दत्तात्रेय नृसिंह सरस्वती हिन्दू गुरु
देश में मौसम का मिजाज कुछ ऐसा है कि उत्तर भारत जहां भीषण गर्मी से झुलस रहा है, वहीं दक्षिण में बारिश के साथ-साथ ओले भी पड़ रहे हैं. मंगलवार को चेन्नई के कई इलाकों में भारी बारिश हुई और ओले भी पड़े. वहीं मौसम विभाग की ओर से उत्तर भारत के भी कई इलाकों में मंगलवार की शाम को बारिश की संभावना जताई गई है. वहीं मानसून को लेकर मौसम विभाग के महानिदेशक केजी रमेश ने अच्छे संकेत दिए हैं. मौसम विभाग के मुताबिक इस वर्ष मानसून अच्छा रहेगा. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 13-14 जून को मानसून पहुंचने की संभावना है. कुछ पूर्वी और दक्षिणी राज्यों को छोड़कर करीब-करीब पूरे देश में गर्मी का प्रकोप जारी है. मंगलवार सुबह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में न्यूनतम तापमान सामान्य से सात डिग्री अधिक रहा. मौसम विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि मंगलवार सुबह साढ़े आठ बजे यहां का न्यूनतम तापमान 34.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो सामान्य से सात डिग्री ऊपर है. वहीं, आर्द्रता का स्तर 43 प्रतिशत रहा. मौसम अधिकारियों ने आंशिक रूप से बादल छाए रहने के साथ ही शाम को बारिश और आंधी-तूफान की संभावना जताई है. सोमवार को दिल्ली का अधिकतम और न्यूनतम तापमान क्रमश: 44.6 और 33.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. वहीं, सोमवार को देश के कुछ तटीय क्षेत्रों में बारिश हुई, जबकि 47.2 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ झांसी सबसे गर्म स्थान रहा. इसके अलावा पंजाब और हरियाणा में भी गर्मी का प्रकोप लगातार जारी है और सोमवार को 46 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ अमृतसर दोनों राज्यों में सबसे गर्म स्थान रहा. राजस्थान में मौसम शुष्क बना हुआ है और अधिकांश स्थानों पर तापमान में एक या दो डिग्री सेल्सियस की गिरावट दर्ज की गई. उधर, बिहार में कुछ स्थानों पर आसमान में बादल छाए रहने और हवा चलने के कारण तापमान में कुछ गिरावट दर्ज की गई. राज्य में 38.5 डिग्री सेल्सियस के साथ गया सबसे गर्म स्थान रहा. मौसम रिपोर्ट्स की मानें तो आने वाले कुछ दिनों तक ऐसा ही बुरा हाल रह सकता है. दिल्ली समेत समूचे उत्तर भारत में पारा आगे भी 45 के पार ही रहेगा. हालांकि बीच-बीच में बारिश की संभावना तो है, लेकिन काफी कम है.
दिल्ली के ईस्ट उत्तम नगर मेट्रो स्टेशन पर यात्रियों ने जमकर हंगामा किया. आरोप है कि बुधवार रात करीब 10 बजे एक सीआईएसएफ जवान ने एक जोड़े के साथ दुर्व्यवहार किया और महिला पर हथियार तान दिया. जवान नशे में धुत था. इस बात का विरोध किया गया तो जवान भड़क गया और यात्री से उलझ पड़ा. पत्नी ने बीच बचाव किया तो उसके साथ भी बदसलूकी की. इससे नाराज यात्रियों ने मेट्रो स्टेशन पर जमकर पथराव किया और ट्रैक पर उतर गये. लोगों को वहां से हटाने के लिये पुलिस और सीआईएसएफ जवानों ने भीड़ पर लाठियां भांजी. पुलिस और सीआईएसएफ का कहना है कि मामले की जांच के बाद ही कोई कार्रवाई की जाएगी.
बिग बॉस 13 में सिद्धार्थ शुक्ला और असीम रियाज के बीच की टेंशन हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रही है. दोनों के बीच लड़ाई-झगड़े का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. सिद्धार्थ-असीम की लड़ाई के बाद घरवाले भी अलग-अलग ग्रुप में बंटे हुए नजर आ रहे हैं. क्या दो ग्रुप में बंट जाएंगे सिद्धार्थ-असीम के फ्रेंड्स? बीते दिन के एपिसोड में दिखाया गया कि शहनाज गिल के स्वयंवर टास्क के दौरान सिद्धार्थ शुक्ला और असीम रियाज एक दूसरे से भिड़ जाते हैं. दोनों के बीच हाथापाई तक हो जाती है. अब एक बार फिर शो के अपकमिंग एपिसोड में सिद्धार्थ शुक्ला और असीम रियाज एक दूसरे से बुरी तरह लड़ाई करते हुए दिखेंगे. View this post on Instagram Again sid Vs asim.. #BiggBoss13 #bb13 #asimriaz #sidharthshukla #shehnaazgill #salmankhan #himanshikhurana #paraschhabra # A post shared by the king of black thought's (@bigg_boss_ka_fan_) on Nov 19, 2019 at 10:40am PST फैन क्लब पर जारी शो के प्रोमो वीडियो में आप देख सकते हैं कि असीम रियाज और सिद्धार्थ शुक्ला एक दूसरे को गुस्से में खरी खोटी सुना रहे हैं. दोनों के बीच एक बार फिर हाथापाई होती हुई दिखाई देगी. वहीं, सिद्धार्थ की बातों से नाराज शेफाली जरीवाला आरती सिंह से कहती हैं- ये जो सिद्धार्थ कह रहा है ना कि पहले तो मेरे बिना कुछ नहीं बोलता था. तो तुमको क्या लगता है हम लोग आग लगा रहे हैं दोनों में. शेफाली आगे कहती हैं कि सिद्धार्थ बहुत बक रहा है बाकी लोगों के सामने. शेफाली की बातें सुनकर आरती कहती हैं अब रायता फेल चुका है. असीम और सिद्धार्थ की लड़ाई के बाद लग रहा है कि घर में एक और ग्रुप बन जाएगा. एक ग्रुप में सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल रहेंगे और असीम, शेफाली जरीवाला और हिमांशी खुराना के साथ नया ग्रुप बनाएंगे. अब शो में आगे चलकर कौन किसके साथ कनेक्शन बनाएगा ये देखना दर्शकों के लिए काफी एंटरटेनिंग होगा.
रोमिता रे (जन्म 1970) सिरैक्यूज़ विश्वविद्यालय में एक एसोसिएट प्रोफेसर और कला और संगीत इतिहास विभाग की अध्यक्ष हैं। वह ब्रिटिश साम्राज्य के इतिहास और सांस्कृतिक वस्तुओं में भारत के साथ चाय के व्यापार पर अपने काम के लिए जानी जाती हैं और उन्होंने विभिन्न सार्वजनिक संग्रहों पर शोध करने के लिए व्यापक काम किया है। इतिहास और इसके संदर्भ में ब्रिटिश कला के बारे में येल सेंटर फॉर ब्रिटिश आर्ट में एलिहू येल के चित्र पर उनकी बोली गई टिप्पणी उनकी वेबसाइट पर है। काम करता है बरगद के पेड़ के नीचे : ब्रिटिश भारत में सुरम्य स्थान को स्थानांतरित करना , , 2013 चित्रित राज : ब्रिटिश भारत में सुरम्य की कला, 1757-1911 , येल विश्वविद्यालय के लिए डॉक्टरेट शोध प्रबंध, 1999 संदर्भ   2018 में राष्ट्रीय समुद्री संग्रहालय के लिए उसके काम के बारे में ब्लॉग एलीहू येल पर रोमिता रे की टिप्पणी, देवॉनशायर के दूसरे ड्यूक और ब्रिटिश आर्ट की वेबसाइट के लिए येल सेंटर, जेम्स जेम्स कैवेंडिश के साथ टेबल पर बैठा बाहरी संबंध सिराक्यूज़ में रोमिता रे प्रोफाइल पेज जीवित लोग 1970 में जन्मे लोग
पाकिस्तान में आम चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तित होने जा रही है और जल्द ही नई सरकार बनेगी, लेकिन इससे पहले पड़ोसी मुल्क ने भारत के साथ रिश्ते सुधारने और द्विपक्षीय वार्ता बहाल करने की बात कही है. पाकिस्तान ने इमरान खान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बधाई देने के लिए किए गए फोन कॉल का स्वागत किया. साथ ही कहा कि वो साल 2015 से ठप पड़ी द्विपक्षीय वार्ता को बहाल करना चाहता है. बता दें कि पीएम मोदी ने इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ को आम चुनाव में मिली जीत को लेकर उन्हें बधाई देने के लिए सोमवार को टेलीफोन किया था. इस दौरान पीएम मोदी ने उम्मीद जताई थी कि पाकिस्तान और भारत द्विपक्षीय संबंधों में एक नया अध्याय शुरू करने के लिए काम करेंगे. वहीं, इमरान खान ने शुभकामनाओं के लिए मोदी का शुक्रिया अदा किया और कहा कि विवादों का हल वार्ता के जरिए होना चाहिए. पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता डॉ. मोहम्मद फैसल ने कहा कि उनको उम्मीद है कि यह फोन कॉल भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता का मार्ग प्रशस्त करेगी. इससे सार्क देशों के बीच संबंधों को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी. मालूम हो कि साल 2016 का सार्क शिखर सम्मेलन इस्लामाबाद में होना था, लेकिन जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के कैंप पर आतंकी हमले के बाद भारत ने मौजूदा परिस्थितियों के चलते सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया था. इसके बाद बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान ने भी इस सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद सम्मेलन स्थगित करना पड़ा था. पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों द्वारा साल 2016 में आतंकी हमला किए जाने और भारत के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे. इसके अलावा भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को पिछले साल अप्रैल में पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने से संबंध और बिगड़ गए थे. बहरहाल, इमरान खान ने अपने विजय भाषण में कहा कि पाकिस्तान और भारत के बीच बेहतर संबंध हम सभी के लिए अच्छा होगा.
डच पेशेवर फुटबॉल क्लब एजाक्स एम्सटर्डम (AFC Ajax) से हारकर चैम्पियंस लीग से बाहर होने के बाद रियल मैड्रिड की टीम स्पेनिश मीडिया के निशाने पर आ गई है. चैम्पियंस लीग के अंतिम-16 दौर के दूसरे चरण के मुकाबले में मिली इस जीत के साथ एजाक्स ने 5-3 के एग्रीगेट स्कोर के साथ क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया. पहले चरण के मुकाबले में रियल ने एजाक्स को 2-1 से हराया था. ℹ️ 2018/19 quarter-finals (so far): 🇳🇱 Ajax 🏴󠁧󠁢󠁥󠁮󠁧󠁿 Tottenham 🏴󠁧󠁢󠁥󠁮󠁧󠁿 Manchester United 🇵🇹 Porto #UCL pic.twitter.com/pIA3axnlRr — UEFA Champions League (@ChampionsLeague) March 6, 2019 स्पेनिश समाचार पत्र स्पोर्ट्स इलस्ट्रा ने लिखा, 'एक युग की समाप्ति.' वहीं, नेशनल स्पोर्ट्स डेली ए एस चोज ने लिखा, 'दुखद सप्ताह.' एक अन्य समाचार पत्र ने लिखा, 'फ्लोरेंटिनो (क्लब के अध्यक्ष) का जाने का समय आ गया.' अन्य समाचार पत्रों ने इस बात पर जोर दिया कि उसके खिलाड़ियों के चोटिल होने के कारण मैड्रिड की किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया. रियल मैड्रिड ने रिकॉर्ड 13 बार (1956, 1957, 1958, 1959, 1960, 1966, 1998, 2000, 2002, 2014, 2016, 2017, 2018) यह खिताब जीता है, लेकिन उसे 2010 के बाद पहली बार टूर्नामेंट के नॉकआउट स्टेज से बाहर जाना पड़ा है. ⚽️ KICK-OFF! ⚽️ 😎 We go again... 🤔 Who will join Ajax & Tottenham in the last 8? Follow LIVE 👇👇👇 — UEFA Champions League (@ChampionsLeague) March 6, 2019 इस तरह रियल मैड्रिड इस सीजन में कोई खिताब नहीं जीत पाया. यह टीम पहले ही कोपा डेर रे से बाहर हो चुकी है और ला लीगा खिताब की दौड़ से भी बाहर हो चुकी है. दिग्गज खिलाड़ी क्रिस्टियानो रोनाल्डो के जुवेंटस से जुड़ने के बाद क्लब को पहले ही साल बड़ा झटका लगा है. मैच के अंतिम लम्हों में बाहर किए गए रियल मैड्रिड के डिफेंडर नैचो फर्नांडेज ने कहा, ‘हम हमेशा चैम्पियंस लीग का खिताब नहीं जीत सकते, कभी न कभी इस क्रम का अंत होना था’
नाइजीरिया के बोको हराम ने दो साल से भी अधिक समय पहले चिबोक के एक स्कूल से जिन 200 से अधिक छात्राओं का अपहरण किया था, उनमें से कुछ मुक्त होने के बाद अपने परिवारों के पास पहुंचीं और अपनी पीड़ा के बारे में बताया. राजधानी अबुजा में अपने स्वागत के लिए इसाई समुदाय द्वारा आयोजित समारोह में इन छात्राओं ने बताया कि उन्हें 40 दिनों तक खाना नहीं मिला. ज्यादातर छात्राएं ईसाई हैं, लेकिन अपहरण के बाद बोको हराम ने इनका धर्म परिवर्तन करके इन्हें मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए बाध्य कर दिया. एक छात्रा ग्लोरिया दामे ने बताया कि 40 दिन तक भूखे रहने के अलावा एक बार तो वह मरते-मरते भी बची. ‘‘मैं लकड़ियों के ढांचे में थी और बिल्कुल पास में विमान से बम गिराया गया, लेकिन मैं बाल-बाल बच गई. उसने स्थानीय हाउसा समारोह में लड़कियों के अभिभावक आए और अपनी बेटियों से मिलकर अपनी भावनाओं पर काबू न रख सके. सूचना मंत्री लई मोहम्मद ने बताया, हम अभिभावकों के चेहरों पर खुशी और भावनाओं का मिलाजुला रूप देख सकते हैं. उन्होंने बताया कि इस्लामिस्टों के साथ बातचीत तब तक जारी रहेगी जब तक सभी लड़कियां मुक्त नहीं हो जातीं. ‘‘बहुत ही जल्द एक और जत्था रिहा होगा और वह अधिक बड़ा होगा. देश के कई हिस्सों को जिहादियों से मुक्त कराने के बावजूद नाइजीरिया के राष्ट्रपति मोहम्मदु बुहारी की छात्राओं को रिहा करने में असफलता के लिए कड़ी आलोचना हुई. ये छात्राएं देश में कट्टरपंथी इस्लामिक स्टेट को स्थापित करने के लिए बोको हराम के क्रूर अभियान का प्रतीक बन गई थीं.टिप्पणियां बोको हराम ने वर्ष 2009 में नाइजीरियाई सरकार के खिलाफ हथियार उठाए थे और तब से आतंकवादी घटनाओं में 20,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 26 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) राजधानी अबुजा में अपने स्वागत के लिए इसाई समुदाय द्वारा आयोजित समारोह में इन छात्राओं ने बताया कि उन्हें 40 दिनों तक खाना नहीं मिला. ज्यादातर छात्राएं ईसाई हैं, लेकिन अपहरण के बाद बोको हराम ने इनका धर्म परिवर्तन करके इन्हें मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए बाध्य कर दिया. एक छात्रा ग्लोरिया दामे ने बताया कि 40 दिन तक भूखे रहने के अलावा एक बार तो वह मरते-मरते भी बची. ‘‘मैं लकड़ियों के ढांचे में थी और बिल्कुल पास में विमान से बम गिराया गया, लेकिन मैं बाल-बाल बच गई. उसने स्थानीय हाउसा समारोह में लड़कियों के अभिभावक आए और अपनी बेटियों से मिलकर अपनी भावनाओं पर काबू न रख सके. सूचना मंत्री लई मोहम्मद ने बताया, हम अभिभावकों के चेहरों पर खुशी और भावनाओं का मिलाजुला रूप देख सकते हैं. उन्होंने बताया कि इस्लामिस्टों के साथ बातचीत तब तक जारी रहेगी जब तक सभी लड़कियां मुक्त नहीं हो जातीं. ‘‘बहुत ही जल्द एक और जत्था रिहा होगा और वह अधिक बड़ा होगा. देश के कई हिस्सों को जिहादियों से मुक्त कराने के बावजूद नाइजीरिया के राष्ट्रपति मोहम्मदु बुहारी की छात्राओं को रिहा करने में असफलता के लिए कड़ी आलोचना हुई. ये छात्राएं देश में कट्टरपंथी इस्लामिक स्टेट को स्थापित करने के लिए बोको हराम के क्रूर अभियान का प्रतीक बन गई थीं.टिप्पणियां बोको हराम ने वर्ष 2009 में नाइजीरियाई सरकार के खिलाफ हथियार उठाए थे और तब से आतंकवादी घटनाओं में 20,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 26 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) एक छात्रा ग्लोरिया दामे ने बताया कि 40 दिन तक भूखे रहने के अलावा एक बार तो वह मरते-मरते भी बची. ‘‘मैं लकड़ियों के ढांचे में थी और बिल्कुल पास में विमान से बम गिराया गया, लेकिन मैं बाल-बाल बच गई. उसने स्थानीय हाउसा समारोह में लड़कियों के अभिभावक आए और अपनी बेटियों से मिलकर अपनी भावनाओं पर काबू न रख सके. सूचना मंत्री लई मोहम्मद ने बताया, हम अभिभावकों के चेहरों पर खुशी और भावनाओं का मिलाजुला रूप देख सकते हैं. उन्होंने बताया कि इस्लामिस्टों के साथ बातचीत तब तक जारी रहेगी जब तक सभी लड़कियां मुक्त नहीं हो जातीं. ‘‘बहुत ही जल्द एक और जत्था रिहा होगा और वह अधिक बड़ा होगा. देश के कई हिस्सों को जिहादियों से मुक्त कराने के बावजूद नाइजीरिया के राष्ट्रपति मोहम्मदु बुहारी की छात्राओं को रिहा करने में असफलता के लिए कड़ी आलोचना हुई. ये छात्राएं देश में कट्टरपंथी इस्लामिक स्टेट को स्थापित करने के लिए बोको हराम के क्रूर अभियान का प्रतीक बन गई थीं.टिप्पणियां बोको हराम ने वर्ष 2009 में नाइजीरियाई सरकार के खिलाफ हथियार उठाए थे और तब से आतंकवादी घटनाओं में 20,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 26 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) समारोह में लड़कियों के अभिभावक आए और अपनी बेटियों से मिलकर अपनी भावनाओं पर काबू न रख सके. सूचना मंत्री लई मोहम्मद ने बताया, हम अभिभावकों के चेहरों पर खुशी और भावनाओं का मिलाजुला रूप देख सकते हैं. उन्होंने बताया कि इस्लामिस्टों के साथ बातचीत तब तक जारी रहेगी जब तक सभी लड़कियां मुक्त नहीं हो जातीं. ‘‘बहुत ही जल्द एक और जत्था रिहा होगा और वह अधिक बड़ा होगा. देश के कई हिस्सों को जिहादियों से मुक्त कराने के बावजूद नाइजीरिया के राष्ट्रपति मोहम्मदु बुहारी की छात्राओं को रिहा करने में असफलता के लिए कड़ी आलोचना हुई. ये छात्राएं देश में कट्टरपंथी इस्लामिक स्टेट को स्थापित करने के लिए बोको हराम के क्रूर अभियान का प्रतीक बन गई थीं.टिप्पणियां बोको हराम ने वर्ष 2009 में नाइजीरियाई सरकार के खिलाफ हथियार उठाए थे और तब से आतंकवादी घटनाओं में 20,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 26 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) देश के कई हिस्सों को जिहादियों से मुक्त कराने के बावजूद नाइजीरिया के राष्ट्रपति मोहम्मदु बुहारी की छात्राओं को रिहा करने में असफलता के लिए कड़ी आलोचना हुई. ये छात्राएं देश में कट्टरपंथी इस्लामिक स्टेट को स्थापित करने के लिए बोको हराम के क्रूर अभियान का प्रतीक बन गई थीं.टिप्पणियां बोको हराम ने वर्ष 2009 में नाइजीरियाई सरकार के खिलाफ हथियार उठाए थे और तब से आतंकवादी घटनाओं में 20,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 26 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) बोको हराम ने वर्ष 2009 में नाइजीरियाई सरकार के खिलाफ हथियार उठाए थे और तब से आतंकवादी घटनाओं में 20,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 26 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं.(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
कास्टिंग काउच उस अनैतिक और गैर कानूनी आचार को कहते हैं जिसमें कोई उम्मीदवार या किसी जूनियर से किसी व्यवसाय में प्रवेश करने या किसी संगठन के भीतर कैरियर की उन्नति के लिए सेक्स की मांग की जाती है। शब्द कास्टिंग काउच चलचित्र फिल्म उद्योग में उत्पन्न हुआ। काउच का मतलब सोफा होता है। ये निर्देशक और निर्माताओं के कार्यालय में रखे सोफे की ओर इंगित करता है जहाँ महत्वाकांक्षी अभिनेताओं का साक्षात्कार होता है। इस शब्द का उपयोग प्रायः मनोरंजन के अलावा अन्य उद्योगों में भी होने लगा है। ऐसा आचार शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है और अगर उसे समाचार योग्य माना जाता है तो वह व्यापक सेक्स स्कैंडल बन सकता है। बाहरी कड़ियाँ Pulkeet Aggarwal Assistant Director Casting Couch TV Sting Snares Bollywood Baddie Shakti Kapoor from Yahoo! India Movies (March 12, 2005) Known rumours that Darryl F. Zanuck invented the casting couch The Zanucks: Reel Royalty from CBS News Sunday Morning (July 10, 2005) A selection of contemporary articles regarding the casting couch in the American silent film industry from Taylorology मानव कामुकता सेक्स स्कैंडल
यह लेख है: राजनीति में आने वाला हर दूसरा विकास को गरियाता है मगर यह नहीं बताता कि दूसरा विकास क्या है। दूसरे विकास के नाम पर वो ई गर्वनेंस और कॉल सेंटर बनाने लगता है लेकिन विकास को लेकर कोई नई सोच ज़मीन पर उतरती नहीं दिखती है। विकास का विकल्प कौन सा विकास है ये कोई नहीं बताता बल्कि उसकी जगह कार्यकुशलता और मोबाइल फोन के ऐप्स को नया विकास बता देता है। इसलिए तमाम राजनीतिक बहसों से हमारी आपकी समझ साफ नहीं हो पाती है कि ये विकास नहीं है तो दूसरा विकास क्या है। हमारी खेती एक गंभीर संकट से गुज़र रही है। पिछले कई सालों से गुज़र रही है। केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक कोई अपने काम का हिसाब नहीं देता कि हमने ये किया और खेती को संकट से उबार लिया। वो कहते हैं कांग्रेस और कांग्रेस कहती है बीजेपी। कोई साठ साल की दुहाई देता है तो कोई पंद्रह साल किसी राज्य में सरकार चलाकर भी नहीं बता पा रहा है कि हमने इसका समाधान किया है। लिहाज़ा इस बहस से भी हमें कोई विशेष समझ नहीं मिलती है सिवाय इसके कि लोग अपनी अपनी पसंद की पार्टियों को बहस में जीतते देख खुश हो लेते हैं। संसद में नेताओं के भाषण की संजीदगी का इम्तहान लेना हो तो आप किसी मंडी में चले जाइये। मैं अन्य राज्यों की मंडियों की बात नहीं कह सकता लेकिन उत्तर प्रदेश और हरियाणा की मंडियां देखी हैं। महाराष्ट्र की मंडी देखी है काफी हाईटेक किस्म की लेकिन वहां भी तो किसान आत्महत्या कर रहा है। फिर भी अगर किसानों को लेकर प्रधानमंत्री पर इतना दबाव है कि वे उदास स्वर में संसद में बोल रहे हैं तो राज्यों के मंत्रियों, अफसरों और कर्मचारियों पर वैसा दबाव क्यों नहीं है। अब मैं आढ़ती, बैंक, मंडी और किसान सिस्टम का नेटवर्क समझाता हूं। मैं दावा नहीं करता कि मेरी समझ पूरी है पर जितना कच्चा पक्का समझा है वो आपके सामने रखना चाहता हूं। राज्य सरकारें अपने निगमों के ज़रिये मंडियों से अनाज खरीदती हैं। किसान और इन निगमों के बीच एक मध्यस्थ होता है जिसे हम एजेंट और आढ़ती कहते हैं। ये आढ़ती पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और ज़्यादातर एक ही जातिगत समाज से संबंध रखते हैं। किसान खेत से गेहूं लेकर आता है और मंडी में रख देता है। उसके बाद एक कर्मचारी आता है तो गेहूं की नमी की मात्रा तय करता है और परचेज़ इंस्पेक्टर को ख़रीदने की अनुमति दे देता है। किसान के उस गेहूं को तौलने से लेकर बोरे में भरने और ट्रक में लादकर निगमों के गोदामों तक पहुंचाने का काम आढ़ती का है। इसके लिए आढ़ती को हर पचास किलो गेहूं की बोरी पर छह रुपये की मज़दूरी देनी पड़ती है। बदले में खरीदने वाली एजेंसी आढ़ती को ढाई प्रतिशत का कमीशन देती है। अगर 1450 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं का ख़रीद मूल्य है तो उसमें आढ़ती को 35-36 रुपये मिलते हैं। अब मैं यह नहीं समझ सका कि यह ढाई प्रतिशत अलग से आढ़ती को मिलता है या वो गेंहू को बोरे में भरने की मज़दूरी और कमीशन का पैसा 1450 में से ही काट लेता है। आढ़ती ट्रकों से एजेंसियों के पास पहुंचा देता है। ख़रीद एजेंसियां गेहूं की क्वालिटी की जांच करती हैं और कमी पाए जाने पर 1450 रुपये में से कुछ हिस्सा काट लेती हैं। इसके लिए नमी की मात्रा से लेकर टूटे हुए दानों की मात्रा का प्रतिशत तय होता है। यह इतना जटिल होता है कि आप अलजेबरा में पास हो जायेंगे मगर आढ़ती के यहां नहीं। आढ़ती कहता है कि अगर उसने किसानों को 1450 रुपये दे दिये और खरीद एजेंसी ने क्वालिटी के आधार पर कम भुगतान किया तो उसका नुकसान हो जाएगा। वैसे किसान को कभी पता ही नहीं चलेगा कि उसके गेहूं की क्वालिटी को किस आधार पर और किस मात्रा में कमज़ोर बताकर पैसा काटा गया है। अब यह आढ़ती की ईमानदारी पर ही निर्भर करता है। इसलिए मंडी में आढ़ती किसानों को पक्की पर्ची नहीं देता। जबकि आढ़ती को पक्की पर्ची देनी चाहिए जिसे जे फॉर्म कहते हैं। इस रसीद में गांव और किसान के नाम के साथ गेहूं की कुल कीमत और रेट लिखा होता है। पक्की पर्ची देने का मतलब पूरा पैसा देना होगा। कच्ची पक्की देने का मतलब है कि आढ़ती बाद में किसान का पैसा काट देगा कि आपके गेहूं का दाम 1300 रुपया ही मिला है। कानूनन उसे कच्ची पर्ची नहीं देनी चाहिए। तब जब सरकार ने कह दिया है कि सब गेहूं खरीदा जाएगा। मीडिया में ऐसी ख़बरें आती हैं मगर ज़मीन पर सब नहीं ख़रीदा जाता। कौन सा गेहूं खरीदा जाएगा इसके लिए नियमों की तमाम परतें तय होती हैं। एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहां किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं। इसका दूसरा पक्ष और भी है। आढ़ती शोषण का कारण हो सकता है तो यही मुसीबत में किसानों का साथी भी है। किसान कहते हैं कि बैंक वाले कर्ज़ देने के लिए ज़मीन गिरवी पर रखवा लेते हैं। काग़ज़ी कार्रवाई में ही काफी वक्त निकल जाता है जबकि आढ़ती विश्वास के आधार पर कर्ज़ दे देता है। जब किसान के पास अतिरिक्त पैसा होता है तो वो आढ़ती के यहां ही निवेश करता है क्योंकि आढ़ती बैंक से ज़्यादा ब्याज़ देता है। किसान आढ़ती से नाराज़ हो सकता है मगर उसके ख़िलाफ खुला विद्रोह नहीं करेगा क्योंकि वो एक चक्र में फंसा है। किसानों ने कहा कि वे बैंक से ज्यादा आढ़ती से कर्ज़ा लेते हैं। बैंक तो ज़मीन के बदले खेती के लिए लोन देता है, पर्सनल लोन नहीं देता। आढ़ती पर्सनल लोन भी देता है। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। विकास का विकल्प कौन सा विकास है ये कोई नहीं बताता बल्कि उसकी जगह कार्यकुशलता और मोबाइल फोन के ऐप्स को नया विकास बता देता है। इसलिए तमाम राजनीतिक बहसों से हमारी आपकी समझ साफ नहीं हो पाती है कि ये विकास नहीं है तो दूसरा विकास क्या है। हमारी खेती एक गंभीर संकट से गुज़र रही है। पिछले कई सालों से गुज़र रही है। केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक कोई अपने काम का हिसाब नहीं देता कि हमने ये किया और खेती को संकट से उबार लिया। वो कहते हैं कांग्रेस और कांग्रेस कहती है बीजेपी। कोई साठ साल की दुहाई देता है तो कोई पंद्रह साल किसी राज्य में सरकार चलाकर भी नहीं बता पा रहा है कि हमने इसका समाधान किया है। लिहाज़ा इस बहस से भी हमें कोई विशेष समझ नहीं मिलती है सिवाय इसके कि लोग अपनी अपनी पसंद की पार्टियों को बहस में जीतते देख खुश हो लेते हैं। संसद में नेताओं के भाषण की संजीदगी का इम्तहान लेना हो तो आप किसी मंडी में चले जाइये। मैं अन्य राज्यों की मंडियों की बात नहीं कह सकता लेकिन उत्तर प्रदेश और हरियाणा की मंडियां देखी हैं। महाराष्ट्र की मंडी देखी है काफी हाईटेक किस्म की लेकिन वहां भी तो किसान आत्महत्या कर रहा है। फिर भी अगर किसानों को लेकर प्रधानमंत्री पर इतना दबाव है कि वे उदास स्वर में संसद में बोल रहे हैं तो राज्यों के मंत्रियों, अफसरों और कर्मचारियों पर वैसा दबाव क्यों नहीं है। अब मैं आढ़ती, बैंक, मंडी और किसान सिस्टम का नेटवर्क समझाता हूं। मैं दावा नहीं करता कि मेरी समझ पूरी है पर जितना कच्चा पक्का समझा है वो आपके सामने रखना चाहता हूं। राज्य सरकारें अपने निगमों के ज़रिये मंडियों से अनाज खरीदती हैं। किसान और इन निगमों के बीच एक मध्यस्थ होता है जिसे हम एजेंट और आढ़ती कहते हैं। ये आढ़ती पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और ज़्यादातर एक ही जातिगत समाज से संबंध रखते हैं। किसान खेत से गेहूं लेकर आता है और मंडी में रख देता है। उसके बाद एक कर्मचारी आता है तो गेहूं की नमी की मात्रा तय करता है और परचेज़ इंस्पेक्टर को ख़रीदने की अनुमति दे देता है। किसान के उस गेहूं को तौलने से लेकर बोरे में भरने और ट्रक में लादकर निगमों के गोदामों तक पहुंचाने का काम आढ़ती का है। इसके लिए आढ़ती को हर पचास किलो गेहूं की बोरी पर छह रुपये की मज़दूरी देनी पड़ती है। बदले में खरीदने वाली एजेंसी आढ़ती को ढाई प्रतिशत का कमीशन देती है। अगर 1450 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं का ख़रीद मूल्य है तो उसमें आढ़ती को 35-36 रुपये मिलते हैं। अब मैं यह नहीं समझ सका कि यह ढाई प्रतिशत अलग से आढ़ती को मिलता है या वो गेंहू को बोरे में भरने की मज़दूरी और कमीशन का पैसा 1450 में से ही काट लेता है। आढ़ती ट्रकों से एजेंसियों के पास पहुंचा देता है। ख़रीद एजेंसियां गेहूं की क्वालिटी की जांच करती हैं और कमी पाए जाने पर 1450 रुपये में से कुछ हिस्सा काट लेती हैं। इसके लिए नमी की मात्रा से लेकर टूटे हुए दानों की मात्रा का प्रतिशत तय होता है। यह इतना जटिल होता है कि आप अलजेबरा में पास हो जायेंगे मगर आढ़ती के यहां नहीं। आढ़ती कहता है कि अगर उसने किसानों को 1450 रुपये दे दिये और खरीद एजेंसी ने क्वालिटी के आधार पर कम भुगतान किया तो उसका नुकसान हो जाएगा। वैसे किसान को कभी पता ही नहीं चलेगा कि उसके गेहूं की क्वालिटी को किस आधार पर और किस मात्रा में कमज़ोर बताकर पैसा काटा गया है। अब यह आढ़ती की ईमानदारी पर ही निर्भर करता है। इसलिए मंडी में आढ़ती किसानों को पक्की पर्ची नहीं देता। जबकि आढ़ती को पक्की पर्ची देनी चाहिए जिसे जे फॉर्म कहते हैं। इस रसीद में गांव और किसान के नाम के साथ गेहूं की कुल कीमत और रेट लिखा होता है। पक्की पर्ची देने का मतलब पूरा पैसा देना होगा। कच्ची पक्की देने का मतलब है कि आढ़ती बाद में किसान का पैसा काट देगा कि आपके गेहूं का दाम 1300 रुपया ही मिला है। कानूनन उसे कच्ची पर्ची नहीं देनी चाहिए। तब जब सरकार ने कह दिया है कि सब गेहूं खरीदा जाएगा। मीडिया में ऐसी ख़बरें आती हैं मगर ज़मीन पर सब नहीं ख़रीदा जाता। कौन सा गेहूं खरीदा जाएगा इसके लिए नियमों की तमाम परतें तय होती हैं। एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहां किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं। इसका दूसरा पक्ष और भी है। आढ़ती शोषण का कारण हो सकता है तो यही मुसीबत में किसानों का साथी भी है। किसान कहते हैं कि बैंक वाले कर्ज़ देने के लिए ज़मीन गिरवी पर रखवा लेते हैं। काग़ज़ी कार्रवाई में ही काफी वक्त निकल जाता है जबकि आढ़ती विश्वास के आधार पर कर्ज़ दे देता है। जब किसान के पास अतिरिक्त पैसा होता है तो वो आढ़ती के यहां ही निवेश करता है क्योंकि आढ़ती बैंक से ज़्यादा ब्याज़ देता है। किसान आढ़ती से नाराज़ हो सकता है मगर उसके ख़िलाफ खुला विद्रोह नहीं करेगा क्योंकि वो एक चक्र में फंसा है। किसानों ने कहा कि वे बैंक से ज्यादा आढ़ती से कर्ज़ा लेते हैं। बैंक तो ज़मीन के बदले खेती के लिए लोन देता है, पर्सनल लोन नहीं देता। आढ़ती पर्सनल लोन भी देता है। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। हमारी खेती एक गंभीर संकट से गुज़र रही है। पिछले कई सालों से गुज़र रही है। केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक कोई अपने काम का हिसाब नहीं देता कि हमने ये किया और खेती को संकट से उबार लिया। वो कहते हैं कांग्रेस और कांग्रेस कहती है बीजेपी। कोई साठ साल की दुहाई देता है तो कोई पंद्रह साल किसी राज्य में सरकार चलाकर भी नहीं बता पा रहा है कि हमने इसका समाधान किया है। लिहाज़ा इस बहस से भी हमें कोई विशेष समझ नहीं मिलती है सिवाय इसके कि लोग अपनी अपनी पसंद की पार्टियों को बहस में जीतते देख खुश हो लेते हैं। संसद में नेताओं के भाषण की संजीदगी का इम्तहान लेना हो तो आप किसी मंडी में चले जाइये। मैं अन्य राज्यों की मंडियों की बात नहीं कह सकता लेकिन उत्तर प्रदेश और हरियाणा की मंडियां देखी हैं। महाराष्ट्र की मंडी देखी है काफी हाईटेक किस्म की लेकिन वहां भी तो किसान आत्महत्या कर रहा है। फिर भी अगर किसानों को लेकर प्रधानमंत्री पर इतना दबाव है कि वे उदास स्वर में संसद में बोल रहे हैं तो राज्यों के मंत्रियों, अफसरों और कर्मचारियों पर वैसा दबाव क्यों नहीं है। अब मैं आढ़ती, बैंक, मंडी और किसान सिस्टम का नेटवर्क समझाता हूं। मैं दावा नहीं करता कि मेरी समझ पूरी है पर जितना कच्चा पक्का समझा है वो आपके सामने रखना चाहता हूं। राज्य सरकारें अपने निगमों के ज़रिये मंडियों से अनाज खरीदती हैं। किसान और इन निगमों के बीच एक मध्यस्थ होता है जिसे हम एजेंट और आढ़ती कहते हैं। ये आढ़ती पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और ज़्यादातर एक ही जातिगत समाज से संबंध रखते हैं। किसान खेत से गेहूं लेकर आता है और मंडी में रख देता है। उसके बाद एक कर्मचारी आता है तो गेहूं की नमी की मात्रा तय करता है और परचेज़ इंस्पेक्टर को ख़रीदने की अनुमति दे देता है। किसान के उस गेहूं को तौलने से लेकर बोरे में भरने और ट्रक में लादकर निगमों के गोदामों तक पहुंचाने का काम आढ़ती का है। इसके लिए आढ़ती को हर पचास किलो गेहूं की बोरी पर छह रुपये की मज़दूरी देनी पड़ती है। बदले में खरीदने वाली एजेंसी आढ़ती को ढाई प्रतिशत का कमीशन देती है। अगर 1450 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं का ख़रीद मूल्य है तो उसमें आढ़ती को 35-36 रुपये मिलते हैं। अब मैं यह नहीं समझ सका कि यह ढाई प्रतिशत अलग से आढ़ती को मिलता है या वो गेंहू को बोरे में भरने की मज़दूरी और कमीशन का पैसा 1450 में से ही काट लेता है। आढ़ती ट्रकों से एजेंसियों के पास पहुंचा देता है। ख़रीद एजेंसियां गेहूं की क्वालिटी की जांच करती हैं और कमी पाए जाने पर 1450 रुपये में से कुछ हिस्सा काट लेती हैं। इसके लिए नमी की मात्रा से लेकर टूटे हुए दानों की मात्रा का प्रतिशत तय होता है। यह इतना जटिल होता है कि आप अलजेबरा में पास हो जायेंगे मगर आढ़ती के यहां नहीं। आढ़ती कहता है कि अगर उसने किसानों को 1450 रुपये दे दिये और खरीद एजेंसी ने क्वालिटी के आधार पर कम भुगतान किया तो उसका नुकसान हो जाएगा। वैसे किसान को कभी पता ही नहीं चलेगा कि उसके गेहूं की क्वालिटी को किस आधार पर और किस मात्रा में कमज़ोर बताकर पैसा काटा गया है। अब यह आढ़ती की ईमानदारी पर ही निर्भर करता है। इसलिए मंडी में आढ़ती किसानों को पक्की पर्ची नहीं देता। जबकि आढ़ती को पक्की पर्ची देनी चाहिए जिसे जे फॉर्म कहते हैं। इस रसीद में गांव और किसान के नाम के साथ गेहूं की कुल कीमत और रेट लिखा होता है। पक्की पर्ची देने का मतलब पूरा पैसा देना होगा। कच्ची पक्की देने का मतलब है कि आढ़ती बाद में किसान का पैसा काट देगा कि आपके गेहूं का दाम 1300 रुपया ही मिला है। कानूनन उसे कच्ची पर्ची नहीं देनी चाहिए। तब जब सरकार ने कह दिया है कि सब गेहूं खरीदा जाएगा। मीडिया में ऐसी ख़बरें आती हैं मगर ज़मीन पर सब नहीं ख़रीदा जाता। कौन सा गेहूं खरीदा जाएगा इसके लिए नियमों की तमाम परतें तय होती हैं। एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहां किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं। इसका दूसरा पक्ष और भी है। आढ़ती शोषण का कारण हो सकता है तो यही मुसीबत में किसानों का साथी भी है। किसान कहते हैं कि बैंक वाले कर्ज़ देने के लिए ज़मीन गिरवी पर रखवा लेते हैं। काग़ज़ी कार्रवाई में ही काफी वक्त निकल जाता है जबकि आढ़ती विश्वास के आधार पर कर्ज़ दे देता है। जब किसान के पास अतिरिक्त पैसा होता है तो वो आढ़ती के यहां ही निवेश करता है क्योंकि आढ़ती बैंक से ज़्यादा ब्याज़ देता है। किसान आढ़ती से नाराज़ हो सकता है मगर उसके ख़िलाफ खुला विद्रोह नहीं करेगा क्योंकि वो एक चक्र में फंसा है। किसानों ने कहा कि वे बैंक से ज्यादा आढ़ती से कर्ज़ा लेते हैं। बैंक तो ज़मीन के बदले खेती के लिए लोन देता है, पर्सनल लोन नहीं देता। आढ़ती पर्सनल लोन भी देता है। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। संसद में नेताओं के भाषण की संजीदगी का इम्तहान लेना हो तो आप किसी मंडी में चले जाइये। मैं अन्य राज्यों की मंडियों की बात नहीं कह सकता लेकिन उत्तर प्रदेश और हरियाणा की मंडियां देखी हैं। महाराष्ट्र की मंडी देखी है काफी हाईटेक किस्म की लेकिन वहां भी तो किसान आत्महत्या कर रहा है। फिर भी अगर किसानों को लेकर प्रधानमंत्री पर इतना दबाव है कि वे उदास स्वर में संसद में बोल रहे हैं तो राज्यों के मंत्रियों, अफसरों और कर्मचारियों पर वैसा दबाव क्यों नहीं है। अब मैं आढ़ती, बैंक, मंडी और किसान सिस्टम का नेटवर्क समझाता हूं। मैं दावा नहीं करता कि मेरी समझ पूरी है पर जितना कच्चा पक्का समझा है वो आपके सामने रखना चाहता हूं। राज्य सरकारें अपने निगमों के ज़रिये मंडियों से अनाज खरीदती हैं। किसान और इन निगमों के बीच एक मध्यस्थ होता है जिसे हम एजेंट और आढ़ती कहते हैं। ये आढ़ती पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और ज़्यादातर एक ही जातिगत समाज से संबंध रखते हैं। किसान खेत से गेहूं लेकर आता है और मंडी में रख देता है। उसके बाद एक कर्मचारी आता है तो गेहूं की नमी की मात्रा तय करता है और परचेज़ इंस्पेक्टर को ख़रीदने की अनुमति दे देता है। किसान के उस गेहूं को तौलने से लेकर बोरे में भरने और ट्रक में लादकर निगमों के गोदामों तक पहुंचाने का काम आढ़ती का है। इसके लिए आढ़ती को हर पचास किलो गेहूं की बोरी पर छह रुपये की मज़दूरी देनी पड़ती है। बदले में खरीदने वाली एजेंसी आढ़ती को ढाई प्रतिशत का कमीशन देती है। अगर 1450 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं का ख़रीद मूल्य है तो उसमें आढ़ती को 35-36 रुपये मिलते हैं। अब मैं यह नहीं समझ सका कि यह ढाई प्रतिशत अलग से आढ़ती को मिलता है या वो गेंहू को बोरे में भरने की मज़दूरी और कमीशन का पैसा 1450 में से ही काट लेता है। आढ़ती ट्रकों से एजेंसियों के पास पहुंचा देता है। ख़रीद एजेंसियां गेहूं की क्वालिटी की जांच करती हैं और कमी पाए जाने पर 1450 रुपये में से कुछ हिस्सा काट लेती हैं। इसके लिए नमी की मात्रा से लेकर टूटे हुए दानों की मात्रा का प्रतिशत तय होता है। यह इतना जटिल होता है कि आप अलजेबरा में पास हो जायेंगे मगर आढ़ती के यहां नहीं। आढ़ती कहता है कि अगर उसने किसानों को 1450 रुपये दे दिये और खरीद एजेंसी ने क्वालिटी के आधार पर कम भुगतान किया तो उसका नुकसान हो जाएगा। वैसे किसान को कभी पता ही नहीं चलेगा कि उसके गेहूं की क्वालिटी को किस आधार पर और किस मात्रा में कमज़ोर बताकर पैसा काटा गया है। अब यह आढ़ती की ईमानदारी पर ही निर्भर करता है। इसलिए मंडी में आढ़ती किसानों को पक्की पर्ची नहीं देता। जबकि आढ़ती को पक्की पर्ची देनी चाहिए जिसे जे फॉर्म कहते हैं। इस रसीद में गांव और किसान के नाम के साथ गेहूं की कुल कीमत और रेट लिखा होता है। पक्की पर्ची देने का मतलब पूरा पैसा देना होगा। कच्ची पक्की देने का मतलब है कि आढ़ती बाद में किसान का पैसा काट देगा कि आपके गेहूं का दाम 1300 रुपया ही मिला है। कानूनन उसे कच्ची पर्ची नहीं देनी चाहिए। तब जब सरकार ने कह दिया है कि सब गेहूं खरीदा जाएगा। मीडिया में ऐसी ख़बरें आती हैं मगर ज़मीन पर सब नहीं ख़रीदा जाता। कौन सा गेहूं खरीदा जाएगा इसके लिए नियमों की तमाम परतें तय होती हैं। एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहां किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं। इसका दूसरा पक्ष और भी है। आढ़ती शोषण का कारण हो सकता है तो यही मुसीबत में किसानों का साथी भी है। किसान कहते हैं कि बैंक वाले कर्ज़ देने के लिए ज़मीन गिरवी पर रखवा लेते हैं। काग़ज़ी कार्रवाई में ही काफी वक्त निकल जाता है जबकि आढ़ती विश्वास के आधार पर कर्ज़ दे देता है। जब किसान के पास अतिरिक्त पैसा होता है तो वो आढ़ती के यहां ही निवेश करता है क्योंकि आढ़ती बैंक से ज़्यादा ब्याज़ देता है। किसान आढ़ती से नाराज़ हो सकता है मगर उसके ख़िलाफ खुला विद्रोह नहीं करेगा क्योंकि वो एक चक्र में फंसा है। किसानों ने कहा कि वे बैंक से ज्यादा आढ़ती से कर्ज़ा लेते हैं। बैंक तो ज़मीन के बदले खेती के लिए लोन देता है, पर्सनल लोन नहीं देता। आढ़ती पर्सनल लोन भी देता है। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। राज्य सरकारें अपने निगमों के ज़रिये मंडियों से अनाज खरीदती हैं। किसान और इन निगमों के बीच एक मध्यस्थ होता है जिसे हम एजेंट और आढ़ती कहते हैं। ये आढ़ती पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और ज़्यादातर एक ही जातिगत समाज से संबंध रखते हैं। किसान खेत से गेहूं लेकर आता है और मंडी में रख देता है। उसके बाद एक कर्मचारी आता है तो गेहूं की नमी की मात्रा तय करता है और परचेज़ इंस्पेक्टर को ख़रीदने की अनुमति दे देता है। किसान के उस गेहूं को तौलने से लेकर बोरे में भरने और ट्रक में लादकर निगमों के गोदामों तक पहुंचाने का काम आढ़ती का है। इसके लिए आढ़ती को हर पचास किलो गेहूं की बोरी पर छह रुपये की मज़दूरी देनी पड़ती है। बदले में खरीदने वाली एजेंसी आढ़ती को ढाई प्रतिशत का कमीशन देती है। अगर 1450 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं का ख़रीद मूल्य है तो उसमें आढ़ती को 35-36 रुपये मिलते हैं। अब मैं यह नहीं समझ सका कि यह ढाई प्रतिशत अलग से आढ़ती को मिलता है या वो गेंहू को बोरे में भरने की मज़दूरी और कमीशन का पैसा 1450 में से ही काट लेता है। आढ़ती ट्रकों से एजेंसियों के पास पहुंचा देता है। ख़रीद एजेंसियां गेहूं की क्वालिटी की जांच करती हैं और कमी पाए जाने पर 1450 रुपये में से कुछ हिस्सा काट लेती हैं। इसके लिए नमी की मात्रा से लेकर टूटे हुए दानों की मात्रा का प्रतिशत तय होता है। यह इतना जटिल होता है कि आप अलजेबरा में पास हो जायेंगे मगर आढ़ती के यहां नहीं। आढ़ती कहता है कि अगर उसने किसानों को 1450 रुपये दे दिये और खरीद एजेंसी ने क्वालिटी के आधार पर कम भुगतान किया तो उसका नुकसान हो जाएगा। वैसे किसान को कभी पता ही नहीं चलेगा कि उसके गेहूं की क्वालिटी को किस आधार पर और किस मात्रा में कमज़ोर बताकर पैसा काटा गया है। अब यह आढ़ती की ईमानदारी पर ही निर्भर करता है। इसलिए मंडी में आढ़ती किसानों को पक्की पर्ची नहीं देता। जबकि आढ़ती को पक्की पर्ची देनी चाहिए जिसे जे फॉर्म कहते हैं। इस रसीद में गांव और किसान के नाम के साथ गेहूं की कुल कीमत और रेट लिखा होता है। पक्की पर्ची देने का मतलब पूरा पैसा देना होगा। कच्ची पक्की देने का मतलब है कि आढ़ती बाद में किसान का पैसा काट देगा कि आपके गेहूं का दाम 1300 रुपया ही मिला है। कानूनन उसे कच्ची पर्ची नहीं देनी चाहिए। तब जब सरकार ने कह दिया है कि सब गेहूं खरीदा जाएगा। मीडिया में ऐसी ख़बरें आती हैं मगर ज़मीन पर सब नहीं ख़रीदा जाता। कौन सा गेहूं खरीदा जाएगा इसके लिए नियमों की तमाम परतें तय होती हैं। एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहां किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं। इसका दूसरा पक्ष और भी है। आढ़ती शोषण का कारण हो सकता है तो यही मुसीबत में किसानों का साथी भी है। किसान कहते हैं कि बैंक वाले कर्ज़ देने के लिए ज़मीन गिरवी पर रखवा लेते हैं। काग़ज़ी कार्रवाई में ही काफी वक्त निकल जाता है जबकि आढ़ती विश्वास के आधार पर कर्ज़ दे देता है। जब किसान के पास अतिरिक्त पैसा होता है तो वो आढ़ती के यहां ही निवेश करता है क्योंकि आढ़ती बैंक से ज़्यादा ब्याज़ देता है। किसान आढ़ती से नाराज़ हो सकता है मगर उसके ख़िलाफ खुला विद्रोह नहीं करेगा क्योंकि वो एक चक्र में फंसा है। किसानों ने कहा कि वे बैंक से ज्यादा आढ़ती से कर्ज़ा लेते हैं। बैंक तो ज़मीन के बदले खेती के लिए लोन देता है, पर्सनल लोन नहीं देता। आढ़ती पर्सनल लोन भी देता है। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। इसलिए मंडी में आढ़ती किसानों को पक्की पर्ची नहीं देता। जबकि आढ़ती को पक्की पर्ची देनी चाहिए जिसे जे फॉर्म कहते हैं। इस रसीद में गांव और किसान के नाम के साथ गेहूं की कुल कीमत और रेट लिखा होता है। पक्की पर्ची देने का मतलब पूरा पैसा देना होगा। कच्ची पक्की देने का मतलब है कि आढ़ती बाद में किसान का पैसा काट देगा कि आपके गेहूं का दाम 1300 रुपया ही मिला है। कानूनन उसे कच्ची पर्ची नहीं देनी चाहिए। तब जब सरकार ने कह दिया है कि सब गेहूं खरीदा जाएगा। मीडिया में ऐसी ख़बरें आती हैं मगर ज़मीन पर सब नहीं ख़रीदा जाता। कौन सा गेहूं खरीदा जाएगा इसके लिए नियमों की तमाम परतें तय होती हैं। एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहां किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं। इसका दूसरा पक्ष और भी है। आढ़ती शोषण का कारण हो सकता है तो यही मुसीबत में किसानों का साथी भी है। किसान कहते हैं कि बैंक वाले कर्ज़ देने के लिए ज़मीन गिरवी पर रखवा लेते हैं। काग़ज़ी कार्रवाई में ही काफी वक्त निकल जाता है जबकि आढ़ती विश्वास के आधार पर कर्ज़ दे देता है। जब किसान के पास अतिरिक्त पैसा होता है तो वो आढ़ती के यहां ही निवेश करता है क्योंकि आढ़ती बैंक से ज़्यादा ब्याज़ देता है। किसान आढ़ती से नाराज़ हो सकता है मगर उसके ख़िलाफ खुला विद्रोह नहीं करेगा क्योंकि वो एक चक्र में फंसा है। किसानों ने कहा कि वे बैंक से ज्यादा आढ़ती से कर्ज़ा लेते हैं। बैंक तो ज़मीन के बदले खेती के लिए लोन देता है, पर्सनल लोन नहीं देता। आढ़ती पर्सनल लोन भी देता है। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। एक नज़र में हम इस आढ़ती को हटा दें तो बहुत सी समस्या खत्म हो जाएगी। जब मंडी है, वहां किसान को आकर अनाज बेचना है और खरीदने के लिए सरकारी एजेंसी है तो स्थायी और जातिगत आधार पर ये एजेंट क्यों हैं। इसका दूसरा पक्ष और भी है। आढ़ती शोषण का कारण हो सकता है तो यही मुसीबत में किसानों का साथी भी है। किसान कहते हैं कि बैंक वाले कर्ज़ देने के लिए ज़मीन गिरवी पर रखवा लेते हैं। काग़ज़ी कार्रवाई में ही काफी वक्त निकल जाता है जबकि आढ़ती विश्वास के आधार पर कर्ज़ दे देता है। जब किसान के पास अतिरिक्त पैसा होता है तो वो आढ़ती के यहां ही निवेश करता है क्योंकि आढ़ती बैंक से ज़्यादा ब्याज़ देता है। किसान आढ़ती से नाराज़ हो सकता है मगर उसके ख़िलाफ खुला विद्रोह नहीं करेगा क्योंकि वो एक चक्र में फंसा है। किसानों ने कहा कि वे बैंक से ज्यादा आढ़ती से कर्ज़ा लेते हैं। बैंक तो ज़मीन के बदले खेती के लिए लोन देता है, पर्सनल लोन नहीं देता। आढ़ती पर्सनल लोन भी देता है। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। इसका दूसरा पक्ष और भी है। आढ़ती शोषण का कारण हो सकता है तो यही मुसीबत में किसानों का साथी भी है। किसान कहते हैं कि बैंक वाले कर्ज़ देने के लिए ज़मीन गिरवी पर रखवा लेते हैं। काग़ज़ी कार्रवाई में ही काफी वक्त निकल जाता है जबकि आढ़ती विश्वास के आधार पर कर्ज़ दे देता है। जब किसान के पास अतिरिक्त पैसा होता है तो वो आढ़ती के यहां ही निवेश करता है क्योंकि आढ़ती बैंक से ज़्यादा ब्याज़ देता है। किसान आढ़ती से नाराज़ हो सकता है मगर उसके ख़िलाफ खुला विद्रोह नहीं करेगा क्योंकि वो एक चक्र में फंसा है। किसानों ने कहा कि वे बैंक से ज्यादा आढ़ती से कर्ज़ा लेते हैं। बैंक तो ज़मीन के बदले खेती के लिए लोन देता है, पर्सनल लोन नहीं देता। आढ़ती पर्सनल लोन भी देता है। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। आढ़ती से सिर्फ पैसा आसानी से मिलता है लेकिन वसूली के नियम बेहद सख्त हैं। ब्याज़ दर बैंकों से बहुत ज़्यादा है। इतना ही नहीं, एक किसान ने बताया कि अगर दो लाख रुपये कर्ज लिया है तो एक साथ चुकाना होगा। आधा चुकाएंगे तो आढ़ती कर्ज़ की पूरी राशि पर अलग से ढाई प्रतिशत और ब्याज़ ले लेगा। इस तरह से सूद मूल से ज्यादा हो जाता है। जब देश के नेता कहते हैं कि साहूकारों से किसानों को मुक्त कराएंगे तो पूरा सच नहीं बोलते। उन्हें पता होता है कि साहूकार कौन है। आढ़ती ही वो साहूकार हैं जिसके कई सदस्य इन्हीं पार्टियों में बड़े बड़े नेता होते हैं। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। इसलिए आढ़ती खत्म होगा तो किसान और ख़त्म होगा मगर आढ़ती रहेगा तो किसान ख़त्म होगा ही। आप इस पंक्ति को ध्यान से पढ़ते रहिए और यह समझिये कि जब हम एक मकान के लिए लोन लेते हैं तो सैलरी के आधार पर पचास लाख के मकान के लिए पैंतीस लाख तक का लोन मिल जाता है। हमारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी जा सकती है। लेकिन किसान कर्ज़ लेने जाएगा तो पहले एक करोड़ की अपनी ज़मीन बैंकों के पास गिरवी रखेगा फिर उसे ढाई लाख का लोन मिलेगा। एक किसान ने आज मुझे यही बताया। मुझे बैंक से जो लोन मिलेगा वो दस या बीस साल के लिए मिलेगा किसान को ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए लोन मिलता है। मंडी में अनाज गिरते ही और भुगतान का चेक मिलते ही किसानों को फोन आने लगता है कि पहले लोन चुकाइये।टिप्पणियां अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा देने के लिए कोई चौकीदार नहीं होता। पुलिस नहीं होती। किसान रातभर जागकर अपने अनाज की चौकीदारी करता है। यह सब तब है जब टीवी चैनलों को देखकर ऐसा लगता है कि हमारे नेता किसानों के लिए कितना काम कर रहे होंगे। अब इस स्थिति में हमारे बैंक भी किसानों के साथ साहूकारों से कम अत्याचार नहीं करते हैं। फिर भी किसान क्रेडिट कार्ड ने उन्हें कई प्रकार की सुविधायें दी हैं लेकिन किसान एक ऐसे चक्र में फंसा है जिससे वो निकल ही नहीं सकता। मौसम ख़राब नहीं होने पर भी वो नहीं निकल पाता है। फर्क इतना होता है कि एक उम्मीद बन जाती है कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं। दरअसल किसानों के अच्छे दिन आते ही नहीं है। बेहतर है टीवी बंद कीजिए और मंडियों में जाइये। वहां पता चलेगा कि कैसे किसान भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। मंडियों में उनके बैठने की व्यवस्था देख आइये। आपको शर्म आएगी। रातों को पहरा 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दिए गए शीर्षक के अनुरूप एक पाठ यह हो सकता है: दिल्ली के नए मुख्य सचिव एसके श्रीवास्तव ने गुरुवार को कहा कि युवा और ईमानदार अधिकारियों की टीमें जल्द सरकार को जनोन्मुखी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की दिशा में काम करेंगी। यहां मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ बैठक के बाद श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया, "हम एक जनोन्मुखी सरकार मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा ध्यान प्रमुख रूप से भ्रष्टाचार पर है। इस काम के लिए हम जल्द युवा और ईमानदार अधिकारियों की टीमें गठित करेंगे।" उन्होंने कहा, "हालांकि, इन कामों में कुछ समय लगेगा।" 1980 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी श्रीवास्तव इससे पूर्व स्वास्थ्य मंत्रालय में तैनात थे। उन्होंने डी.एम. सपोलिया की जगह ली है, जिन पर अब दिल्ली के वित्त आयुक्त का कार्यभार है। आम आदमी पार्टी (आप) का गठन नवंबर 2012 को हुआ। इसने 4 दिसंबर को दिल्ली विधानसभा चुनावों में 70 में से 28 सीटों पर जीत हासिल की। दिल्ली की सत्ता में आकर 15 वर्षो के कांग्रेस राज को खत्म कर दिया।
अरविंद केजरीवाल- अर्थव्यवस्था जल्द ठीक नही हुई तो टैक्स नहीं आएगा अरविंद केजरीवाल- टैक्स नहीं आया तो जो घोषणाएं की हैं वे कैसे पूरी होंगी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को व्यापारियों के एक कार्यक्रम को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था के साथ ही अपनी घोषणाओं को लेकर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा, "देश की अर्थव्यस्था बेहद खराब स्थिति में है. मुझे चिंता हो रही है अगर अर्थव्यवस्था जल्द ठीक नही हुई तो अगले साल टैक्स भी नहीं आएगा तो फिर हमने जो इतनी सारी घोषणाएं की हैं, वो कैसे पूरी होंगी!" अरविंद केजरीवाल ने आगे कहा कि मंदी की चपेट में पूरा देश है और पूरे देश के लोग परेशान हैं. लोगों के रोजगार छिन गए हैं लेकिन दिल्ली वालों को हमारी तमाम योजनाओं की वजह से काफी फायदा हुआ है. रेड को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि क्योंकि वो खुद इनकम टैक्स में रह चुके हैं, ऐसे में वह जानते थे कि रेड का मतलब होता था व्यापारियों को डराकर उनसे पैसा लेना. लेकिन हमारी सरकार आने के बाद व्यापारियों में डर का माहौल नहीं है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वह खुद वैश्य समाज से आते हैं तो ऐसे में उन्हें व्यापारियों के दुख दर्द का पूरी तरह से अंदाजा है. केजरीवाल ने कहा कि व्यापारियों को पुलिस इनकम टैक्स के साथ-साथ नेताओं से भी डरना पड़ता है क्योंकि अगर कोई नाराज हो गया तो उनके लिए मुश्किल हो जाएगी. रविवार देर रात दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व्यापारियों से जुड़े एक कार्यक्रम में पहुंचे थे. वहां उन्होंने मंदी को लेकर केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला. कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल ने अपनी 5 साल की योजनाएं भी गिनाई जिसमें उन्होंने कहा कि हमने शिक्षा स्वास्थ्य और पानी के क्षेत्र में इतना काम किया है जितनी पिछली सरकारें मिलकर नहीं कर पाईं.
रेप पीड़िता के साथ सेल्फी लेने के बाद विवादों में घिरी राजस्थान महिला आयोग की सदस्य सौम्या गुर्जर ने इस्तीफा दे दिया है. RCW सदस्य सौम्या गुर्जर और चीफ सुमन शर्मा की रेप पीड़िता के साथ सेल्फी लेती तस्वीरों की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हो रही है. राजस्थान महिला आयोग की टीम रेप पीड़िता का हालचाल जानने गई थी. लेकिन बाद में ये लोग सेल्फी खींचने में व्यस्त हो गए. बाद में सेल्फी की तस्वीरें सामने आने के बाद आयोग अध्यक्ष ने कहा कि ऐसा पीड़िता को सामान्य करने के लिए किया गया होगा. थाने में ली गई थी सेल्फी ये सेल्फी जयपुर के महिला थाने में ली गई. रेप पीड़िता के साथ सेल्फी लेने वाली राजस्थान महिला आयोग की सदस्य सौम्या गुर्जर थीं, जबकि सेल्फी में राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा मुस्करा रही थीं. जेठ-ससुर ने किया रेप पिता ने 51 हजार रुपये दहेज के नहीं दिए थे तो महिला के माथे पर इसके पति ने मशीन से गोद कर लिखा था कि मेरा बाप चोर. साथ हीं हाथ और शरीर के दूसरे अंगों पर भी गालियां गुदवा दी थीं. महिला का आरोप है कि जेठ और ससुर ने रेप भी किया. इस घटना को दस दिन हो गए न तो अलवर पुलिस ने मामला दर्ज किया और न हीं जयपुर पुलिस ने. बाद में कोर्ट के निर्देश पर आमेर थाने में मामला दर्ज हुआ है.
बोइंग 747 एक बड़ा, चौड़ी बॉडी वाला (दो-गलियारे वाला) विमान है जिसमें चार पंखों पर इंजन लगे हैं। इसके पंखों में वेरिएंट के आधार पर 0.84 से 0.88 मैक की तेज, कुशल यात्रा के लिए 37.5 डिग्री का उच्च स्वीप कोण होता है। स्वीप से पंखों का फैलाव भी कम हो जाता है, जिससे 747 को मौजूदा हैंगर का उपयोग करने की अनुमति मिलती है। इकोनॉमी क्लास में 3-4-3 सीट व्यवस्था (3 सीटों का एक क्रॉस सेक्शन, एक गलियारा, 4 सीटें, एक अन्य गलियारा और 3 सीटों) और प्रथम श्रेणी में 2-3-2 लेआउट के साथ इसकी बैठने की क्षमता 366 से अधिक है। मुख्य डेक पर. ऊपरी डेक में इकोनॉमी क्लास में 3-3 सीटों की व्यवस्था और प्रथम श्रेणी में 2-2 सीटों की व्यवस्था है।
हिट फिल्म रॉक ऑन की सीक्वल 'रॉक ऑन 2' 11 नवंबर को रिलीज होने जा रही है. म्यूजिकल ड्रामा पर बेस्ड इस मल्टीस्टारर फिल्म का नया गाना रिलीज हो गया है. 'उड़ाजा रे' नाम के इस गाने को श्रद्धा कपूर पर फिल्माया गया है. इस गाने पर परफॉर्म कर रहीं फिल्म 'रॉक ऑन 2' की एक्ट्रेस श्रद्धा कपूर के डांस मूव्स काफी अट्रैक्ट कर रहे हैं. श्रद्धा कपूर ना सिर्फ गाने पर थि‍रक रही हैं बल्कि इस गाने को गाया भी श्रद्धा ने ही है. वीडियों में रॉकस्टार लुक में नजर आ रहीं श्रद्धा कपूर के ऐरियल डांस मूव्स भी मजेदार है. क्लासिकल फ्यूजन के म्यूजिक पर बेस्ड इस गाने को लिखा है जावेद अख्तर ने और इसे म्यूजिक दिया है शंकर एहसान लॉय ने. देखें 'रॉक ऑन 2' गाना 'उड़जा रे':
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में पुरानी रंजिश के चलते एक ग्यारह साल के बच्चे की हत्या कर दी गई. उसकी लाश एक पेड़ पर लटकी हुई मिली. पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है. हत्या की यह सनसनीखेज घटना हसायन थाना इलाके की है. जहां नगला डांडा गांव में रहने वाला 11 साल का आदित्य नाम का बच्चा बुधवार को घर से लापता हो गया था. तभी से उसकी तालाश की जा रही थी. गुरुवार को आदित्य की लाश गांव में ही एक पीपल के पेड़ पर लटकी मिली. गांववालों की सूचना पर पुलिस ने मौके पर पहुंच कर लाश को कब्जे में ले लिया. पंचनामे की कार्रवाई कर शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. पुलिस ने बताया कि मृतक का पिता जेल में है. और उसकी मां का निधन हो चुका है. आदित्य की हत्या का आरोप गांव के कुछ लोगों पर है. जिनसे उसके परिवार की पुरानी रंजिश थी. एएसपी राममूरत यादव का कहना है कि इस मामले में दो लोगों खिलाफ हत्या का मुकदमा लिखा गया है. पुलिस उनकी तलाश कर रही है. अभी तक उनका पता नहीं लग पाया है.
दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार की तरह हरियाणा सरकार ने गुरुवार में राज्य के बिजली उपभोक्ताओं को बड़ी राहत देने की घोषणा की। राज्य की कांग्रेस सरकार ने घरेलू उपभोक्ताओं के लिए 500 यूनिट तक की खपत पर की गई दरों में बढ़ोतरी को वापस ले लिया है, वहीं चालू वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र के लिए बिजली दरों में 60 फीसद की कटौती की गई है। इस फैसले से राज्य सरकार पर 600 करोड़ रुपये सालाना का बोझ पड़ेगा। इससे 38 लाख घरेलू ग्राहकों को लाभ होगा। ये कुल उपभोक्ताओं का 95 प्रतिशत हैं। वहीं 5.50 लाख कृषि उपभोक्ता भी इस फैसले से लाभान्वित होंगे। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बयान में कहा, 'सरकार ने 500 यूनिट तक मासिक की खपत करने वाले ग्राहकों के लिए अप्रैल, 2013 से की गई बिजली दरों में 13 फीसद की बढ़ोतरी को वापस ले लिया है। इसके अलावा वित्त वर्ष 2013-14 के लिए ईंधन अधिभार समायोजन भी वही रहेगा।' हरियाणा में घरेलू बिजली क्षेत्र के लिए दरें 1 अप्रैल, 2013 से 250 यूनिट तक की खपत के लिए 5.24 रुपये प्रति यूनिट, 250 से 500 यूनिट तक के लिए 5.94 रुपये प्रति यूनिट व 500 यूनिट से अधिक के लिए 6.32 रुपये प्रति यूनिट हैं। किसानों को राहत देते हुए हुए हुड्डा ने कहा कि कृषि उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरों में 60 फीसद की कटौती की गई है। 'अब कृषि उपभोक्ताओं 10 पैसे प्रति यूनिट या 15 प्रति बीएचपी प्रति माह का भुगतान करना होगा। अभी कृषि उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दर 25 पैसे प्रति यूनिट है।' हरियाणा सरकार पहले ही 2014-15 में बिजली की दरों में बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला कर चुकी है।
यह लेख है: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) ने कहा कि उनके भांजे रतुल पुरी के बिजनेस से उनका कोई लेना देना नहीं है. पुरी को 354 करोड़ रुपये के एक बैंक घोटाले के मामले में ईडी ने मंगलवार सुबह गिरफ्तार किया है. कमलनाथ ने मीडिया से कहा, 'मेरा उसके व्यवसाय से कोई संबंध नहीं है. मैं न तो शेयरधारक हूं, न ही डायरेक्टर. मेरे लिए यह विशुद्ध रूप से दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई प्रतीत होती है. मुझे पूरा भरोसा है कि कोर्ट सही फैसला लेगा.' इसमें सुधारात्मक कदम उठाएगा. बता दें, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 354 करोड़ रुपए के बैंक ऋण धोखाधड़ी मामले में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के भांजे एवं कारोबारी रतुल पुरी (Ratul Puri) को गिरफ्तार कर लिया है. अधिकारियों ने उन्होंने बताया कि एजेंसी के समक्ष पेश होने के बाद पुरी को धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों के तहत सोमवार को देर रात गिरफ्तार किया गया. सीबीआई द्वारा पिछले सप्ताह दर्ज प्राथमिकी का संज्ञान लेने के बाद पुरी के और अन्य के खिलाफ एक नया आपराधिक मामला दर्ज किया गया था. समझा जाता है कि एजेंसी रतुल पुरी को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती है क्योंकि वह अभी तक इस मामले की जांच में कथित तौर पर सहयोग नहीं कर रहे हैं. अधिकारियों ने बताया कि पुरी को मंगलवार को अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा. प्रवर्तन निदेशालय 3600 करोड़ रुपये के वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाला मामले में भी ‘हिन्दुस्तान पावर प्रोजेक्टस प्राइवेट (एचपीपी) लिमिटेड' के अध्यक्ष पुरी के खिलाफ जांच कर रहा है.  एक स्थानीय अदालत ने हाल ही में उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था. प्रवर्तन निदेशालय ने दलील दी थी कि पुरी सबूतों से छेड़छाड़ की कोशिश कर सकते हैं और गवाहों को फुसला सकते हैं ‘‘क्योंकि वह पहले ऐसा कर चुके हैं.''
लेख: लालू ने नीतीश कुमार पर आरोप लगाया कि उन्होंने बिहार के गरीब, दलित एवं पिछड़ों की पीठ में छुरा भोंक दिया है और उन्होंने धोखा ही नहीं राज्य के लोगों को महाधोखा दिया है.टिप्पणियां लालू ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी मिलकर यह व्यूह रचना पिछले 6 माह से कर रहे थे और यही कारण है कि विपक्ष की बैठक में नीतीश एवं उनकी पार्टी के प्रतिनिधि शामिल नहीं होते थे, जबकि नरेंद्र मोदी के एजेंडे के कार्यों जैसे नोटबंदी, जीएसटी आदि को आगे बढ़कर नीतीश कुमार समर्थन दे रहे थे. (इनपुट भाषा से) टिप्पणियां लालू ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी मिलकर यह व्यूह रचना पिछले 6 माह से कर रहे थे और यही कारण है कि विपक्ष की बैठक में नीतीश एवं उनकी पार्टी के प्रतिनिधि शामिल नहीं होते थे, जबकि नरेंद्र मोदी के एजेंडे के कार्यों जैसे नोटबंदी, जीएसटी आदि को आगे बढ़कर नीतीश कुमार समर्थन दे रहे थे. (इनपुट भाषा से) लालू ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी मिलकर यह व्यूह रचना पिछले 6 माह से कर रहे थे और यही कारण है कि विपक्ष की बैठक में नीतीश एवं उनकी पार्टी के प्रतिनिधि शामिल नहीं होते थे, जबकि नरेंद्र मोदी के एजेंडे के कार्यों जैसे नोटबंदी, जीएसटी आदि को आगे बढ़कर नीतीश कुमार समर्थन दे रहे थे. (इनपुट भाषा से) (इनपुट भाषा से)
नैनो के रूप में रतन टाटा का छोटी कार बनाने का सपना साकार तो हो गया लेकिन बिक्री के मामले में यह कार उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई. कंपनी ने सोचा था कि टू व्हीलर पर चलने वाले इस कार को हाथों-हाथ ले लेंगे. लेकिन अब इस कार की बिक्री हर महीने इतना कम है कि कंपनी को अपनी रणनीति बदलनी पड़ रही है. अंग्रेजी आर्थिक पत्र द इकोनॉमिक टाइम्स ने खबर दी है कि अब टाटा मोटर्स अपनी इस छोटी कार को नए सिरे से पेश करेगी और उसके पांच वैरियंट भी उतारेगी. पिछले चार सालों में ढाई लाख नैनो कारें भी नहीं बिक पाईं. कंपनी ने इस कार के विकास और लांच पर एक अरब डॉलर खर्च किया था. लेकिन यह बिक्री के फ्रंट पर पिछड़ गई. अब कंपनी ने इसके पांच वैरियंट उतारने का फैसला कर लिया है और इनमें उसका डीजल संस्करण भी है. कंपनी ने इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी है. इसके तहत वह नैनो ट्विस्ट, नैनो डीजल, नैनो प्लस वगैरह मॉडल पेश करेगी. ट्विस्ट में पॉवर स्टियरिंग तो होगा ही, आवाज बहुत ही कम होगी. उसका इंटीरियर बहुत सुंदर होगा. टाटा को डीजल इंजिन वाले नैनो से काफी उम्मीदें हैं. यह कार कितनी माइलेज देगी, इस पर कंपनी ने चुप्पी साध रखी है. लेकिन यह देखते हुए कि इसमें 800 सीसी का ही डीजल इंजिन होगा, बढ़िया माइलेज की उम्मीद की जा सकती है. कंपनी की कोशिश यह है कि इसमें वाइब्रेशन कम हो. डीडल कारों में यह समस्या सबसे ज्यादा होती है. कंपनी 1000 सीसी के इंजिन वाली कार पर भी काम कर रही है जिसमें बेहतर एसी होगा. उसके अलावा फॉग लैंप तथा डिस्क ब्रेक भी होगा. कंपनी ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन वाली कारों पर भी काम कर रही है. महिलाओं में इस तरह के कार की अच्छी मांग हो सकती है. कंपनी को उम्मीद है कि अगले साल इन नए वैरियंट्स से यह कार बाजार में स्थापित हो जाएगी.
दिए गए शीर्षक के अनुरूप एक पाठ यह हो सकता है: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्विटर पर वादा करते हुए लिखा है कि उत्तर कोरिया कोई भी ऐसी परमाणु मिसाइल नहीं बनाएगा, जो अमेरिकी क्षेत्र तक पहुंचने में सक्षम हो. ट्रंप का बयान उत्तर कोरिया नेता किम जोंग-उन के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने ट्रंप पर एक तरह से दबाव बनाते हुए घोषणा की थी कि उनका देश अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल के निर्माण के अंतिम चरण में पहुंच गया है. ट्रंप ने सोमवार शाम ट्वीट करके कहा, 'उत्तर कोरिया ने हाल ही में कहा है कि वह अमेरिका के हिस्सों तक पहुंचने में सक्षम होने वाला परमाणु हथियार बनाने की दिशा में अंतिम चरण में है'. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, 'यह नहीं हो पाएगा'. हालांकि वॉशिंगटन ने लगातार संकल्प जताया है कि वह उत्तर कोरिया को परमाणु देश के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं करेगा. ट्रंप ने इससे पहले कभी भी साफ तौर पर उत्तर कोरिया को लेकर अपनी नीति जाहिर नहीं की थी'. इससे पहले पिछले महीने ट्रंप ने ट्वीट करके कहा था कि अमेरिका को अपनी परमाणु क्षमताओं को मजबूत बनाना चाहिए और उनका विस्तार करना चाहिए. ट्रंप ने यह कहकर पिछले महीने एक तरह से शीत युद्ध शुरू करने का प्रयास किया. टिप्पणियां इसके अलावा नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने चीन पर भी सैन्य विस्तारवाद और मुद्रा में हेरफेर का आरोप लगाया है, लेकिन अमेरिका को उत्तर कोरिया के साथ बढ़ते टकराव को रोकने के लिए बीजिंग की जरूरत पड़ेगी. चीन उत्तर कोरिया का करीबी सहयोगी है.(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) ट्रंप का बयान उत्तर कोरिया नेता किम जोंग-उन के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने ट्रंप पर एक तरह से दबाव बनाते हुए घोषणा की थी कि उनका देश अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल के निर्माण के अंतिम चरण में पहुंच गया है. ट्रंप ने सोमवार शाम ट्वीट करके कहा, 'उत्तर कोरिया ने हाल ही में कहा है कि वह अमेरिका के हिस्सों तक पहुंचने में सक्षम होने वाला परमाणु हथियार बनाने की दिशा में अंतिम चरण में है'. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, 'यह नहीं हो पाएगा'. हालांकि वॉशिंगटन ने लगातार संकल्प जताया है कि वह उत्तर कोरिया को परमाणु देश के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं करेगा. ट्रंप ने इससे पहले कभी भी साफ तौर पर उत्तर कोरिया को लेकर अपनी नीति जाहिर नहीं की थी'. इससे पहले पिछले महीने ट्रंप ने ट्वीट करके कहा था कि अमेरिका को अपनी परमाणु क्षमताओं को मजबूत बनाना चाहिए और उनका विस्तार करना चाहिए. ट्रंप ने यह कहकर पिछले महीने एक तरह से शीत युद्ध शुरू करने का प्रयास किया. टिप्पणियां इसके अलावा नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने चीन पर भी सैन्य विस्तारवाद और मुद्रा में हेरफेर का आरोप लगाया है, लेकिन अमेरिका को उत्तर कोरिया के साथ बढ़ते टकराव को रोकने के लिए बीजिंग की जरूरत पड़ेगी. चीन उत्तर कोरिया का करीबी सहयोगी है.(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) ट्रंप ने सोमवार शाम ट्वीट करके कहा, 'उत्तर कोरिया ने हाल ही में कहा है कि वह अमेरिका के हिस्सों तक पहुंचने में सक्षम होने वाला परमाणु हथियार बनाने की दिशा में अंतिम चरण में है'. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, 'यह नहीं हो पाएगा'. हालांकि वॉशिंगटन ने लगातार संकल्प जताया है कि वह उत्तर कोरिया को परमाणु देश के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं करेगा. ट्रंप ने इससे पहले कभी भी साफ तौर पर उत्तर कोरिया को लेकर अपनी नीति जाहिर नहीं की थी'. इससे पहले पिछले महीने ट्रंप ने ट्वीट करके कहा था कि अमेरिका को अपनी परमाणु क्षमताओं को मजबूत बनाना चाहिए और उनका विस्तार करना चाहिए. ट्रंप ने यह कहकर पिछले महीने एक तरह से शीत युद्ध शुरू करने का प्रयास किया. टिप्पणियां इसके अलावा नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने चीन पर भी सैन्य विस्तारवाद और मुद्रा में हेरफेर का आरोप लगाया है, लेकिन अमेरिका को उत्तर कोरिया के साथ बढ़ते टकराव को रोकने के लिए बीजिंग की जरूरत पड़ेगी. चीन उत्तर कोरिया का करीबी सहयोगी है.(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) इससे पहले पिछले महीने ट्रंप ने ट्वीट करके कहा था कि अमेरिका को अपनी परमाणु क्षमताओं को मजबूत बनाना चाहिए और उनका विस्तार करना चाहिए. ट्रंप ने यह कहकर पिछले महीने एक तरह से शीत युद्ध शुरू करने का प्रयास किया. टिप्पणियां इसके अलावा नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने चीन पर भी सैन्य विस्तारवाद और मुद्रा में हेरफेर का आरोप लगाया है, लेकिन अमेरिका को उत्तर कोरिया के साथ बढ़ते टकराव को रोकने के लिए बीजिंग की जरूरत पड़ेगी. चीन उत्तर कोरिया का करीबी सहयोगी है.(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) इसके अलावा नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने चीन पर भी सैन्य विस्तारवाद और मुद्रा में हेरफेर का आरोप लगाया है, लेकिन अमेरिका को उत्तर कोरिया के साथ बढ़ते टकराव को रोकने के लिए बीजिंग की जरूरत पड़ेगी. चीन उत्तर कोरिया का करीबी सहयोगी है.(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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जानिए 10 अक्‍टूबर, 2012 को देश-दुनिया की किन खबरों पर रहेंगी निगाहें... केंद्र को समर्थन पर मायावती करेंगी फैसला बीएसपी सुप्रीमो मायावती यूपीए सरकार को समर्थन जारी रखने के बारे में बुधवार को फैसला करने वाली हैं. लोगों की निगाहें उनके संभावित फैसले की ओर टिकी हुई हैं. इस मुद्दे पर लखनऊ में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है. लोकसभा में बीएसपी के 21 सांसद हैं. मायावती की पार्टी सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. लोकसभा की 2 सीटों पर उपचुनाव लोकसभा की 2 सीटों पर बुधवार को उपचुनाव हो रहे हैं. इनमें से एक सीट पश्चिम बंगाल की जंगीपुर लोकसभा की है, जो प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने से खाली हुई थी. उत्तराखंड की टिहरी-गढ़वाल लोकसभा सीट के लिए भी वोट डाले जा रहे हैं. यहां मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की वजह से खाली हुई सीट पर उनके बेटे साकेत बहुगुणा उम्मीदवार हैं. 'ऑपरेशन धृतराष्‍ट्र' से मची खलबली कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट द्वारा समाजसेवा के नाम पर सरकारी फंड में भारी धांधली की बात उजागर होने के बाद सियासी गलियारों में खलबली मच गई है. यूपी के 17 जिलों में आजतक की पड़ताल से ये फर्जीवाड़ा सामने आया. विकलांगों को मिलने वाली व्हीलचेयर, हीयरिंग ऐड्स और दूसरे उपकरणों के पैसे फंड से निकले जरूर, लेकिन असली हकदारों तक नहीं पहुंच पाए. शरद पवार फिर बने एनसीपी अध्‍यक्ष शरद पवार एक बार फिर से एनसीपी अध्‍यक्ष चुन लिए गए हैं. देखना है कि शरद पवार यूपीए सरकार में रहकर आगे किस तरह की सियासत करना पसंद करते हैं. अमिताभ को अभी से जन्‍मदिन की शुभकामनाएं बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्‍चन 11 अक्‍टूबर को अपना जन्‍मदिन मनाने वाले हैं. उनके प्रशंसकों की निगाहें अभी से घडि़यों की ओर टिक गई हैं कि कब बजेंगे रात के बारह.
टैबलेट 'आकाश 4' अगले साल जनवरी तक पेश कर दिया जाएगा. भारत के छात्रों की एजुकेशन को नया आयाम देने के लिए इस टेबलेट में देश की कई क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ने और लिखने की सुविधा होगी. सूचना संचार प्रौद्योगिकी के जरिए राष्ट्रीय उच्च शिक्षा कार्यक्रम (एनएमईआईसीटी) के सलाहकार प्रदीप शर्मा ने बताया कि नए आकाश में अब छात्रों को क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ने और लिखने की सुविधा मिलेगी. आकाश-4 में हिंदी, कन्नड़, तेलगू, मलयाली, तमिल, मराठी, गुजराती, पंजाबी, बांग्ला, ओड़िया, असमिया, उर्दू, मणिपुरी, संस्कृत, देवनागरी आदि भाषाओं में पढ़ने और लिखने की सुविधा होगी. उन्होंने कहा कि आकाश-4 में ऑडियो-वीडियो चैट कांफ्रेंस की सुविधा भी होगी. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि नया आकाश-4 अगले साल जनवरी तक पेश किए जाने की संभावना है. आकाश-4 के मसौदे के अनुसार, इसमें 1 जीबी मेमोरी, 4 जीबी या अधिक की इंटरनल स्टोरेज क्षमता के साथ 2जी, 3जी और 4जी डाटा कनेक्टिविटी डोंगल की सुविधा होगी. सात इंच के टच स्क्रीन वाला आकाश-4 वाई फाई, ब्लूटूथ से जुड़ा होगा. इसकी बैटरी को बेहतर बनाया गया है और इसकी लाइफ दो साल होगी. इसमें पीडीएफ फाइल पढ़ने की सुविधा के साथ टेक्ट एडीटर और ई-बुक रीडर भी है. नए आकाश से छात्रों को उनके सवालों और उलझनों का तुरंत जवाब मिल सकेंगे. सस्ता टैबलेट आकाश के नए और उन्नत संस्करण में ‘क्लिकर’ प्रणाली जोड़ी गई है जिस पर छात्र और अध्यापक संवाद कर सकेंगे.
पाकिस्‍तान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उम्‍मीद के अनुरूप संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा में कश्‍मीर का राग अलापा. अपने भाषण के अधिकांश हिस्‍से में कश्‍मीर का ही जिक्र करते रहे. उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान तो भारत के साथ बातचीत के लिए तैयार है लेकिन भारत पर ''अस्‍वीकार्य'' शर्तें लादने का आरोप लगाया. शरीफ ने कश्‍मीर में जारी हिंसा का मसला उठाते हुए हिजबुल मुजाहिदीन के मारे गए आतंकी बुरहान वानी को कश्‍मीरी आंदोलन का नेता बताया. नवाज शरीफ के बयान का जवाब देते हुए कहा भारत के विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर ने कहा कि वह ''उरी हमले में पाकिस्‍तान की भूमिका'' को पूरी तरह से नकारने में तुले हैं और आतंकी बुरहान वानी का महिमामंडन आतंकवाद से पाकिस्‍तान के जुड़ाव को दर्शाता है. बुरहान वानी को नेता बताना शर्मनाक है और आतंकी की तारीफ से भारत हैरान है. अकबर ने कहा, 'हमने एक आतंकवादी का महिमामंडन सुना. वानी हिज्बुल का घोषित कमांडर था, जिसे आतंकी समूह के तौर पर जाना जाता है. यह हैरान करने वाली बात है कि एक राष्ट्र का नेता स्व प्रचारित आतंकवादी का इस तरह के मंच पर महिमामंडन कर सकता है. यह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा आत्म दोषारोपण है.'   वहीं पाकिस्तान द्वारा अतिरिक्त कदम उठाते हुए बातचीत के लिए लगातार कोशिशों के नवाज शरीफ के दावे पर अकबर ने कहा, 'हमें पहला कदम ही नहीं दिखा, फिर अतिरिक्त कदम का सवाल कहां आता है?' उन्होंने साथ ही कहा कि पाकिस्तान 'अपने एक हाथ में बंदूक थामकर' बातचीत करना चाहता है. वार्ता और हिंसा दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते. उधर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण के मिनटों बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता विकास स्‍वरूप ने ट्वीट किया :   Pak PM Sharif at #UNGA glorifies Hizbul terrorist Burhan Wani in UN's highest forum. Shows continued Pak attachment to terrorism. — Vikas Swarup (@MEAIndia) September 21, 2016 इससे पहले नवाज शरीफ ने अपने भाषण में कहा, ''पाकिस्‍तान, भारत के साथ शांति चाहता है. हमने इसके लिए अतिरिक्‍त प्रयास किया है और बार-बार बातचीत का प्रस्‍ताव दिया है. लेकिन भारत ने इसके लिए अस्‍वीकार्य शर्तें थोपी हैं.''टिप्पणियां शरीफ अपने भाषण में अधिकांश समय कश्‍मीर और भारत की ही बात करते रहे. उन्‍होंने कहा, ''बातचीत से केवल पाकिस्‍तान को ही फायदा नहीं होगा. ये दोनों पक्षों के हितों में है और जश्‍मू-कश्‍मीर विवाद के समाधान और तनाव से बचने के लिए जरूरी है.'' उरी आतंकी हमले के बाद भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने 20 मिनट के भाषण में नवाज शरीफ ने कहा, ''संयुक्‍त राष्‍ट्र दक्षिण एशिया में बढ़ते तनाव को नजरअंदाज कर रहा है. पाकिस्‍तान हथियारों की होड़ में शामिल नहीं है लेकिन हम पड़ोसियों को हथियार बढ़ाते हुए देख नहीं सकते और इसका जवाब देने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह हरसंभव उपाय करेंगे.'' नवाज शरीफ के बयान का जवाब देते हुए कहा भारत के विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर ने कहा कि वह ''उरी हमले में पाकिस्‍तान की भूमिका'' को पूरी तरह से नकारने में तुले हैं और आतंकी बुरहान वानी का महिमामंडन आतंकवाद से पाकिस्‍तान के जुड़ाव को दर्शाता है. बुरहान वानी को नेता बताना शर्मनाक है और आतंकी की तारीफ से भारत हैरान है. अकबर ने कहा, 'हमने एक आतंकवादी का महिमामंडन सुना. वानी हिज्बुल का घोषित कमांडर था, जिसे आतंकी समूह के तौर पर जाना जाता है. यह हैरान करने वाली बात है कि एक राष्ट्र का नेता स्व प्रचारित आतंकवादी का इस तरह के मंच पर महिमामंडन कर सकता है. यह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा आत्म दोषारोपण है.'   वहीं पाकिस्तान द्वारा अतिरिक्त कदम उठाते हुए बातचीत के लिए लगातार कोशिशों के नवाज शरीफ के दावे पर अकबर ने कहा, 'हमें पहला कदम ही नहीं दिखा, फिर अतिरिक्त कदम का सवाल कहां आता है?' उन्होंने साथ ही कहा कि पाकिस्तान 'अपने एक हाथ में बंदूक थामकर' बातचीत करना चाहता है. वार्ता और हिंसा दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते. उधर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण के मिनटों बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता विकास स्‍वरूप ने ट्वीट किया :   Pak PM Sharif at #UNGA glorifies Hizbul terrorist Burhan Wani in UN's highest forum. Shows continued Pak attachment to terrorism. — Vikas Swarup (@MEAIndia) September 21, 2016 इससे पहले नवाज शरीफ ने अपने भाषण में कहा, ''पाकिस्‍तान, भारत के साथ शांति चाहता है. हमने इसके लिए अतिरिक्‍त प्रयास किया है और बार-बार बातचीत का प्रस्‍ताव दिया है. लेकिन भारत ने इसके लिए अस्‍वीकार्य शर्तें थोपी हैं.''टिप्पणियां शरीफ अपने भाषण में अधिकांश समय कश्‍मीर और भारत की ही बात करते रहे. उन्‍होंने कहा, ''बातचीत से केवल पाकिस्‍तान को ही फायदा नहीं होगा. ये दोनों पक्षों के हितों में है और जश्‍मू-कश्‍मीर विवाद के समाधान और तनाव से बचने के लिए जरूरी है.'' उरी आतंकी हमले के बाद भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने 20 मिनट के भाषण में नवाज शरीफ ने कहा, ''संयुक्‍त राष्‍ट्र दक्षिण एशिया में बढ़ते तनाव को नजरअंदाज कर रहा है. पाकिस्‍तान हथियारों की होड़ में शामिल नहीं है लेकिन हम पड़ोसियों को हथियार बढ़ाते हुए देख नहीं सकते और इसका जवाब देने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह हरसंभव उपाय करेंगे.'' अकबर ने कहा, 'हमने एक आतंकवादी का महिमामंडन सुना. वानी हिज्बुल का घोषित कमांडर था, जिसे आतंकी समूह के तौर पर जाना जाता है. यह हैरान करने वाली बात है कि एक राष्ट्र का नेता स्व प्रचारित आतंकवादी का इस तरह के मंच पर महिमामंडन कर सकता है. यह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा आत्म दोषारोपण है.'   वहीं पाकिस्तान द्वारा अतिरिक्त कदम उठाते हुए बातचीत के लिए लगातार कोशिशों के नवाज शरीफ के दावे पर अकबर ने कहा, 'हमें पहला कदम ही नहीं दिखा, फिर अतिरिक्त कदम का सवाल कहां आता है?' उन्होंने साथ ही कहा कि पाकिस्तान 'अपने एक हाथ में बंदूक थामकर' बातचीत करना चाहता है. वार्ता और हिंसा दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते. उधर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण के मिनटों बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता विकास स्‍वरूप ने ट्वीट किया :   Pak PM Sharif at #UNGA glorifies Hizbul terrorist Burhan Wani in UN's highest forum. Shows continued Pak attachment to terrorism. — Vikas Swarup (@MEAIndia) September 21, 2016 इससे पहले नवाज शरीफ ने अपने भाषण में कहा, ''पाकिस्‍तान, भारत के साथ शांति चाहता है. हमने इसके लिए अतिरिक्‍त प्रयास किया है और बार-बार बातचीत का प्रस्‍ताव दिया है. लेकिन भारत ने इसके लिए अस्‍वीकार्य शर्तें थोपी हैं.''टिप्पणियां शरीफ अपने भाषण में अधिकांश समय कश्‍मीर और भारत की ही बात करते रहे. उन्‍होंने कहा, ''बातचीत से केवल पाकिस्‍तान को ही फायदा नहीं होगा. ये दोनों पक्षों के हितों में है और जश्‍मू-कश्‍मीर विवाद के समाधान और तनाव से बचने के लिए जरूरी है.'' उरी आतंकी हमले के बाद भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने 20 मिनट के भाषण में नवाज शरीफ ने कहा, ''संयुक्‍त राष्‍ट्र दक्षिण एशिया में बढ़ते तनाव को नजरअंदाज कर रहा है. पाकिस्‍तान हथियारों की होड़ में शामिल नहीं है लेकिन हम पड़ोसियों को हथियार बढ़ाते हुए देख नहीं सकते और इसका जवाब देने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह हरसंभव उपाय करेंगे.'' उधर संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भाषण के मिनटों बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता विकास स्‍वरूप ने ट्वीट किया :   Pak PM Sharif at #UNGA glorifies Hizbul terrorist Burhan Wani in UN's highest forum. Shows continued Pak attachment to terrorism. — Vikas Swarup (@MEAIndia) September 21, 2016 इससे पहले नवाज शरीफ ने अपने भाषण में कहा, ''पाकिस्‍तान, भारत के साथ शांति चाहता है. हमने इसके लिए अतिरिक्‍त प्रयास किया है और बार-बार बातचीत का प्रस्‍ताव दिया है. लेकिन भारत ने इसके लिए अस्‍वीकार्य शर्तें थोपी हैं.''टिप्पणियां शरीफ अपने भाषण में अधिकांश समय कश्‍मीर और भारत की ही बात करते रहे. उन्‍होंने कहा, ''बातचीत से केवल पाकिस्‍तान को ही फायदा नहीं होगा. ये दोनों पक्षों के हितों में है और जश्‍मू-कश्‍मीर विवाद के समाधान और तनाव से बचने के लिए जरूरी है.'' उरी आतंकी हमले के बाद भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने 20 मिनट के भाषण में नवाज शरीफ ने कहा, ''संयुक्‍त राष्‍ट्र दक्षिण एशिया में बढ़ते तनाव को नजरअंदाज कर रहा है. पाकिस्‍तान हथियारों की होड़ में शामिल नहीं है लेकिन हम पड़ोसियों को हथियार बढ़ाते हुए देख नहीं सकते और इसका जवाब देने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह हरसंभव उपाय करेंगे.''   Pak PM Sharif at #UNGA glorifies Hizbul terrorist Burhan Wani in UN's highest forum. Shows continued Pak attachment to terrorism. — Vikas Swarup (@MEAIndia) September 21, 2016 इससे पहले नवाज शरीफ ने अपने भाषण में कहा, ''पाकिस्‍तान, भारत के साथ शांति चाहता है. हमने इसके लिए अतिरिक्‍त प्रयास किया है और बार-बार बातचीत का प्रस्‍ताव दिया है. लेकिन भारत ने इसके लिए अस्‍वीकार्य शर्तें थोपी हैं.''टिप्पणियां शरीफ अपने भाषण में अधिकांश समय कश्‍मीर और भारत की ही बात करते रहे. उन्‍होंने कहा, ''बातचीत से केवल पाकिस्‍तान को ही फायदा नहीं होगा. ये दोनों पक्षों के हितों में है और जश्‍मू-कश्‍मीर विवाद के समाधान और तनाव से बचने के लिए जरूरी है.'' उरी आतंकी हमले के बाद भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने 20 मिनट के भाषण में नवाज शरीफ ने कहा, ''संयुक्‍त राष्‍ट्र दक्षिण एशिया में बढ़ते तनाव को नजरअंदाज कर रहा है. पाकिस्‍तान हथियारों की होड़ में शामिल नहीं है लेकिन हम पड़ोसियों को हथियार बढ़ाते हुए देख नहीं सकते और इसका जवाब देने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह हरसंभव उपाय करेंगे.'' Pak PM Sharif at #UNGA glorifies Hizbul terrorist Burhan Wani in UN's highest forum. Shows continued Pak attachment to terrorism. शरीफ अपने भाषण में अधिकांश समय कश्‍मीर और भारत की ही बात करते रहे. उन्‍होंने कहा, ''बातचीत से केवल पाकिस्‍तान को ही फायदा नहीं होगा. ये दोनों पक्षों के हितों में है और जश्‍मू-कश्‍मीर विवाद के समाधान और तनाव से बचने के लिए जरूरी है.'' उरी आतंकी हमले के बाद भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने 20 मिनट के भाषण में नवाज शरीफ ने कहा, ''संयुक्‍त राष्‍ट्र दक्षिण एशिया में बढ़ते तनाव को नजरअंदाज कर रहा है. पाकिस्‍तान हथियारों की होड़ में शामिल नहीं है लेकिन हम पड़ोसियों को हथियार बढ़ाते हुए देख नहीं सकते और इसका जवाब देने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह हरसंभव उपाय करेंगे.'' उरी आतंकी हमले के बाद भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने 20 मिनट के भाषण में नवाज शरीफ ने कहा, ''संयुक्‍त राष्‍ट्र दक्षिण एशिया में बढ़ते तनाव को नजरअंदाज कर रहा है. पाकिस्‍तान हथियारों की होड़ में शामिल नहीं है लेकिन हम पड़ोसियों को हथियार बढ़ाते हुए देख नहीं सकते और इसका जवाब देने के लिए जो भी जरूरी होगा, वह हरसंभव उपाय करेंगे.''
देश के शेयर बाजारों में सप्ताह के पहले कारोबारी दिवस सोमवार को गिरावट के साथ कारोबार की शुरुआत की और मामूली गिरावट के साथ बंद भी हुए। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 34.53 अंकों की गिरावट के साथ 16812.30 पर जबकि निफ्टी 13.65 अंकों की गिरावट के साथ 5036.50 पर खुला और सेंसेक्स 41 अंकों की गिरावट के साथ 16805 पर जबकि निफ्टी 8 अंकों की गिरावट के साथ 5041 पर बंद हुआ।
भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर रघुराम राजन से उम्मीद यह थी कि वह मौद्रिक नीति में नरमी लाकर विकास को बढ़ावा देंगे। उन्होंने हालांकि आम उम्मीद के विपरीत नीतिगत दर में वृद्धि कर दी। राजन ने कहा कि स्थिति चिंताजनक है और नीतिगत तौर पर समुचित कदम नहीं उठाए जाने के कारण महंगाई दर पहले जताए गए स्तर से अधिक रह सकती है। रिजर्व बैंक लगभग तीन साल से महंगाई के खिलाफ जंग लड़ रहा है, हालांकि उसे अधिक सफलता नहीं मिली है। पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव 2008 -09 के आर्थिक संकट के बाद से मौद्रिक नीति में सख्ती के रास्ते पर चल रहे थे, हालांकि इसका बुरा असर विकास दर पर पड़ा। महंगाई दर पिछले साल की दूसरी छमाही से धीमे-धीमे घट रही थी और इस साल अप्रैल में यह पांच फीसदी से नीचे आ गई थी। तीन साल से कुछ अधिक समय में पहली बार महंगाई दर रिजर्व बैंक के सुविधाजनक स्तर से नीचे आई थी। महंगाई दर मई और जून में पांच फीसदी के नीचे रही, लेकिन इसके बाद इसमें वृद्धि होनी शुरू हो गई और अगस्त में यह 6.1 फीसदी रही, जो छह माह का ऊपरी स्तर है। खाद्य महंगाई दर 18.18 फीसदी के साथ और भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई। भारत में केपीएमजी के निदेशक कुंतल सुर ने कहा कि राजन भी सुब्बाराव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं और महंगाई दर को साधने की कोशिश में लग गए हैं। सुर ने कहा, "आरबीआई की प्राथमिकता महंगाई को नियंत्रित करना हो गई है।" अधिकतर विश्लेषकों का यह अनुमान है कि आने वाले महीने में महंगाई दर और बढ़ेगी।टिप्पणियां दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि अक्टूबर में महंगाई सात फीसदी से अधिक हो जाएगी। उसके बाद ही यह उच्च स्तर पर रहेगी।" सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है। राजन ने कहा कि स्थिति चिंताजनक है और नीतिगत तौर पर समुचित कदम नहीं उठाए जाने के कारण महंगाई दर पहले जताए गए स्तर से अधिक रह सकती है। रिजर्व बैंक लगभग तीन साल से महंगाई के खिलाफ जंग लड़ रहा है, हालांकि उसे अधिक सफलता नहीं मिली है। पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव 2008 -09 के आर्थिक संकट के बाद से मौद्रिक नीति में सख्ती के रास्ते पर चल रहे थे, हालांकि इसका बुरा असर विकास दर पर पड़ा। महंगाई दर पिछले साल की दूसरी छमाही से धीमे-धीमे घट रही थी और इस साल अप्रैल में यह पांच फीसदी से नीचे आ गई थी। तीन साल से कुछ अधिक समय में पहली बार महंगाई दर रिजर्व बैंक के सुविधाजनक स्तर से नीचे आई थी। महंगाई दर मई और जून में पांच फीसदी के नीचे रही, लेकिन इसके बाद इसमें वृद्धि होनी शुरू हो गई और अगस्त में यह 6.1 फीसदी रही, जो छह माह का ऊपरी स्तर है। खाद्य महंगाई दर 18.18 फीसदी के साथ और भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई। भारत में केपीएमजी के निदेशक कुंतल सुर ने कहा कि राजन भी सुब्बाराव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं और महंगाई दर को साधने की कोशिश में लग गए हैं। सुर ने कहा, "आरबीआई की प्राथमिकता महंगाई को नियंत्रित करना हो गई है।" अधिकतर विश्लेषकों का यह अनुमान है कि आने वाले महीने में महंगाई दर और बढ़ेगी।टिप्पणियां दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि अक्टूबर में महंगाई सात फीसदी से अधिक हो जाएगी। उसके बाद ही यह उच्च स्तर पर रहेगी।" सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है। रिजर्व बैंक लगभग तीन साल से महंगाई के खिलाफ जंग लड़ रहा है, हालांकि उसे अधिक सफलता नहीं मिली है। पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव 2008 -09 के आर्थिक संकट के बाद से मौद्रिक नीति में सख्ती के रास्ते पर चल रहे थे, हालांकि इसका बुरा असर विकास दर पर पड़ा। महंगाई दर पिछले साल की दूसरी छमाही से धीमे-धीमे घट रही थी और इस साल अप्रैल में यह पांच फीसदी से नीचे आ गई थी। तीन साल से कुछ अधिक समय में पहली बार महंगाई दर रिजर्व बैंक के सुविधाजनक स्तर से नीचे आई थी। महंगाई दर मई और जून में पांच फीसदी के नीचे रही, लेकिन इसके बाद इसमें वृद्धि होनी शुरू हो गई और अगस्त में यह 6.1 फीसदी रही, जो छह माह का ऊपरी स्तर है। खाद्य महंगाई दर 18.18 फीसदी के साथ और भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई। भारत में केपीएमजी के निदेशक कुंतल सुर ने कहा कि राजन भी सुब्बाराव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं और महंगाई दर को साधने की कोशिश में लग गए हैं। सुर ने कहा, "आरबीआई की प्राथमिकता महंगाई को नियंत्रित करना हो गई है।" अधिकतर विश्लेषकों का यह अनुमान है कि आने वाले महीने में महंगाई दर और बढ़ेगी।टिप्पणियां दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि अक्टूबर में महंगाई सात फीसदी से अधिक हो जाएगी। उसके बाद ही यह उच्च स्तर पर रहेगी।" सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है। पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव 2008 -09 के आर्थिक संकट के बाद से मौद्रिक नीति में सख्ती के रास्ते पर चल रहे थे, हालांकि इसका बुरा असर विकास दर पर पड़ा। महंगाई दर पिछले साल की दूसरी छमाही से धीमे-धीमे घट रही थी और इस साल अप्रैल में यह पांच फीसदी से नीचे आ गई थी। तीन साल से कुछ अधिक समय में पहली बार महंगाई दर रिजर्व बैंक के सुविधाजनक स्तर से नीचे आई थी। महंगाई दर मई और जून में पांच फीसदी के नीचे रही, लेकिन इसके बाद इसमें वृद्धि होनी शुरू हो गई और अगस्त में यह 6.1 फीसदी रही, जो छह माह का ऊपरी स्तर है। खाद्य महंगाई दर 18.18 फीसदी के साथ और भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई। भारत में केपीएमजी के निदेशक कुंतल सुर ने कहा कि राजन भी सुब्बाराव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं और महंगाई दर को साधने की कोशिश में लग गए हैं। सुर ने कहा, "आरबीआई की प्राथमिकता महंगाई को नियंत्रित करना हो गई है।" अधिकतर विश्लेषकों का यह अनुमान है कि आने वाले महीने में महंगाई दर और बढ़ेगी।टिप्पणियां दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि अक्टूबर में महंगाई सात फीसदी से अधिक हो जाएगी। उसके बाद ही यह उच्च स्तर पर रहेगी।" सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है। महंगाई दर पिछले साल की दूसरी छमाही से धीमे-धीमे घट रही थी और इस साल अप्रैल में यह पांच फीसदी से नीचे आ गई थी। तीन साल से कुछ अधिक समय में पहली बार महंगाई दर रिजर्व बैंक के सुविधाजनक स्तर से नीचे आई थी। महंगाई दर मई और जून में पांच फीसदी के नीचे रही, लेकिन इसके बाद इसमें वृद्धि होनी शुरू हो गई और अगस्त में यह 6.1 फीसदी रही, जो छह माह का ऊपरी स्तर है। खाद्य महंगाई दर 18.18 फीसदी के साथ और भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई। भारत में केपीएमजी के निदेशक कुंतल सुर ने कहा कि राजन भी सुब्बाराव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं और महंगाई दर को साधने की कोशिश में लग गए हैं। सुर ने कहा, "आरबीआई की प्राथमिकता महंगाई को नियंत्रित करना हो गई है।" अधिकतर विश्लेषकों का यह अनुमान है कि आने वाले महीने में महंगाई दर और बढ़ेगी।टिप्पणियां दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि अक्टूबर में महंगाई सात फीसदी से अधिक हो जाएगी। उसके बाद ही यह उच्च स्तर पर रहेगी।" सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है। महंगाई दर मई और जून में पांच फीसदी के नीचे रही, लेकिन इसके बाद इसमें वृद्धि होनी शुरू हो गई और अगस्त में यह 6.1 फीसदी रही, जो छह माह का ऊपरी स्तर है। खाद्य महंगाई दर 18.18 फीसदी के साथ और भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई। भारत में केपीएमजी के निदेशक कुंतल सुर ने कहा कि राजन भी सुब्बाराव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं और महंगाई दर को साधने की कोशिश में लग गए हैं। सुर ने कहा, "आरबीआई की प्राथमिकता महंगाई को नियंत्रित करना हो गई है।" अधिकतर विश्लेषकों का यह अनुमान है कि आने वाले महीने में महंगाई दर और बढ़ेगी।टिप्पणियां दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि अक्टूबर में महंगाई सात फीसदी से अधिक हो जाएगी। उसके बाद ही यह उच्च स्तर पर रहेगी।" सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है। भारत में केपीएमजी के निदेशक कुंतल सुर ने कहा कि राजन भी सुब्बाराव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं और महंगाई दर को साधने की कोशिश में लग गए हैं। सुर ने कहा, "आरबीआई की प्राथमिकता महंगाई को नियंत्रित करना हो गई है।" अधिकतर विश्लेषकों का यह अनुमान है कि आने वाले महीने में महंगाई दर और बढ़ेगी।टिप्पणियां दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि अक्टूबर में महंगाई सात फीसदी से अधिक हो जाएगी। उसके बाद ही यह उच्च स्तर पर रहेगी।" सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है। दुन एंड ब्रैडस्ट्रीट के वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण सिंह ने कहा, "हमारा अनुमान है कि अक्टूबर में महंगाई सात फीसदी से अधिक हो जाएगी। उसके बाद ही यह उच्च स्तर पर रहेगी।" सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है। सिंह ने कहा कि महंगाई कम करने में आरबीआई को अधिक सफलता नहीं मिलेगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण महंगाई बढ़ रही है।
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया है. सत्र न्यायाधीश ने लाल मस्जिद मामले में पूर्व राष्ट्रपति को ये वारंट जारी किया है. अदालत में पेश होने के आदेश वर्ष 2007 में लाल मस्जिद में हुई सैन्य कार्रवाई के दौरान मुस्लिम धर्मगुरु अब्दुल रशीद गाजी की हत्या के इस मामले में मुशर्रफ को 16 मार्च को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया गया है. अदालत ने इस मामले में पेशी से स्थायी छूट देने की मुशर्रफ की याचिका को भी नामंजूर कर दिया गया है. उनके वकील ने फैसले को चुनौती देने की बात कही है. अभी तक हाजिर नहीं हुए मुशर्रफ इस मामले में 55 सुनवाई के दौरान मुशर्रफ कभी भी अदालत में हाजिर नहीं हुए. ज्ञात हो कि 2007 में लाल मस्जिद की तीन दिवसीय सैन्य घेराबंदी में छात्रों और सैन्यकर्मियों सहित कई लोगों की जान गई थी. गाजी के परिवार ने 2013 में इस मामले में मुशर्रफ के खिलाफ मामला दर्ज कराया था.
दिए गए शीर्षक के अनुरूप एक पाठ यह हो सकता है: दिल्‍ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में बहुमत के साथ जीत हासिल करने के बाद भाजपा दोबारा से निगम में सत्‍ता संभालने को तैयार है, लेकिन सबसे अहम है कि तीनों निगमों में पार्टी की तरफ से मेयर कौन होगा. एनडीटीवी को सूत्रों से पता चला है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तीनों निगमों में मेयर पद की जिम्‍मेदारी महिला नेताओं को सौंप सकती है. सूत्रों के अनुसार, साउथ दिल्ली से शिखा राय, नंदनी शर्मा और कमलजीत सहरावत मेयर पद की संभावित उम्‍मीदवार हैं. हालांकि बताया जा रहा है कि एसडीएमसी के मेयर के लिए कमलजीत सबसे मजबूत उम्‍मीदवार हैं, क्‍योंकि उन्‍होंने साउथ दिल्‍ली में सबसे ज्‍यादा वोटों से जीत हासिल की है. वहीं, सूत्रों की मानें तो उत्तरी दिल्ली में प्रीति अग्रवाल और पूर्वी दिल्ली नगर निगम नीमा भगत या कंचन माहेश्वरी को मेयर बनाया जा सकता है.  टिप्पणियां उल्‍लेखनीय है कि एमसीडी एक्ट के मुताबिक, पहले साल सामान्य श्रेणी से महिला मेयर होती है. दूसरे साल भी यह पद सामान्य श्रेणी के लिए और तीसरे साल अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी के लिए आरक्षित होता है. आपको बता दें कि स्‍वराज इंडिया ने भी एमसीडी चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण की घोषणा की थी. एनडीटीवी को सूत्रों से पता चला है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तीनों निगमों में मेयर पद की जिम्‍मेदारी महिला नेताओं को सौंप सकती है. सूत्रों के अनुसार, साउथ दिल्ली से शिखा राय, नंदनी शर्मा और कमलजीत सहरावत मेयर पद की संभावित उम्‍मीदवार हैं. हालांकि बताया जा रहा है कि एसडीएमसी के मेयर के लिए कमलजीत सबसे मजबूत उम्‍मीदवार हैं, क्‍योंकि उन्‍होंने साउथ दिल्‍ली में सबसे ज्‍यादा वोटों से जीत हासिल की है. वहीं, सूत्रों की मानें तो उत्तरी दिल्ली में प्रीति अग्रवाल और पूर्वी दिल्ली नगर निगम नीमा भगत या कंचन माहेश्वरी को मेयर बनाया जा सकता है.  टिप्पणियां उल्‍लेखनीय है कि एमसीडी एक्ट के मुताबिक, पहले साल सामान्य श्रेणी से महिला मेयर होती है. दूसरे साल भी यह पद सामान्य श्रेणी के लिए और तीसरे साल अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी के लिए आरक्षित होता है. आपको बता दें कि स्‍वराज इंडिया ने भी एमसीडी चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण की घोषणा की थी. वहीं, सूत्रों की मानें तो उत्तरी दिल्ली में प्रीति अग्रवाल और पूर्वी दिल्ली नगर निगम नीमा भगत या कंचन माहेश्वरी को मेयर बनाया जा सकता है.  टिप्पणियां उल्‍लेखनीय है कि एमसीडी एक्ट के मुताबिक, पहले साल सामान्य श्रेणी से महिला मेयर होती है. दूसरे साल भी यह पद सामान्य श्रेणी के लिए और तीसरे साल अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी के लिए आरक्षित होता है. आपको बता दें कि स्‍वराज इंडिया ने भी एमसीडी चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण की घोषणा की थी. उल्‍लेखनीय है कि एमसीडी एक्ट के मुताबिक, पहले साल सामान्य श्रेणी से महिला मेयर होती है. दूसरे साल भी यह पद सामान्य श्रेणी के लिए और तीसरे साल अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी के लिए आरक्षित होता है. आपको बता दें कि स्‍वराज इंडिया ने भी एमसीडी चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण की घोषणा की थी. आपको बता दें कि स्‍वराज इंडिया ने भी एमसीडी चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण की घोषणा की थी.
दिए गए शीर्षक के अनुरूप एक पाठ यह हो सकता है: अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा है कि सोमवार को निकलने वाला पूर्ण चंद्रमा (सुपरमून) पिछले 69 सालों के बाद पृथ्वी के सबसे करीब होगा. नासा ने यह भी कहा है कि पृथ्वी के लोगों को इस तरह की घटना के दीदार के लिए साल 2034 तक इंतजार करना पड़ सकता है.टिप्पणियां पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा अंडाकार है, जो दो वस्तुओं के बीच समयानुसार दूरी बनाता है. जब पूर्ण चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होगा तो यह सामान्य से अधिक बड़ा और चमकदार दिखाई देगा और इसीलिए हमने इसे सुपरमून की संज्ञा दी है. नासा के अनुसार, यह सुपरमून सामान्य पूर्ण चंद्रमा से 14 से 30 प्रतिशत अधिक चमकदार हो सकता है. (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा अंडाकार है, जो दो वस्तुओं के बीच समयानुसार दूरी बनाता है. जब पूर्ण चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होगा तो यह सामान्य से अधिक बड़ा और चमकदार दिखाई देगा और इसीलिए हमने इसे सुपरमून की संज्ञा दी है. नासा के अनुसार, यह सुपरमून सामान्य पूर्ण चंद्रमा से 14 से 30 प्रतिशत अधिक चमकदार हो सकता है. (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
दिल्ली में कल से सर्दी का सितम बढ़ने लगा है। कल शाम से ही राजधानी के अलग-अलग इलाकों में तेज बारिश हुई। कुछ जगहों पर बारिश के साथ ओले भी पड़े। रातभर हुई बारिश की वजह से दिल्ली में अचानक ठंड काफी बढ़ गई है।टिप्पणियां आज सुबह भी कुछ जगहों पर बूंदाबांदी हुई। मौसम विभाग के मुताबिक बारिश के वजह से आने वाले कुछ दिनों में ठंड और बढ़ेगी। कल दिल्ली का अधिकतम तापमान 16.9 डिग्री सेल्सियस था। आज अधिकतम तापमान 13 डिग्री से 18 डिग्री के बीच होने की संभावना है। उधर, पंजाब के अमृतसर में कल से ही तेज बारिश हो रही है। ठंड में हुई अचानक बारिश की वजह से यहां का तापमान गिर गया है। बारिश के साथ यहां तेज हवाएं चलीं और जमकर ओले गिरे। यहां की सड़कें पूरी तरह ओलों से ढंक गई, जिसके बाद स्थानीय लोगों ने ओलों को सड़क से हटाया। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहुंचे श्रद्धालु भी काफी देर तक बारिश और ओले की वजह से फंसे रहे। तेज हवाओं की वजह से यहां ठंड बहुत ज्यादा बढ़ गई है। आज सुबह भी कुछ जगहों पर बूंदाबांदी हुई। मौसम विभाग के मुताबिक बारिश के वजह से आने वाले कुछ दिनों में ठंड और बढ़ेगी। कल दिल्ली का अधिकतम तापमान 16.9 डिग्री सेल्सियस था। आज अधिकतम तापमान 13 डिग्री से 18 डिग्री के बीच होने की संभावना है। उधर, पंजाब के अमृतसर में कल से ही तेज बारिश हो रही है। ठंड में हुई अचानक बारिश की वजह से यहां का तापमान गिर गया है। बारिश के साथ यहां तेज हवाएं चलीं और जमकर ओले गिरे। यहां की सड़कें पूरी तरह ओलों से ढंक गई, जिसके बाद स्थानीय लोगों ने ओलों को सड़क से हटाया। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहुंचे श्रद्धालु भी काफी देर तक बारिश और ओले की वजह से फंसे रहे। तेज हवाओं की वजह से यहां ठंड बहुत ज्यादा बढ़ गई है। उधर, पंजाब के अमृतसर में कल से ही तेज बारिश हो रही है। ठंड में हुई अचानक बारिश की वजह से यहां का तापमान गिर गया है। बारिश के साथ यहां तेज हवाएं चलीं और जमकर ओले गिरे। यहां की सड़कें पूरी तरह ओलों से ढंक गई, जिसके बाद स्थानीय लोगों ने ओलों को सड़क से हटाया। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहुंचे श्रद्धालु भी काफी देर तक बारिश और ओले की वजह से फंसे रहे। तेज हवाओं की वजह से यहां ठंड बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
यह एक लेख है: हॉरर फिल्म शृंखला ‘राज’ की दोनों ही फिल्मों में अपने अभिनय के लिए समीक्षकों की प्रशंसा बटोर चुकीं अभिनेत्री बिपाशा बसु एक और हॉरर फिल्म ‘आत्मा’ में दिखने वाली हैं। बिपाशा का कहना है कि उन्हें एक ही तरह के किरदार में बंधने का डर नहीं है। 34 वर्षीय अभिनेत्री ने कहा कि इस फिल्म से उनके अभिनय को और विस्तार मिलेगा। उनकी आने वाली फिल्म का निर्देशन सुपर्ण वर्मा ने किया है और इस फिल्म में उनके साथ नवाजुद्दीन सिद्दिकी हैं। बिपाशा ने 13 साल पहले अभिनय की दुनिया में कदम रखा था और उनकी पहली हॉरर फिल्म ‘राज’ थी।टिप्पणियां उन्होंने कहा, हालांकि, मुझे लगता है कि मुझे भूत प्रेतों पर आधारित और भी फिल्में करनी चाहिए। मैं अकेली हूं, जिसने हर तरह की फिल्में की हैं जैसे कि ‘जिस्म’ की नकारात्मक भूमिका, जिसे कोई भी प्रमुख अभिनेत्री नहीं करना चाहेगी। मैंने हास्य से लेकर थ्रिलर सभी तरह की फिल्में की हैं, जो यह दिखाता है कि मैं एक ही तरह की भूमिका में बंधी नहीं हूं। बिपाशा ने हालांकि यह माना कि बहुत कम ऐसे निर्देशक हैं, जो कलाकारों के लिए अच्छी भूमिकाएं लिखते हों, लेकिन एक अभिनेत्री के तौर पर मैं हर तरह की मनोरंजक भूमिकाएं करना पसंद करती हूं। बिपाशा ने सुपर्ण की तारीफ में कहा कि सुपर्ण थोड़े अलग हैं, उन्होंने न केवल मुझे अच्छी कहानी दी बल्कि एक अच्छी भूमिका भी करने को दी जिसका मुझे लंबे समय से इंतजार था। 34 वर्षीय अभिनेत्री ने कहा कि इस फिल्म से उनके अभिनय को और विस्तार मिलेगा। उनकी आने वाली फिल्म का निर्देशन सुपर्ण वर्मा ने किया है और इस फिल्म में उनके साथ नवाजुद्दीन सिद्दिकी हैं। बिपाशा ने 13 साल पहले अभिनय की दुनिया में कदम रखा था और उनकी पहली हॉरर फिल्म ‘राज’ थी।टिप्पणियां उन्होंने कहा, हालांकि, मुझे लगता है कि मुझे भूत प्रेतों पर आधारित और भी फिल्में करनी चाहिए। मैं अकेली हूं, जिसने हर तरह की फिल्में की हैं जैसे कि ‘जिस्म’ की नकारात्मक भूमिका, जिसे कोई भी प्रमुख अभिनेत्री नहीं करना चाहेगी। मैंने हास्य से लेकर थ्रिलर सभी तरह की फिल्में की हैं, जो यह दिखाता है कि मैं एक ही तरह की भूमिका में बंधी नहीं हूं। बिपाशा ने हालांकि यह माना कि बहुत कम ऐसे निर्देशक हैं, जो कलाकारों के लिए अच्छी भूमिकाएं लिखते हों, लेकिन एक अभिनेत्री के तौर पर मैं हर तरह की मनोरंजक भूमिकाएं करना पसंद करती हूं। बिपाशा ने सुपर्ण की तारीफ में कहा कि सुपर्ण थोड़े अलग हैं, उन्होंने न केवल मुझे अच्छी कहानी दी बल्कि एक अच्छी भूमिका भी करने को दी जिसका मुझे लंबे समय से इंतजार था। बिपाशा ने 13 साल पहले अभिनय की दुनिया में कदम रखा था और उनकी पहली हॉरर फिल्म ‘राज’ थी।टिप्पणियां उन्होंने कहा, हालांकि, मुझे लगता है कि मुझे भूत प्रेतों पर आधारित और भी फिल्में करनी चाहिए। मैं अकेली हूं, जिसने हर तरह की फिल्में की हैं जैसे कि ‘जिस्म’ की नकारात्मक भूमिका, जिसे कोई भी प्रमुख अभिनेत्री नहीं करना चाहेगी। मैंने हास्य से लेकर थ्रिलर सभी तरह की फिल्में की हैं, जो यह दिखाता है कि मैं एक ही तरह की भूमिका में बंधी नहीं हूं। बिपाशा ने हालांकि यह माना कि बहुत कम ऐसे निर्देशक हैं, जो कलाकारों के लिए अच्छी भूमिकाएं लिखते हों, लेकिन एक अभिनेत्री के तौर पर मैं हर तरह की मनोरंजक भूमिकाएं करना पसंद करती हूं। बिपाशा ने सुपर्ण की तारीफ में कहा कि सुपर्ण थोड़े अलग हैं, उन्होंने न केवल मुझे अच्छी कहानी दी बल्कि एक अच्छी भूमिका भी करने को दी जिसका मुझे लंबे समय से इंतजार था। उन्होंने कहा, हालांकि, मुझे लगता है कि मुझे भूत प्रेतों पर आधारित और भी फिल्में करनी चाहिए। मैं अकेली हूं, जिसने हर तरह की फिल्में की हैं जैसे कि ‘जिस्म’ की नकारात्मक भूमिका, जिसे कोई भी प्रमुख अभिनेत्री नहीं करना चाहेगी। मैंने हास्य से लेकर थ्रिलर सभी तरह की फिल्में की हैं, जो यह दिखाता है कि मैं एक ही तरह की भूमिका में बंधी नहीं हूं। बिपाशा ने हालांकि यह माना कि बहुत कम ऐसे निर्देशक हैं, जो कलाकारों के लिए अच्छी भूमिकाएं लिखते हों, लेकिन एक अभिनेत्री के तौर पर मैं हर तरह की मनोरंजक भूमिकाएं करना पसंद करती हूं। बिपाशा ने सुपर्ण की तारीफ में कहा कि सुपर्ण थोड़े अलग हैं, उन्होंने न केवल मुझे अच्छी कहानी दी बल्कि एक अच्छी भूमिका भी करने को दी जिसका मुझे लंबे समय से इंतजार था। बिपाशा ने सुपर्ण की तारीफ में कहा कि सुपर्ण थोड़े अलग हैं, उन्होंने न केवल मुझे अच्छी कहानी दी बल्कि एक अच्छी भूमिका भी करने को दी जिसका मुझे लंबे समय से इंतजार था।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार से दो दिनों के गुजरात दौरे पर हैं. इस कड़ी में वह सबसे पहले वो अहमदाबाद के साबरमती आश्रम पहुंचे. जहां आश्रम के 100 साल पूरा होने के समारोह में हिस्सा लिया. प्रधानमंत्री ने आश्रम में चरखा चलाया. इस अवसर पर बोलते हुए उन्‍होंने कहा कि मैं लोगों से यहां आने की अपील करता हूं. संयुक्‍त राष्‍ट्र को साबरमती आश्रम से सीख लेनी चाहिए. पीए मोदी को यहां डाक टिकट और सिक्का जारी करना है. इसके बाद शाम चार बजे पीएम पटेल समाज के गढ़ राजकोट जाएंगे जहां उन्हें आजी डैम का उद्घाटन करना है. इसके बाद यहां पीएम के कई कार्यक्रम भी होने हैं. शाम को 9 किलोमीटर का रोड शो है जिसे लेकर पूरे रास्ते को दुल्हन की तरह सजाया गया है. जहां एक ओर पूरा राजकोट पीएम मोदी के पोस्टर-बैनर से अटा पड़ा है, वहीं कांग्रेस ने पोस्टर के ज़रिए सरकार पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है,  वहीं नज़रबंद किए जाने के डर से ज़्यादातर कांग्रेस नेता अंडरग्राउंड हो गए हैं.टिप्पणियां इस आयोजन पर ख़र्च को लेकर कांग्रेस और पाटीदार आंदोलन से जुड़े लोगों ने सवाल उठाए हैं. ख़ास बात है कि महिला सशक्तिकरण और बेटी पढ़ाओ की थीम सर्कल में सुषमा स्वराज, मैरी कॉम और साइना नेहवाल के अलावा एक और चौंकाने वाला नाम है. सरकार से कई मुद्दों पर मतभेद रखनेवाली लेखिका अरुंधति राय भी इस थीम में हैं. इस साल के आख़िर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके मद्देनज़र पीएम का ये दौरा काफ़ी अहम माना जा रहा है. इस साल गुजरात का यह उनका चौथा दौरा है. (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) शाम को 9 किलोमीटर का रोड शो है जिसे लेकर पूरे रास्ते को दुल्हन की तरह सजाया गया है. जहां एक ओर पूरा राजकोट पीएम मोदी के पोस्टर-बैनर से अटा पड़ा है, वहीं कांग्रेस ने पोस्टर के ज़रिए सरकार पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है,  वहीं नज़रबंद किए जाने के डर से ज़्यादातर कांग्रेस नेता अंडरग्राउंड हो गए हैं.टिप्पणियां इस आयोजन पर ख़र्च को लेकर कांग्रेस और पाटीदार आंदोलन से जुड़े लोगों ने सवाल उठाए हैं. ख़ास बात है कि महिला सशक्तिकरण और बेटी पढ़ाओ की थीम सर्कल में सुषमा स्वराज, मैरी कॉम और साइना नेहवाल के अलावा एक और चौंकाने वाला नाम है. सरकार से कई मुद्दों पर मतभेद रखनेवाली लेखिका अरुंधति राय भी इस थीम में हैं. इस साल के आख़िर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके मद्देनज़र पीएम का ये दौरा काफ़ी अहम माना जा रहा है. इस साल गुजरात का यह उनका चौथा दौरा है. (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) इस आयोजन पर ख़र्च को लेकर कांग्रेस और पाटीदार आंदोलन से जुड़े लोगों ने सवाल उठाए हैं. ख़ास बात है कि महिला सशक्तिकरण और बेटी पढ़ाओ की थीम सर्कल में सुषमा स्वराज, मैरी कॉम और साइना नेहवाल के अलावा एक और चौंकाने वाला नाम है. सरकार से कई मुद्दों पर मतभेद रखनेवाली लेखिका अरुंधति राय भी इस थीम में हैं. इस साल के आख़िर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके मद्देनज़र पीएम का ये दौरा काफ़ी अहम माना जा रहा है. इस साल गुजरात का यह उनका चौथा दौरा है. (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
सरकार ने कहा कि सीबीआई द्वारा हाउसिंग फिनांस रैकेट का भंडाफोड़ एक रिश्वत का मामला है जिसमें कुछ लोग शामिल हैं और यह कोई बड़ा घोटाला नहीं है. केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री नमो नारायण मीना ने यहां संवाददाताओं को बताया, ‘यह रिश्वत का एक व्यक्तिगत मामला है न कि कोई बड़ा घोटाला. बैंकिंग तंत्र मजबूत है.’ उन्होंने कहा, ‘आवास ऋणों में गैर-निष्पादित आस्तियां बहुत मामूली हैं, एक प्रतिशत से भी कम. इसका बैंकों की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’ सीबीआई ने एक बड़े आवास ऋण घोटाले का पर्दाफाश करने का दावा किया और इस संबंध में एलआईसी हाउसिंग फिनांस के सीईओ रामचन्द्रन नायर और कुछ सरकारी बैंकों के तीन शीर्ष अधिकारियों सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार किए गए लोगों में नायर के अलावा एलआईसी के सचिव (निवेश) नरेश के. चोपड़ा, बैंक आफ इंडिया के महाप्रबंधक आर.एन. तायल, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया के निदेशक (चार्टर्ड एकाउंटेंट) महिन्दर सिंह जौहर और पीएनबी (दिल्ली) के उप महाप्रबंधक वेंकोबा गुज्जल शामिल हैं. सीबीआई ने कहा कि मुंबई स्थित फर्म मनी मैटर्स लिमिटेड के सीएमडी राजेश शर्मा एवं कंपनी के दो कर्मचारियों. सुरेश गट्टानी एवं संजय शर्मा भी गिरफ्तार किए गए लोगों में शामिल हैं.
सोमवार को दिनभर उतार-चढ़ाव के साथ कारोबार करने के बाद भारतीय शेयर बाजार मामूली बढ़त के साथ बंद हुए. बॉम्‍बे स्‍टॉक एक्‍सचेंज (बीएसई) का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 6 अंक की मामूली सी बढ़त लेकर 9329 अंक के स्‍तर पर बंद हुआ. वहीं नेशनल स्‍टॉक एक्‍सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 17 अंक की बढ़त के साथ 2846 अंक के स्‍तर पर बंद हुआ. सोमवार के कारोबार में सेंसेक्स पर जिन शेयरों में सबसे ज्यादा बढ़त देखेने को मिली उनमें जयप्रकाश एसोसिएट्स, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज़, ओएनजीसी, भारती एयरटेल और टाटा स्टील सबसे आगे रहे. वहीं महिंद्रा एंड महिंद्रा, मारुति सुजुकी इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक, विप्रो और टाटा मोटर्स गिरावट वाले शेयरों में सबसे आगे रहे.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
1862 पन्नों की अंग्रेजी की कुरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ रोज तीन तलाक के मुद्दे की सनुवाई कर रही है. सुनवाई के 5वें दिन सुप्रीम कोर्ट ने All India Muslim Personal Low Board (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) के वकील कपिल सिब्बल को सुझाव दिया है कि मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामे के वक्त ही तीन तलाक के लिए इनकार करने का विकल्प दिया जा सकता है? आप ये प्रस्ताव पास क्यों नहीं करते कि निकाह के वक्त ही काजी महिला को ये विकल्प दे कि वह निकाहनामे में तीन तलाक को मना करने को कह सकती है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- ये अच्छा सुझाव है. उधर, सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ अपना पक्ष मजबूत करते हुए केंद्र ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि तीन तलाक को अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह सदियों से अभ्यास में रहा है. केंद्र के शीर्ष कानून अधिकारी मुकुल रोहतगी ने कहा कि तलाक निश्चित रूप से इस्लाम का एक जरूरी हिस्सा नहीं था और अदालत में इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी, सिर्फ इसलिए कि वह 1,400 साल पुरानी परंपरा है. तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में AG मुकुल रोहतगी ने कहा- यह मामला बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं है. यह टकराव मुस्लिम समुदाय में ही है.  CJI खेहर ने कहा- लेकिन सिब्बल कह रहे हैं कोई टकराव नहीं है. AG ने कहा- यह टकराव समुदाय में ही महिलाओं और पुरुषों के बीच है. इसकी वजह यह है कि पुरुष कमाने वाले हैं, ज्यादा शिक्षित हैं. CJI ने पूछा-एक बार फिर आपसे पूछ रहे हैं कि तीन तलाक रद्द कर दिए जाएं तो क्या होगा AG- अगर कोर्ट ऐेसा फैसला देता है तो सरकार कानून लाने को तैयार है.  CJI- यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ?  AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  उधर, सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ अपना पक्ष मजबूत करते हुए केंद्र ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि तीन तलाक को अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह सदियों से अभ्यास में रहा है. केंद्र के शीर्ष कानून अधिकारी मुकुल रोहतगी ने कहा कि तलाक निश्चित रूप से इस्लाम का एक जरूरी हिस्सा नहीं था और अदालत में इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी, सिर्फ इसलिए कि वह 1,400 साल पुरानी परंपरा है. तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में AG मुकुल रोहतगी ने कहा- यह मामला बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं है. यह टकराव मुस्लिम समुदाय में ही है.  CJI खेहर ने कहा- लेकिन सिब्बल कह रहे हैं कोई टकराव नहीं है. AG ने कहा- यह टकराव समुदाय में ही महिलाओं और पुरुषों के बीच है. इसकी वजह यह है कि पुरुष कमाने वाले हैं, ज्यादा शिक्षित हैं. CJI ने पूछा-एक बार फिर आपसे पूछ रहे हैं कि तीन तलाक रद्द कर दिए जाएं तो क्या होगा AG- अगर कोर्ट ऐेसा फैसला देता है तो सरकार कानून लाने को तैयार है.  CJI- यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ?  AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में AG मुकुल रोहतगी ने कहा- यह मामला बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं है. यह टकराव मुस्लिम समुदाय में ही है.  CJI खेहर ने कहा- लेकिन सिब्बल कह रहे हैं कोई टकराव नहीं है. AG ने कहा- यह टकराव समुदाय में ही महिलाओं और पुरुषों के बीच है. इसकी वजह यह है कि पुरुष कमाने वाले हैं, ज्यादा शिक्षित हैं. CJI ने पूछा-एक बार फिर आपसे पूछ रहे हैं कि तीन तलाक रद्द कर दिए जाएं तो क्या होगा AG- अगर कोर्ट ऐेसा फैसला देता है तो सरकार कानून लाने को तैयार है.  CJI- यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ?  AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  CJI खेहर ने कहा- लेकिन सिब्बल कह रहे हैं कोई टकराव नहीं है. AG ने कहा- यह टकराव समुदाय में ही महिलाओं और पुरुषों के बीच है. इसकी वजह यह है कि पुरुष कमाने वाले हैं, ज्यादा शिक्षित हैं. CJI ने पूछा-एक बार फिर आपसे पूछ रहे हैं कि तीन तलाक रद्द कर दिए जाएं तो क्या होगा AG- अगर कोर्ट ऐेसा फैसला देता है तो सरकार कानून लाने को तैयार है.  CJI- यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ?  AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  CJI ने पूछा-एक बार फिर आपसे पूछ रहे हैं कि तीन तलाक रद्द कर दिए जाएं तो क्या होगा AG- अगर कोर्ट ऐेसा फैसला देता है तो सरकार कानून लाने को तैयार है.  CJI- यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ?  AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  AG- अगर कोर्ट ऐेसा फैसला देता है तो सरकार कानून लाने को तैयार है.  CJI- यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ?  AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  CJI- यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ?  AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  AG- यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये बरकरार है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  AG- हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  जस्टिस कूरियन ने पूछा- कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  AG- तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए. पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  CJI खेहर ने AG से पूछा - बोर्ड कह रहा है कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा है जो आस्था है. इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए?  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  AG- यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  जस्टिस कूरियन ने कहा- आप इनका जिक्र कर रहे हैं लेकिन ये तो विधायिका द्वारा कानून बनाकर खत्म किया गया  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  AG-लेकिन पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  जस्टिस कूरियन- लेकिन क्या यह बात पशुओं की बली में भी लागू होती है?  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  AG- मैंने जानबूझकर नरबलि का जिक्र किया है ये संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है. CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  CJI ने कहा- लेकिन संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी देता है?  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  AG- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अपने आप में संपूर्ण नहीं है. उदाहरण के तौर पर संविधान कहता है कि कोई भी शख्स अपनी मर्जी से किसी भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, लेकिन कोई ताजमहल में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि ये पब्लिक आर्डर का मामला है. इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  इससे पूर्व मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा- तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है. यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है. जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए. अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है. पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है. क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है. सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की. संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है . हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है.  इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है. कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है? क्यों संज्ञान लिया गया. शरियत पर्सनल लॉ है, इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती. हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए. अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए. महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए.  हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले. जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा- पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?  इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो. अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई. ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता. जस्टिस कूरियन ने कहा - कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं? टिप्पणियां सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा- हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है. ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है.  हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें. हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है. समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे. बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.  बता दें कि इस मामले में सुनवाई के दौरान संविधान पीठ के सभी जज मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान का अंग्रेजी अनुवाद लेकर बैठेते हैं और जिरह के दौरान अंग्रेजी की कुरान से लॉ बोर्ड और सरकार के तर्कों की व्यख्या दी जाती है.
यह एक लेख है: लेकिन इसके ठीक एक घंटे के बाद उनके निजी सचिव मो.शाहिद को सस्पेंड कर दिया गया। कांग्रेस के मुताबिक शाहिद के ख़िलाफ़ 60 दिनों में जांच पूरी कर ली जाएगी।टिप्पणियां संसद में, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर विपक्ष लगातार हमले कर रहा है। विपक्ष मोदी सरकार से केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख़्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम ललित गेट में आने पर और व्यापमं घोटाला मामले में चौतरफ़ा घिरे मध्यप्रदेश के मुख़्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस्तीफ़ा मांग रही है। कांग्रेस पार्टी का कहना है कि जब तक इन तीनों नेताओं का इस्तीफ़ा नहीं आता है वे संसद की कार्यवाही चलने नहीं देंगे।     लेकिन केंद्र ने इन तीनों बड़े नेताओं के इस्तीफ़े से साफ़ तौर पर इंकार कर दिया है और इसका सीधा असर संसद की कार्यवाही पर पड़ रहा है जो मॉनसून सत्र के दूसरे दिन भी लगातार स्थगित रहा। संसद में, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर विपक्ष लगातार हमले कर रहा है। विपक्ष मोदी सरकार से केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख़्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम ललित गेट में आने पर और व्यापमं घोटाला मामले में चौतरफ़ा घिरे मध्यप्रदेश के मुख़्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस्तीफ़ा मांग रही है। कांग्रेस पार्टी का कहना है कि जब तक इन तीनों नेताओं का इस्तीफ़ा नहीं आता है वे संसद की कार्यवाही चलने नहीं देंगे।     लेकिन केंद्र ने इन तीनों बड़े नेताओं के इस्तीफ़े से साफ़ तौर पर इंकार कर दिया है और इसका सीधा असर संसद की कार्यवाही पर पड़ रहा है जो मॉनसून सत्र के दूसरे दिन भी लगातार स्थगित रहा। कांग्रेस पार्टी का कहना है कि जब तक इन तीनों नेताओं का इस्तीफ़ा नहीं आता है वे संसद की कार्यवाही चलने नहीं देंगे।     लेकिन केंद्र ने इन तीनों बड़े नेताओं के इस्तीफ़े से साफ़ तौर पर इंकार कर दिया है और इसका सीधा असर संसद की कार्यवाही पर पड़ रहा है जो मॉनसून सत्र के दूसरे दिन भी लगातार स्थगित रहा।
यह एक लेख है: संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गुरुवार को हुई हिंसा के बाद राज्य सरकार ने राजधानी में शनिवार दोपहर तक मोबाइल इंटरनेट एवं एसएमएस सेवाएं बंद दी हैं. अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने इस संबंध में गुरूवार की देर रात निर्देश जारी किया. अवस्थी ने सरकारी आदेश में कहा है, ‘‘यह आदेश 19 दिसंबर को दोपहर बाद तीन बजे से 21 दिसंबर को दोपहर 12 बजे तक प्रभावी रहेगा.'' इससे पहले एक अधिकारी ने भाषा को बताया कि सोशल मीडिया पर किसी तरह के दुष्प्रचार और लोगों की भावनाएं भड़काने वाली कोई पोस्ट को प्रसारित होने रोकने के लिए राजधानी में शनिवार दोपहर तक मोबाइल इंटरनेट एवं एसएमएस सेवाओं को बंद कर दिया गया है.  उन्होंने बताया कि कल जुमे की नमाज होने की वजह से किसी तरह की कोई अशांति पैदा न हो, इस वजह से प्रशासन ने यह कदम उठाया है.  लखनऊ के अलावा गाजियाबाद और बरेली में भी इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाई गई है. गाजियाबाद प्रशासन ने 24 घंटे के लिए इंटरनेट बंद करने के आदेश दिए है. गुरुवार रात 10 बजे से शुक्रवार रात 10 बजे तक गाजियाबाद में इंटरनेट बंद रहेगा. वहीं बरेली में शनिवार सुबह तक के लिए इंटरनेट पर रोक है. बरेली में शनिवार तक स्कूलों को भी बंद किया गया है. उधर कर्नाटक सरकार ने भी गुरुवार को दक्षिण कन्नड जिले में अगले 48 घंटों के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी.  गाजियाबाद के एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने कहा, "संवेदनशीलता को देखते हुए ऑपरेटरों से जनपद गाजियाबाद में गुरुवार रात 10 बजे से शुक्रवार रात 10 बजे तक इंटरनेट सेवा बंद रखने को कहा गया है. यह कदम हिंसक प्रदर्शनों और कल जुम्मे की नमाज को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है. उन्होंने कहा कि पुलिस को सूचना मिली है कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर हिंसक प्रदर्शन किए जाने का अंदेशा है. उपद्रवी तत्व राजकीय संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे आम जनजीवन व कानून व्यवस्था प्रभावित हो सकती है. उपद्रवी व असमाजिक तत्व इंटरनेट के माध्यम से अफवाह फैलाकर हिंसा कर सकते हैं.
अमेरिका के टेक्सॉस में सोमवार को खराब मौसम के कारण एक छोटे विमान दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसकी जानकारी समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने दी। सेसना 412-सी विमान टेक्सास स्थित वेल्स शहर के चेरोकी काउंटी के नजदीक सोमवार रात 9:30 बजे दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जब विमान तुल्सा रीवरसाइड हवाईअड्डे से वेस्ट ह्यूस्टन हवाईअड्डे के मार्ग पर था उस समय वह पूर्वी टेक्सास में आंधी और तूफान के बीच वह फंस गया, जिसके बाद विमान के पायलट अपना संतुलन खो बैठा और विमान नीचे गिर गया। इसके बाद विमान में आग लग गई। मृतक की पहचान 64 वर्षीय जॉन थॉमस स्टीपर के रूप में हुई है। जब विमान तुल्सा रीवरसाइड हवाईअड्डे से वेस्ट ह्यूस्टन हवाईअड्डे के मार्ग पर था उस समय वह पूर्वी टेक्सास में आंधी और तूफान के बीच वह फंस गया, जिसके बाद विमान के पायलट अपना संतुलन खो बैठा और विमान नीचे गिर गया। इसके बाद विमान में आग लग गई। मृतक की पहचान 64 वर्षीय जॉन थॉमस स्टीपर के रूप में हुई है।
पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाने वाली पाकिस्तान की विशेष अदालत ने गुरुवार को एक विचित्र फैसले में कहा कि यदि फांसी दिये जाने से पहले मुशर्रफ की मौत हो जाती है तो उनके शव को इस्लामाबाद के सेंट्रल स्क्वायर पर खींचकर लाया जाए और तीन दिन तक लटकाया जाए. तीन सदस्यीय विशेष अदालत की पीठ ने 76 वर्षीय मुशर्रफ को छह साल तक कानूनी मामला चलने के बाद देशद्रोह को लेकर मंगलवार को उनकी गैर मौजूदगी में फांसी की सजा सुनाई थी. मंगलवार को मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाने वाली तीन सदस्यीय पीठ के प्रमुख और पेशावर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद सेठ ने 167 पन्नों का विस्तृत फैसला लिखा है. उन्होंने लिखा कि फांसी दिये जाने से पहले मुशर्रफ की मौत होने पर भी पूर्व राष्ट्रपति को फांसी पर लटकाया जाना चाहिए. फैसले के अनुसार, ‘‘हम कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निर्देश देते हैं कि भगोड़े/दोषी को गिरफ्तार करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी जाए और सुनिश्चित करें कि कानून के हिसाब से सजा दी जाए. अगर वह मृत मिलते हैं तो उनकी लाश को इस्लामाबाद के डी चौक तक खींचकर लाया जाए तथा तीन दिन तक लटकाया जाए.'' डी चौक या डेमोक्रेसी चौक के पास कई महत्वपूर्ण सरकारी दफ्तर हैं. यहां राष्ट्रपति कार्यालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, संसद और उच्चतम न्यायालय भी हैं. मुशर्रफ के खिलाफ फैसला 2-1 के बहुमत से दिया गया. लाहौर उच्च न्यायालय के जस्टिस शाहिद करीम ने मृत्युदंड का समर्थन किया, वहीं सिंध हाई कोर्ट के जस्टिस नजर अकबर ने फांसी से असहमति जताई. हालांकि जस्टिस करीम भी मुशर्रफ की मौत के बाद उनके शव को खींचकर लाने तथा लटकाने की बात से असहमत हुए. उन्होंने लिखा, ‘‘मैं इससे असहमत हूं. कानून में इसके लिए कोई आधार नहीं है और ऐसा करना इस अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. मेरे विचार से दोषी को मौत की सजा देना ही काफी है.'' इस फैसले के बाद सेना नाराज हो गयी है. सेना का कहना है कि यह फैसला सारे इंसानों, धर्मों और सभ्यताओं के खिलाफ है. सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने कहा, ‘‘17 दिसंबर को दिये गये संक्षिप्त फैसले के बारे में आशंकाएं आज के विस्तृत फैसले के बाद सही साबित हो गयी हैं. आज का फैसला और खासतौर पर इसमें इस्तेमाल किये गये शब्द इंसानियत, धर्म, सभ्यता और अन्य किसी भी मूल्य के खिलाफ हैं.'' उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और प्रधानमंत्री इमरान खान ने मुशर्रफ को दोषी करार दिये जाने के मसले पर विस्तार से बातचीत की और कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिये जिनका जल्द ऐलान किया जाएगा. विस्तृत फैसला आने से कुछ घंटे पहले मुशर्रफ ने अपने खिलाफ मुकदमे पर गंभीर सवाल खड़े किये थे. उन्होंने कहा कि यह फैसला कुछ लोगों की उनके प्रति ‘निजी दुश्मनी' पर आधारित है. उन्होंने पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश आसिफ सईद खोसा का परोक्ष जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ऊंचे पदों पर बैठे कुछ लोगों ने एक आदमी पर निशाना साधने के लिए अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया.'' शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो रहे खोसा ने पिछले महीने कहा था कि 2009 के बाद न्यायपालिका ने एक प्रधानमंत्री (यूसुफ रजा गिलानी) को दोषी ठहराया था, एक अन्य (नवाज शरीफ) को अयोग्य करार दिया तथा एक पूर्व सैन्य प्रमुख (मुशर्रफ) के खिलाफ देशद्रोह के मामले में जल्द फैसला सुनाने जा रही है. मुशर्रफ की पार्टी की ओर से जारी एक वीडियो में उन्होंने कहा, ‘‘ इस तरह के फैसले का कोई और उदाहरण नहीं है जब न तो प्रतिवादी को और न ही उसके वकील को अपनी बात रखने का मौका दिया गया हो.'' उन्होंने कहा कि अदालत ने 2014 से 2019 के बीच उन पर मुकदमा चलाया और दुबई में बयान दर्ज करने के उनके आग्रह को भी ठुकरा दिया था. मुशर्रफ इलाज के लिए देश से बाहर गए थे और 2016 से ही वह दुबई में रह रहे हैं. मुशर्रफ ने कहा कि अदालत के फैसले पर सवालिया निशान है और इसमें कानून का पालन नहीं किया गया है. उन्होंने अदालत के फैसले के बाद लोगों और सशस्त्र बलों का उनका साथ देने के लिए आभार जताया. पूर्व तानाशाह ने कहा कि वह अपने भविष्य का फैसला अपने वकीलों से बातचीत करने के बाद करेंगे और उन्हें उम्मीद है कि न्याय होगा. उनके वकील पहले ही कह चुके हैं कि वह मौत की सजा को चुनौती देंगे.
इस बारे में टिप्पणी के लिये एयर इंडिया के प्रवक्ता से बात नहीं हो पाई.
आम आदमी पार्टी के निलंबित विधायक और दिल्ली सरकार में पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा अब सत्येंद्र जैन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ऊपर लगाए गए भ्रष्टाचार के सबूत लोकायुक्त को सौंपेंगे. खुद कपिल मिश्रा ने इसकी जानकारी ट्विटर के ज़रिए शेयर की. पहले कपिल मिश्रा को बुधवार को लोकायुक्त दफ्तर जाना था, लेकिन फिर उनको 6 जुलाई का समय मिला है. अब कपिल गुरुवार को सुबह 10 बजे लोकायुक्त दफ्तर जाएंगे. आपको बता दें कि मंत्री पद से निलंबित होते ही कपिल मिश्रा ने दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे और उसकी शिकायत लोकायुक्त दफ्तर में की थी और मई के आखिरी हफ्ते में बकायदा लोकायुक्त में बयान भी दर्ज करा चुके हैं. केजरीवाल और सत्येंद्र जैन के भ्रष्टाचार के 7 मामलों के सबूत जो 5 जुलाई को लोकायुक्त में देने जाऊंगा pic.twitter.com/bjcdSSCn9o — Kapil Mishra (@KapilMishraAAP) July 4, 2017 कपिल मिश्रा के मुताबिक उन्होंने 16 हज़ार पन्नों का सबूत तैयार किया है, जिसमें सत्येंद्र जैन और अरविंद केजरीवाल के भ्रष्टाचार से जुड़े कई कागज़ात हैं, जिसे वो गुरुवार सुबह लोकायुक्त को सौंपेंगे. कपिल मिश्रा के मुताबिक गुरुवार को जो सबूत वो लोकायुक्त में देने जा रहे हैं उनमें जलबोर्ड टैंकर घोटाले की जांच में देरी, आम आदमी पार्टी नेताओं की विदेश यात्राएं और फर्ज़ी कंपनियों का हवाला के ज़रिए जो चंदा पार्टी को दिया गया है वो शामिल हैं. आपको बता दें कि कपिल मिश्रा ने आम आदमी पार्टी के नेताओं की विदेश यात्रा पर हुए खर्चे और पार्टी को मिले चंदे की जानकारी मांगी थी और आरोप लगाया था कि सत्येंद्र जैन और अरविंद केजरीवाल दोनों मिले हुए हैं, क्योंकि सत्येंद्र जैन भ्रष्टाचार करते रहे और अरविंद केजरीवाल ने सबकुछ पता होते हुए भी जैन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.
टाटा मोटर्स ने आज नई दिल्ली में एक इवेंट के दौरान अपनी 2018 Tigor फेसलिफ्ट को भारत में लॉन्च कर दिया है. कंपनी ने इस कार की शुरुआती कीमत 5.20 लाख रुपये (एक्स-शोरूम, दिल्ली) रखी है. इस नई कार में कई कॉस्मेटिक अपडेट्स और नए फीचर्स दिए गए हैं. नई टाटा टिगोर को पांच वेरिएंट- XE, XM, XZ, XZA और XZ+ में पेश किया गया है. बेस पेट्रोल वेरिएंट की शुरुआती कीमत 5.20 लाख रुपये रखी गई है. वहीं टॉप डीजल वेरिएंट 7.38 लाख रुपये में ग्राहकों के लिए उपलब्ध रहेगी. आपको बता दें ऑटोमैटिक मैनुअल ट्रांसमिशन (AMT) का विकल्प टॉप पेट्रोल वेरिएंट में दिया गया है और इसकी कीमत 6.65 लाख रुपये रखी गई है. ये सारी कीमतें एक्स-शोरूम, दिल्ली की हैं. नई टाटा टिगोर का ओवरऑल डिजाइन पुराने मॉडल की तरह ही रखा गया है, हालांकि इसमें कई तरह के अपडेट्स दिए गए हैं. नई टिगोर के एक्सटीरियर में दिए गए अपडेट्स की बात करें तो नई टिगोर में डायमंड पैटर्न में फ्रंट ग्रिल, डुअल-चैम्बर प्रोजेक्टर हेडलैम्प्स और 15-इंच डुअल टोन अलॉय व्हील्स दिए गए हैं. साथ ही नई टाटा टिगोर में क्रिस्टल इंस्पायर्ड LED टेल लाइट क्लस्टर, शार्क फिन एंटीना और एक 36-LED हाई-माउंटेड स्टॉप लाइट दिया गया है. इसी तरह नई कार के इंटीरियर की बात करें तो यहां सेंटर कंसोल और AC वेंट्स के आसपास क्रोम एक्सेंट्स के साथ डुअल-टोन (ब्लैक/ग्रे) थीम दिया गया है. साथ ही यहां मौजूद फॉक्स लेदर सीट्स और कप होल्डर्स जैसे फीचर इसे लग्जरी लुक देते हैं. साथ ही इंटीरियर में एंड्रॉयड ऑटो के साथ 7-इंच टचस्क्रीन इंफोटेनमेंट सिस्टम भी दिया गया है जिसे हार्मन ने तैयार किया है. इस कार में 4 स्पीकर और 4 ट्विटर हैं. नई कार में दिए गए सेफ्टी फीचर्स की बात करें तो यहां डुअल-फ्रंट एयरबैग्स, ABS, EBD, कॉर्नर स्टेबिलिटी कंट्रोल, कैमरे के साथ रिवर्स पार्किंग सेंसर दिया गया है. कंपनी ने जानकारी दी है कि नई कार की बॉडी को मजबूत स्टील से तैयार किया गया है. टाटा टिगोर फेसलिफ्ट में 1.2-लीटर पेट्रोल और 1.05 लीटर डीजल इंजन दिया गया है. कार में दिया गया रेवोट्रोन पेट्रोल इंजन 84bhp का पावर और 114Nm का पिक टॉर्क जेनरेट करता है, वहीं इसका रेवोटॉर्क डीजल इंजन 69bhp का पावर और 140Nm का पिक टॉर्क जेनरेट करता है. दोनों ही इंजन को स्टैंडर्ड तौर पर 5-स्पीड मैनुअल गियरबॉक्स से जोड़ा गया है. केवल नई कार के पेट्रोल वेरिएंट में ही AMT गियरबॉक्स दिया गया है. AMT ऑप्शन केवल XZ ट्रिम में है. नई टाटा टिगोर ग्राहकों के लिए इजिप्टियन ब्लू, रोमन सिल्वर, बेरी रेड, पर्लसेंट वॉइट, टाइटेनियम ग्रे और एस्प्रेसो ब्राउन कलर ऑप्शन में उपलब्ध रहेगी. कार के सभी वेरिएंट्स टाटा मोटर्स के सभी अधिकृत सेल्स आउटलेट्स में उपलब्ध होगी.
Articles with short description Short description is different from Wikidata Articles with hCards लिसा मिश्रा एक अमेरिकी गायिका और गीतकार हैं। वह 2018 की भारतीय फिल्म वीरे दी वेडिंग में तारिफां गाने के अपने रीप्राइज़ वर्जन के लिए जानी जाती हैं। तब से, उन्होंने 2019 की फिल्म जजमेंटल है क्या के द वखरा सॉन्ग, फिल्म द स्काई इज पिंक के नादानियां और गुड न्यूज के पार्टी-एंथम चंडीगढ़ में जैसे गानों पर काम किया है। प्रारंभिक जीवन मिश्रा का जन्म बेरहामपुर, ओडिशा में हुआ था और शिकागो शहर में पली बडी थी। उन्होंने ब्लूमिंगटन, इलिनोइस में इलिनोइस वेस्लीयन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और धर्म में एक डबल प्रमुख के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वह कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एंड्रयू मेलन फाउंडेशन और बहुलवाद परियोजना दोनों के साथ एक शोध पृष्ठभूमि रखती है। 2007 में जब वह 13 साल की थी तब उसने अपना यु ट्युब चैनल शुरू किया उनका पहला स्टूडियो अनुभव चांस द रैपर द्वारा " कलरिंग बुक (मिक्सटेप) " पर "ऑल वी गॉट" ट्रैक पर स्वर देने के साथ शुरु हुआ था। आजीविका 2017 में, मिश्रा ने एमी-नामांकित वेब श्रृंखला ब्राउन गर्ल्स का थीम गीत बनाने के लिए जमीला वुड्स के साथ काम किया था। 19 मई 2018 को, उसने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर हिंदी गाने तरीफां और लेट मी लव यू का मैशअप गाते हुए एक वीडियो अपलोड किया था। इस मैशअप ने सोनम कपूर आहूजा का ध्यान आकर्षित किया, और बाद में मिश्रा को भारत लाया गया जहां उन्होंने अन्य सितारों के साथ वीरे दी वेडिंग के गाने के रीप्राइज़ संस्करण के लिए रिकॉर्ड किया और शूट भी किया। 2019 में, मिश्रा ने गैर-फ़िल्मी संगीत के लिए यूनिवर्सल म्यूजिक इंडिया के हिस्से वी वाई आर एल ओरिजिनल्स के साथ हस्ताक्षर किए। मई 2019 में, उन्होंने सजना वे के संगीतकार-गायक विशाल मिश्रा के साथ सहयोग किया। मिश्रा ने रनिंग बैक टू यू एक अपटेम्पो डांस/हाउस रिकॉर्ड पर भी गाया है, जो गोवा के निर्माता और डीजे अनीश सूद द्वारा फरवरी 2020 में रिलीज़ किया गया है। डिस्कोग्राफी हिंदी फिल्मी गाने गैर फिल्मी गाने संदर्भ जन्म वर्ष अज्ञात (जीवित लोग) बॉलीवुड पार्श्वगायक जीवित लोग
लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क टूटा इसरो के कंट्रोल रूम में छाई मायूसी चांद को छूना नहीं रहा आसान भारत के चंद्र मिशन को उस समय झटका लगा, जब लैंडर विक्रम से चंद्रमा की सतह से महज दो किलोमीटर पहले इसरो का संपर्क टूट गया. इसरो का मिशन चंद्रयान-2 भले ही इतिहास नहीं बना सका लेकिन वैज्ञानिकों के जज्बे को देश सलाम कर रहा है. मिशन के पूरा होने और देश के इतिहास रचने के लम्हे का देश रात को जाग कर बेसब्री से इंतजार कर रहा था लेकिन कुछ ही पल में मायूसी छा गई. दरअसल, 48 दिन के महात्वाकांक्षी सफर की मंजिल तक पहुंचने से ठीक पहले अचानक इसरो के कंट्रोल रूम में एक अजीब सी चुप्पी छा गई. जो आंखे कुछ देर पहले बड़ी उत्सुकता से स्क्रीन पर मिशन चंद्रयान-2 के हर कदम को परख रही थी, वो ठिठक गईं. चंद्रयान-2 का सफर आखिरी और बेहद चुनौतीपूर्ण हिस्से तक पहुंच चुका था लेकिन ये इंतजार लंबा खिंचने लगा और इसरो की तरफ से औपचारिक ऐलान कर दिया गया कि लैंडर विक्रम से सेंटर का संपर्क टूट चुका है. चंद्रयान-2 के इस मिशन पर दुनिया भर की नजरें टिकी थीं और उसकी वजह ये थी कि भारत के वैज्ञानिकों ने चांद के सबसे मुश्किल हिस्से पर पहुंचने को अपना लक्ष्य बनाया था. मिशन के मुताबिक चंद्रयान- 2 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था. चांद के इस हिस्से पर सूरज की रोशनी बहुत कम पहुंचती है. इस वजह से लैंडर और रोवर के लिए सौर ऊर्जा हासिल कर पाना मुश्किल होगा. वैज्ञानिकों के सामने थीं ये चुनौतियां -चांद के इस हिस्से पर अभी तक दुनिया के किसी देश की पहुंच नहीं हो पाई है, इसलिए वैज्ञानिकों को यहां की सतह की जानकारी नहीं थी. -अमेरिका के अपोलो मिशन सहित ज्यादातर मिशनों में लैंडिंग चांद के मध्य में की गई और चीन का मिशन चांद के उत्तरी ध्रुव की तरफ था. -चांद की पथरीली जमीन भी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए बड़ी चुनौती थी, लैंडर विक्रम को दो क्रेटरों के बीच सॉफ्ट लैंडिंग की जगह तलाशनी थी. मुश्किल से सफल हुए विकिसत देश भले ही चांद पर मानव के पहुंचने के 50 साल हो गए हों लेकिन तमाम विकसित देशों के लिए भी चांद को छूना आसान नहीं रहा है. रूस ने 1958 से 1976 के बीच करीब 33 मिशन चांद की तरफ रवाना किए, इनमें से 26 अपनी मंजिल नहीं पा सके. वहीं अमेरिका भी इस होड़ में पीछे नहीं था. 1958 से 1972 तक अमेरिका के 31 मिशनों में से 17 नाकाम रहे. यही नहीं अमेरिका ने 1969 से 1972 के बीच 6 मानव मिशन भी भेजे. इन मिशनों में  24 अंतरिक्ष यात्री चांद के करीब पहुंच गए लेकिन सिर्फ 12 ही चांद की जमीन पर उतर पाए. इसके अलावा इसी साल अप्रैल में इजरायल का भी मिशन चांद अधूरा रह गया था. इजरायल की एक प्राइवेट कंपनी का ये मिशन 4 अप्रैल को चंद्रमा की कक्षा में तो आ गया लेकिन 10 किलोमीटर दूर रहते ही पृथ्वी से इसका संपर्क टूट गया. उम्मीद की किरण बना ऑर्बिटर बेशक भारत के वैज्ञानिकों ने चांद के अनजाने हिस्से तक पहुंचने, कई महत्वपूर्ण जानकारियों की जुटाने की बड़ी चुनौती की तरफ अपने कदम बढ़ाए थे. चंद्रयान-2 को मंजिल के करीब ले जाने वाला ऑर्बिटर अब भी चंद्रमा की कक्षा में घूम रहा है. अब वैज्ञानिकों को इंतजार है कि आंकड़ों से निकलने वाले नतीजों का और ऑर्बिटर से मिलने वाली तस्वीरों का. जिससे आखिरी 15 मिनट का वैज्ञानिक विश्लेषण मुमकिन हो सके. लैंडर विक्रम के साथ संपर्क टूटने की वजहों का अध्ययन विश्लेषण किया जाएगा. जिन चुनौतियों की वजह से इस मिशन को अब तक का सबसे कठिन मिशन माना जा रहा था. उससे निपटने के नए तरीके भी ढूंढे जाएंगे. इस लिहाज से चंद्रयान-2 का अभियान इस बेहद मुश्किल लक्ष्य की तरफ बढ़ने के लिए वैज्ञानिकों के अनुभव को और समृद्ध करने वाला साबित होगा.
लोकसभा में भाजपा सांसदों के एक वर्ग के विरोध और विधेयक के खिलाफ मतदान करने की धमकी के बाद महिला आरक्षण विधेयक को लेकर समस्या गंभीर होती नजर आ रही है. भाजपा ने हालांकि आज तय किया कि वह राज्यसभा की ही तरह लोकसभा के सांसदों के लिए व्हिप जारी करेगी. बगावत की आशंका के बीच लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली और पूर्व पार्टी प्रमुख राजनाथ सिंह सहित शीर्ष पार्टी नेताओं ने आज सुबह असंतुष्ट सांसदों से मुलाकात कर विधेयक को लेकर उनकी आशंकाओं को दूर करने का प्रयास किया. यह विधेयक लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करता है. सुषमा ने सांसदों से मुलाकात के बाद कहा, ‘‘ विधेयक के लोकसभा में आने पर हम पार्टी सांसदों को व्हिप जारी करेंगे. ’’ व्हिप का उल्लंघन करने वाले सांसद को अयोग्य ठहराया जा सकता है. राज्यसभा में भाजपा सांसदों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया था. विधेयक का विरोध करने वालों में गोरखपुर से पार्टी सांसद योगी आदित्यनाथ, पूर्व केन्द्रीय मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव और पार्टी के लोकसभा में मुख्य सचेतक रमेश बैस शामिल हैं. कुछ पार्टी सांसदों ने तो यहां तक कह डाला कि यदि निचले सदन में विधेयक आया तो वे उसके खिलाफ मतदान करेंगे. लोकसभा में भाजपा के 116 सांसद हैं और इस संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने के लिए भाजपा का समर्थन महत्वपूर्ण होगा. जारी बैस ने कल कहा था कि विधेयक के मौजूदा स्वरूप को लेकर पार्टी के कई सांसदों को दिक्कते हैं और वे अपनी बात वरिष्ठ नेताओं के सामने रखेंगे. बैस ने हालांकि आज कहा कि उनकी बात को गलत समझा गया. पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि पार्टी के कुछ वगो’ के बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन जब भाजपा कोई रूख अपनाएगी तो हर किसी को उसका पालन करना होगा. उन्होंने कहा कि किसी लोकतांत्रिक पार्टी में सदस्यों का किसी मुद्दे पर अलग अलग नजरिया हो सकता है और उन पर चर्चा हो सकती है. लेकिन विधेयक के बारे में पार्टी ने एक नजरिया कायम किया है और हर किसी को उसका पालन करना चाहिए. लोकसभा में भी राज्यसभा की तरह व्हिप जारी करने के बारे में जोशी ने हालांकि कहा कि व्हिप जारी किया जाए या नहीं, लोकतंत्र में इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए. विधेयक के मौजूदा स्वरूप में विरोधी माने जाने वाले हुकुमदेव नारायण यादव ने आज कहा, ‘‘ राज्यसभा में मैं विधेयक के समर्थन को लेकर भाजपा के साथ था और लोकसभा में भी विधेयक के आने पर पार्टी के साथ रहूंगा. ’’ उनहोंने कहा, ‘‘ मुझे विधेयक के बारे में जो भी कहना है, मैं पार्टी के मंच पर कहूंगा. ’’ विधेयक के खिलाफ पूर्व के रूख पर सवाल किये जाने पर यादव ने कहा, ‘‘ प्रेस ने शायद सोचा होगा कि चूंकि लालू और मुलायम जैसे यादव लोग विधेयक के खिलाफ हैं इसलिए मैं भी खिलाफ हूं. चूंकि मैं भी उनकी तरह समाजवादी हूं शायद इसलिए. लेकिन यदि मैं उनसे सहमत होता तो मैं उनकी पार्टी में होता. भाजपा में शामिल न होता. ’’
23 जनवरी 1963 को, गिनी और केप वर्डे (पीएआईजीसी), एक मार्क्सवादी क्रांतिकारी समूह की स्वतंत्रता के लिए अफ्रीकी पार्टी के सेनानियों ने आधिकारिक तौर पर गिनी-बिसाऊ की शुरुआत की। टिटे में तैनात पुर्तगाली सेना पर हमला करके स्वतंत्रता संग्राम। युद्ध तब समाप्त हुआ जब 1974 की कार्नेशन क्रांति के बाद पुर्तगाल ने गिनी-बिसाऊ को स्वतंत्रता दी, उसके एक साल बाद केप वर्डे को। == सन्दर्भ == स्वतंत्रता संग्राम पुर्तगाल से जुड़े युद्ध अफ्रीका से जुड़े युद्ध 1960 के दशक के संघर्ष 1970 के दशक के संघर्ष
भारत के महेश भूपति और रोहन बोपन्ना की जोड़ी शानदार जीत दर्ज कर पेशेवर टेनिस संघ (एटीपी) पेरिस मास्टर्स टेनिस टूर्नामेंट के फाइनल में प्रवेश कर गई है. यहां उनका सामना पाकिस्तान के एसाम उल हक कुरैशी और नीदरलैंड्स के जीन जूलियन रोजर की जोड़ी से होगा. एटीपी के मुताबिक, शनिवार को खेले गए पुरुषों की युगल स्पर्धा के सेमीफाइनल मुकाबले में भूपति और बोपन्ना की पांचवीं वरीय जोड़ी ने आस्ट्रेलिया के पॉल हेनले और ब्रिटेन के जोनाथन मैरे की गैर वरीय जोड़ी को 7-5, 6-3 से पराजित किया. उधर, कुरैशी और रोजर की सातवीं वरीय जोड़ी ने क्रोएशिया के मारिन सिलिच और ब्राजील के मार्सेलो मेलो की जोड़ी को 0-6, 6-4, 11-9 से शिकस्त दी.
यॉर्क यूनिवर्सिटी (फ़्रेंच: यूनिवर्सिटि यॉर्क) टोरंटो, ओन्टारियो, कनाडा में एक सार्वजनिक शोध विश्वविद्यालय है। यह कनाडा का तीसरा सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है, और इसमें दुनिया भर में लगभग 52,300 छात्र, 7,000 संकाय और कर्मचारी और 295,000 पूर्व छात्र हैं। इसमें ग्यारह संकाय हैं, जिनमें लिबरल आर्ट्स और व्यावसायिक अध्ययन संकाय, विज्ञान संकाय, लासोंडे स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग, शुलिच स्कूल ऑफ बिजनेस, ऑसगूड हॉल लॉ स्कूल, ग्लेंडन कॉलेज, शिक्षा संकाय, स्वास्थ्य संकाय, पर्यावरण अध्ययन संकाय शामिल हैं। स्नातक अध्ययन संकाय, कला, मीडिया, प्रदर्शन और डिजाइन स्कूल (पूर्व में ललित कला संकाय), और 28 अनुसंधान केंद्र। कील परिसर सेनेका कॉलेज के उपग्रह स्थान का भी घर है।
बेटियों के हक में राष्ट्रव्यापी 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा का चयन किया है. खराब लिंगानुपात को ध्यान में रखते हुए बालिका भ्रूण हत्या के खिलाफ शुरू होने वाले यह अभियान हरियाणा के लिए गौरव की बात नहीं है. बालिकाओं की सुरक्षा और शिक्षा, सिकुड़ते लिंगानुपात, बालिका भ्रूण हत्या पर रोक और महिलाओं की अधिकारिकता पर लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए मोदी गुरुवार को पानीपत शहर से अभियान की शुरुआत करेंगे. हरियाणा देश का एक ऐसा राज्य है जहां सबसे खराब लिंगानुपात (प्रति एक हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या) है. राज्य में बालक के मुकाबले बालिकाओं की भी संख्या खराब है और इस मोर्चे पर बुरे रिकॉर्ड को देखते हुए हरियाणा का चयन किया गया है. देश के 15 जिले ऐसे हैं जहां जहां लिंगानुपात बेहद खराब हैं जिनमें से 9 अकेले हरियाणा के हैं. इस बात का उल्लेख मोदी पहले भी कर चुके हैं. असल में लिंगानुपात के लिहाज से 100 खराब जिलों में हरियाणा के 12 जिले शामिल हैं जबकि पड़ोसी पंजाब के 11 जिले आते हैं. देश के यही दो राज्य ऐसे हैं जिनकी स्थिति इस मामले में बुरी है. दोनों राज्यों के 23 जिलों के साथ इनकी संयुक्त राजधानी चंडीगढ़ भी सूची में ही शामिल है. उत्तर के पांच राज्यों जम्मू कश्मीर (पांच जिले), उत्तराखंड (दो) और हिमाचल प्रदेश (एक) और केंद्रशासित क्षेत्र (चंडीगढ़) देश में 32 खराब जिलों में गिने जाते हैं. हरियाणा में प्रति 1000 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या 879 है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बालिका लिंगानुपात (सीएसआर) में गिरावट की प्रवृत्ति बनी हुई है. बच्चों में 0-6 वर्ष की उम्र के बीच प्रति 1000 लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 1961 से निरंतर बनी रही. 1991 में इस अनुपात में लड़कियों की संख्या 945 से गिरकर 2001 में 927 हो गई और 2011 में 918 पर पहुंच गई. हरियाणा और पंजाब में गर्भस्थ शिशु के लिंग परीक्षण के लिए जांच कराने का खतरनाक खेल चलता है. 21 राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में सीएसआर में खराब स्थिति बरकरार है. सकारात्मक पक्ष में हालांकि 11 राज्य और 2 केंद्र शासित राज्यों में बीते दशक में सीएसआर की स्थिति में सुधार देखा गया है. देश में 640 जिले में से 429 जिलों में सीएसआर में गिरावट हुई है. सरकार के एक प्रवक्ता ने यहां कहा, 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना एक राष्ट्रीय अभियान के जरिए लागू की जाएगी और 100 चुने हुए जिलों में बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई केंद्रित रहेगी. सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों को शामिल किया जाएगा.' इनपुट IANS से
दिए गए शीर्षक के अनुरूप एक पाठ यह हो सकता है: तमिलनाडु सरकार ने सोमवार रात मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के मद्देनजर मंगलवार से सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की. मुख्य सचिव पी राम मोहन राव ने एक अधिसूचना में कहा कि इस अवधि में सभी सरकारी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा और इस दौरान कोई आधिकारिक मनोरंजन भी नहीं होगा. इसमें कहा गया है, 'तमिलनाडु सरकार बड़े दुख के साथ तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सेल्वी जयललिता के सोमवार, 5 दिसंबर 2015 को रात साढ़े 11 बजे निधन होने की घोषणा करती है. 6 दिसंबर से सात दिनों का राजकीय शोक होगा, इस अवधि में सभी सरकारी भवनों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा. इस अवधि में आधिकारिक मनोरंजन भी नहीं होगा.' सरकार ने राज्य में सभी शिक्षण संस्थानों में तीन दिवसीय अवकाश की भी घोषणा की है.टिप्पणियां पड़ोस के केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी ने भी जयललिता के सम्मान में मंगलवार को सभी सरकारी कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में एक दिन की छुट्टी की घोषणा की है. (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) मुख्य सचिव पी राम मोहन राव ने एक अधिसूचना में कहा कि इस अवधि में सभी सरकारी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा और इस दौरान कोई आधिकारिक मनोरंजन भी नहीं होगा. इसमें कहा गया है, 'तमिलनाडु सरकार बड़े दुख के साथ तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सेल्वी जयललिता के सोमवार, 5 दिसंबर 2015 को रात साढ़े 11 बजे निधन होने की घोषणा करती है. 6 दिसंबर से सात दिनों का राजकीय शोक होगा, इस अवधि में सभी सरकारी भवनों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा. इस अवधि में आधिकारिक मनोरंजन भी नहीं होगा.' सरकार ने राज्य में सभी शिक्षण संस्थानों में तीन दिवसीय अवकाश की भी घोषणा की है.टिप्पणियां पड़ोस के केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी ने भी जयललिता के सम्मान में मंगलवार को सभी सरकारी कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में एक दिन की छुट्टी की घोषणा की है. (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) इसमें कहा गया है, 'तमिलनाडु सरकार बड़े दुख के साथ तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सेल्वी जयललिता के सोमवार, 5 दिसंबर 2015 को रात साढ़े 11 बजे निधन होने की घोषणा करती है. 6 दिसंबर से सात दिनों का राजकीय शोक होगा, इस अवधि में सभी सरकारी भवनों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा. इस अवधि में आधिकारिक मनोरंजन भी नहीं होगा.' सरकार ने राज्य में सभी शिक्षण संस्थानों में तीन दिवसीय अवकाश की भी घोषणा की है.टिप्पणियां पड़ोस के केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी ने भी जयललिता के सम्मान में मंगलवार को सभी सरकारी कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में एक दिन की छुट्टी की घोषणा की है. (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) 6 दिसंबर से सात दिनों का राजकीय शोक होगा, इस अवधि में सभी सरकारी भवनों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा. इस अवधि में आधिकारिक मनोरंजन भी नहीं होगा.' सरकार ने राज्य में सभी शिक्षण संस्थानों में तीन दिवसीय अवकाश की भी घोषणा की है.टिप्पणियां पड़ोस के केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी ने भी जयललिता के सम्मान में मंगलवार को सभी सरकारी कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में एक दिन की छुट्टी की घोषणा की है. (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) पड़ोस के केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी ने भी जयललिता के सम्मान में मंगलवार को सभी सरकारी कार्यालयों और शिक्षण संस्थानों में एक दिन की छुट्टी की घोषणा की है. (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) (इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
जबरदस्त ऐक्शन, सांस रोक देने वाले स्टंट और मजेदार स्टोरीलाइन. ह्यू जैकमैन बड़े-बड़े लोहे के नाखूनों वाले वॉल्वारिन के तौर पर वापसी कर रहे हैं. फिल्म 3डी में है और डायरेक्शन का जिम्मा जेम्स मैंगोल्ड के पास है. इस बार लोगन/वॉल्वारिन टोक्यो में दुश्मनों से जूझता नजर आएगा. फिल्म 26 जुलाई को रिलीज हो रही है. हाल ही में हॉलीवुड के सबसे प्रभावशाली सितारों में से एक का खिताब जीतने वाले ह्यू कहते हैं, 'मैंने फिल्म के इस चैप्टर के लिए 12 साल का इंतजार किया है. पहली एक्स-मैन के पहले हफ्ते ही, जब मैंने इस कॉमिक को पढ़ा था और प्रोड्यूसर लॉरेन शुलर डोनर से कहा था कि एक दिन हम इस स्टोरीलाइन पर फिल्म बनाएंगे. हम कुछ नया और अलग करना चाहते थे. जब स्टूडियो ने 'द वॉल्वारिन' की बात कही तो उसी समय मैं रोमांच से भर गया. इसे 'वॉल्वारिन-2' नहीं कहा जा सकता, यह एकदम अलग फिल्म है.' जैकमैन फिल्म के प्रोड्यूसर भी हैं और वे कहते हैं, 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतने लंबे समय तक वॉल्वारिन का किरदार निभाऊंगा. ऐसे किरदार के लिए जिस पर उम्र का कोई असर नहीं होता है. इसलिए इस रोल को करना मेरे लिए चुनौती भरा रहा है.' अब इंतजार तो बनता ही है.
भारत के अतिवांछित भगोड़े दाउद इब्राहीम के बारे में पाकिस्तान के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि वह पाकिस्तान में नहीं है। विदेश मामलों और राष्ट्रीय सुरक्षा पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के सलाहाकार सरताज अजीज ने संवाददाताओं को बताया, दाऊद के प्रत्यर्पण के बारे में बहुत सी वार्ताएं और चर्चाएं हुई हैं। वह पाकिस्तान में नहीं है। दक्षेस (सार्क) के विदेश मंत्रियों की बैठक से इतर सरताज ने कहा कि यदि भारत दाऊद के ठिकाने का पता बताता है, तो पाकिस्तान देखेगा और कोशिश करेगा कि वह क्या कर सकता है। माफिया डॉन दाऊद इब्राहीम 1993 के मुंबई बम विस्फोटों के बाद से भारत का मोस्टवांटेड आतंकी के रूप में उभरा था। ऐसे आरोप हैं कि यह विस्फोट उसी ने कराए और उसी ने इनके लिए धन दिया।टिप्पणियां अमेरिका के अनुसार, दाऊद के आतंकी संगठन अल-कायदा के साथ करीबी संबंध हैं। अमेरिका ने उसे 'वैश्विक आतंकी' घोषित कर रखा है। अमेरिका दुनिया भर में उसकी संपत्ति को कुर्क कराने और उसके अभियानों पर कड़ी कार्रवाई कराने के प्रयास में यह मामला संयुक्त राष्ट्र में लेकर गया। आतंकवाद के मसले पर अजीज ने कहा कि यह एक साझा समस्या है और भारत और पाकिस्तान को इस पर एक साथ चर्चा करनी होगी और एक साथ इसका हल निकालना होगा। भारतीय विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद भी इस बैठक में उपस्थित थे। उन्होंने और अजीज ने बैठक की शुरुआत से पहले एक दूसरे का अभिवादन करते हुए हाथ मिलाए। दक्षेस (सार्क) के विदेश मंत्रियों की बैठक से इतर सरताज ने कहा कि यदि भारत दाऊद के ठिकाने का पता बताता है, तो पाकिस्तान देखेगा और कोशिश करेगा कि वह क्या कर सकता है। माफिया डॉन दाऊद इब्राहीम 1993 के मुंबई बम विस्फोटों के बाद से भारत का मोस्टवांटेड आतंकी के रूप में उभरा था। ऐसे आरोप हैं कि यह विस्फोट उसी ने कराए और उसी ने इनके लिए धन दिया।टिप्पणियां अमेरिका के अनुसार, दाऊद के आतंकी संगठन अल-कायदा के साथ करीबी संबंध हैं। अमेरिका ने उसे 'वैश्विक आतंकी' घोषित कर रखा है। अमेरिका दुनिया भर में उसकी संपत्ति को कुर्क कराने और उसके अभियानों पर कड़ी कार्रवाई कराने के प्रयास में यह मामला संयुक्त राष्ट्र में लेकर गया। आतंकवाद के मसले पर अजीज ने कहा कि यह एक साझा समस्या है और भारत और पाकिस्तान को इस पर एक साथ चर्चा करनी होगी और एक साथ इसका हल निकालना होगा। भारतीय विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद भी इस बैठक में उपस्थित थे। उन्होंने और अजीज ने बैठक की शुरुआत से पहले एक दूसरे का अभिवादन करते हुए हाथ मिलाए। अमेरिका के अनुसार, दाऊद के आतंकी संगठन अल-कायदा के साथ करीबी संबंध हैं। अमेरिका ने उसे 'वैश्विक आतंकी' घोषित कर रखा है। अमेरिका दुनिया भर में उसकी संपत्ति को कुर्क कराने और उसके अभियानों पर कड़ी कार्रवाई कराने के प्रयास में यह मामला संयुक्त राष्ट्र में लेकर गया। आतंकवाद के मसले पर अजीज ने कहा कि यह एक साझा समस्या है और भारत और पाकिस्तान को इस पर एक साथ चर्चा करनी होगी और एक साथ इसका हल निकालना होगा। भारतीय विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद भी इस बैठक में उपस्थित थे। उन्होंने और अजीज ने बैठक की शुरुआत से पहले एक दूसरे का अभिवादन करते हुए हाथ मिलाए। आतंकवाद के मसले पर अजीज ने कहा कि यह एक साझा समस्या है और भारत और पाकिस्तान को इस पर एक साथ चर्चा करनी होगी और एक साथ इसका हल निकालना होगा। भारतीय विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद भी इस बैठक में उपस्थित थे। उन्होंने और अजीज ने बैठक की शुरुआत से पहले एक दूसरे का अभिवादन करते हुए हाथ मिलाए।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी है. पिछले करीब एक दशक से राज्य की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी के सामने अपने किले को बचाने की चुनौती है. छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले की प्रतापपुर विधानसभा सीट पर भी इस बार सभी की नजरें टिकी हैं. यह सीट अभी भारतीय जनता पार्टी के पास है. प्रतापपुर 2008 में ही विधानसभा सीट बनी है. इससे पहले ये सीट पिलखा में आती थी. 2013 में इस एसटी सीट पर भारतीय जनता पार्टी के रामसेवक पैकरा ने जीत दर्ज की थी. 2013 विधानसभा चुनाव, एसटी सीट रामसेवक पैकरा, बीजेपी, कुल वोट मिले 65550 प्रेमसाईं सिंह, कांग्रेस, कुल वोट मिले 58407 2008 विधानसभा चुनाव, एसटी सीट प्रेमसाईं सिंह, कांग्रेस, कुल वोट मिले 51505 रामसेवक पैकरा, बीजेपी, 49132 प्रतापपुर के शिवपुर में मौजूद शिवमंदिर टूरिस्टों के लिए काफी पसंदीदा जगह है. सूरजपुर जिले से करीब 80 KM दूर प्रतापपुर से सबसे करीब बड़ा शहर अंबिकापुर ही है. छत्तीसगढ़ के बारे में... आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं. राज्य में अभी कुल 11 लोकसभा और 5 राज्यसभा की सीटें हैं. छत्तीसगढ़ में कुल 27 जिले हैं. राज्य में कुल 51 सीटें सामान्य, 10 सीटें एससी और 29 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 2013 चुनाव में क्या थे नतीजे... 2013 में विधानसभा चुनाव के नतीजे 8 दिसंबर को घोषित किए गए थे. इनमें भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में लगातार तीसरी बार कांग्रेस को मात देकर सरकार बनाई थी. रमन सिंह की अगुवाई में बीजेपी को 2013 में कुल 49 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. जबकि कांग्रेस सिर्फ 39 सीटें ही जीत पाई थी. जबकि 2 सीटें अन्य के नाम गई थीं. 2008 के मुकाबले बीजेपी को तीन सीटें कम मिली थीं, इसके बावजूद उन्होंने पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाई. रमन सिंह 2003 से राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
यह लेख है: एंजेलो मैथेस के नाबाद 80 रन और दिनेश चंडीमाल के अर्द्धशतक की बदौलत श्रीलंका ने पांचवें और अंतिम एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में पाकिस्तान को दो विकेट से हरा दिया। इस जीत के साथ ही श्रीलंका ने 3-1 से यह श्रृंखला जीत ली। पाकिस्तान के ओर से जीत के लिए दिए गए 248 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी श्रीलंकाई टीम ने 49 ओवर और चार गेदों में आठ विकेट खोकर यह लक्ष्य हासिल कर लिया। श्रीलंका की शुरुआत खराब रही और 18 रन के स्कोर पर ही उसका पहला विकेट गिर गया। थरंगा दो रन बनाकर सोहेल तनवीर की गेंद पर बोल्ड हो गए। श्रीलंका की ओर से संगकारा ने 40, चंडीमाल ने 54 और मैथेस ने नाबाद 80 रन बनाए। पाकिस्तान की ओर से तनवीर ने तीन और शाहिद अफ्रीदी ने दो विकेट लिए। मोहम्मद हाफिज ने एक विकेट मिला जबकि दो खिलाड़ी रन आउट हुए।टिप्पणियां इससे पहले, सलामी बल्लेबाज इमरान फरहत और उमर अकमल के अर्द्धशतकों से पाकिस्तान ने श्रीलंका के खिलाफ सात विकेट पर 247 रन का स्कोर खड़ा किया। चार महीने में अपना पहला वनडे खेल रहे फरहत ने दिन रात्रि मैच में 56 रन और अकमल ने नाबाद 55 रन की पारी खेली। पाकिस्तान के ओर से जीत के लिए दिए गए 248 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी श्रीलंकाई टीम ने 49 ओवर और चार गेदों में आठ विकेट खोकर यह लक्ष्य हासिल कर लिया। श्रीलंका की शुरुआत खराब रही और 18 रन के स्कोर पर ही उसका पहला विकेट गिर गया। थरंगा दो रन बनाकर सोहेल तनवीर की गेंद पर बोल्ड हो गए। श्रीलंका की ओर से संगकारा ने 40, चंडीमाल ने 54 और मैथेस ने नाबाद 80 रन बनाए। पाकिस्तान की ओर से तनवीर ने तीन और शाहिद अफ्रीदी ने दो विकेट लिए। मोहम्मद हाफिज ने एक विकेट मिला जबकि दो खिलाड़ी रन आउट हुए।टिप्पणियां इससे पहले, सलामी बल्लेबाज इमरान फरहत और उमर अकमल के अर्द्धशतकों से पाकिस्तान ने श्रीलंका के खिलाफ सात विकेट पर 247 रन का स्कोर खड़ा किया। चार महीने में अपना पहला वनडे खेल रहे फरहत ने दिन रात्रि मैच में 56 रन और अकमल ने नाबाद 55 रन की पारी खेली। श्रीलंका की ओर से संगकारा ने 40, चंडीमाल ने 54 और मैथेस ने नाबाद 80 रन बनाए। पाकिस्तान की ओर से तनवीर ने तीन और शाहिद अफ्रीदी ने दो विकेट लिए। मोहम्मद हाफिज ने एक विकेट मिला जबकि दो खिलाड़ी रन आउट हुए।टिप्पणियां इससे पहले, सलामी बल्लेबाज इमरान फरहत और उमर अकमल के अर्द्धशतकों से पाकिस्तान ने श्रीलंका के खिलाफ सात विकेट पर 247 रन का स्कोर खड़ा किया। चार महीने में अपना पहला वनडे खेल रहे फरहत ने दिन रात्रि मैच में 56 रन और अकमल ने नाबाद 55 रन की पारी खेली। इससे पहले, सलामी बल्लेबाज इमरान फरहत और उमर अकमल के अर्द्धशतकों से पाकिस्तान ने श्रीलंका के खिलाफ सात विकेट पर 247 रन का स्कोर खड़ा किया। चार महीने में अपना पहला वनडे खेल रहे फरहत ने दिन रात्रि मैच में 56 रन और अकमल ने नाबाद 55 रन की पारी खेली। चार महीने में अपना पहला वनडे खेल रहे फरहत ने दिन रात्रि मैच में 56 रन और अकमल ने नाबाद 55 रन की पारी खेली।
यह एक लेख है: चीन में ऑनलाइन मीडिया को इंटरव्‍यू व रिपोर्टिंग का अधिकार देते हुए पहली बार समाचार वेबसाइटों के कर्मियों को शुक्रवार को प्रेस पहचान पत्र प्रदान किया गया। द साइबरस्पेस एडनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना (सीएसी) व स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ प्रेस, पब्लिकेशन, रेडियो, फिल्म एंड टेलीविजन (एसएपीपीआरएफटी) ने चीन सरकार के वैध पोर्टलों, पीपुल्स डेली की आधिकारिक वेबसाइट, समाचार एजेंसी सिन्हुआ व पोर्टल ऑफ तिब्बत सहित 14 महत्वपूर्ण सेंट्रल न्यूज पोर्टलों के 594 संवाददाताओं के पहले समूह को प्रेस कार्ड जारी किया।टिप्पणियां मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वाणिज्यिक न्यूज पोर्टलों सीना व सोहू को इस सूची में शामिल नहीं किया गया। सीएसी के प्रवक्ता जियांग जुन ने कहा कि प्रेस कार्ड बिल्कुल वैसा ही है, जैसा पारंपरिक मीडिया में प्रदान किया जाता है। कार्डधारक पारंपरिक मीडिया के पत्रकारों के तरह ही रिपोर्टिंग के दायित्वों व जिम्मेदारियों का वहन करेंगे। उन्होंने कहा, "दोनों प्राधिकारी ऑनलाइन मीडिया के योग्य व अनुभवी संवाददाताओं को कार्ड जारी करने का काम साल 2016 के अंत तक जारी रखेंगे।" उल्लेखनीय है कि चीन ने इससे पहले वेबसाइटों को रिपोर्टिंग करने पर पाबंदी लगा रखी थी, उन्हें पारंपरिक मीडिया से मिली खबरों को केवल संपादित व प्रकाशित करने का अधिकार था। द साइबरस्पेस एडनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना (सीएसी) व स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ प्रेस, पब्लिकेशन, रेडियो, फिल्म एंड टेलीविजन (एसएपीपीआरएफटी) ने चीन सरकार के वैध पोर्टलों, पीपुल्स डेली की आधिकारिक वेबसाइट, समाचार एजेंसी सिन्हुआ व पोर्टल ऑफ तिब्बत सहित 14 महत्वपूर्ण सेंट्रल न्यूज पोर्टलों के 594 संवाददाताओं के पहले समूह को प्रेस कार्ड जारी किया।टिप्पणियां मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वाणिज्यिक न्यूज पोर्टलों सीना व सोहू को इस सूची में शामिल नहीं किया गया। सीएसी के प्रवक्ता जियांग जुन ने कहा कि प्रेस कार्ड बिल्कुल वैसा ही है, जैसा पारंपरिक मीडिया में प्रदान किया जाता है। कार्डधारक पारंपरिक मीडिया के पत्रकारों के तरह ही रिपोर्टिंग के दायित्वों व जिम्मेदारियों का वहन करेंगे। उन्होंने कहा, "दोनों प्राधिकारी ऑनलाइन मीडिया के योग्य व अनुभवी संवाददाताओं को कार्ड जारी करने का काम साल 2016 के अंत तक जारी रखेंगे।" उल्लेखनीय है कि चीन ने इससे पहले वेबसाइटों को रिपोर्टिंग करने पर पाबंदी लगा रखी थी, उन्हें पारंपरिक मीडिया से मिली खबरों को केवल संपादित व प्रकाशित करने का अधिकार था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वाणिज्यिक न्यूज पोर्टलों सीना व सोहू को इस सूची में शामिल नहीं किया गया। सीएसी के प्रवक्ता जियांग जुन ने कहा कि प्रेस कार्ड बिल्कुल वैसा ही है, जैसा पारंपरिक मीडिया में प्रदान किया जाता है। कार्डधारक पारंपरिक मीडिया के पत्रकारों के तरह ही रिपोर्टिंग के दायित्वों व जिम्मेदारियों का वहन करेंगे। उन्होंने कहा, "दोनों प्राधिकारी ऑनलाइन मीडिया के योग्य व अनुभवी संवाददाताओं को कार्ड जारी करने का काम साल 2016 के अंत तक जारी रखेंगे।" उल्लेखनीय है कि चीन ने इससे पहले वेबसाइटों को रिपोर्टिंग करने पर पाबंदी लगा रखी थी, उन्हें पारंपरिक मीडिया से मिली खबरों को केवल संपादित व प्रकाशित करने का अधिकार था। उन्होंने कहा, "दोनों प्राधिकारी ऑनलाइन मीडिया के योग्य व अनुभवी संवाददाताओं को कार्ड जारी करने का काम साल 2016 के अंत तक जारी रखेंगे।" उल्लेखनीय है कि चीन ने इससे पहले वेबसाइटों को रिपोर्टिंग करने पर पाबंदी लगा रखी थी, उन्हें पारंपरिक मीडिया से मिली खबरों को केवल संपादित व प्रकाशित करने का अधिकार था।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि भगोड़ा आर्थिक अधिनियम-2018 के तहत जिन 7 व्यक्तियों के खिलाफ आवेदन दाखिल किए गए उनके संदर्भ में 14,461 करोड़ रुपये की संपत्तियों की कुर्की या जब्ती की कार्रवाई की गई है. लोकसभा में शिशिर कुमार अधिकारी के एक सवाल के लिखित जवाब में वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने सदन को यह जानकारी दी. विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे आर्थिक अपराधियों के देश छोड़कर भाग जाने के बाद सरकार इसी साल भगोड़ा आर्थिक अपराधी बिल लेकर आई थी, जिसे संसद के दोनों सदनों से मंजूरी दी चुकी है. मंत्री ने लोकसभा में कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से सक्षम अदालत में 7 व्यक्तियों के खिलाफ भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-2018 के तहत 7 आवेदन दाखिल किए गए. भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-2018 के तहत किसी परिसंपत्ति को जब्त नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि इन 7 व्यक्तियों के संदर्भ में धनशोधन निवारण अधिनियम-2002 के तहत 14,461 करोड़ रुपये की संपत्तियों की कुर्की या जब्ती की गई है. क्या कहता है कानून संसद के दोनों सदनों में बैंकों के करोड़ों रुपये लेकर विदेश भागने वाले नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून को पारित किया था. इस बिल में ऐसे भगोड़ों की संपत्ति जब्त करने का प्रावधान है. साथ ही बैकों से कर्ज के तौर पर लिया गया पैसा वसूल करने के अन्य उपाय भी इस बिल में किए गए हैं. सरकार इसके लिए पहले से ही अध्यादेश लेकर आई थी जिसकी जगह भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून ने ली है. इसमें मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 के तहत एक विशेष कोर्ट के गठन का प्रावधान है. यह अदालत ही किसी डिफॉल्टर को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करेगी. भगोड़ा उन्हें घोषित किया जाएगा, जिनके खिलाफ शेड्यूल्ड ऑफेंस के तहत गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका हो. जो देश छोड़ चुके हों और वापस आने से इनकार कर रहे हैं.
भूमि अधिग्रहण बिल को पारित नहीं होने देने और इसके तहत एक इंच भी जमीन नहीं देने के कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयान पर बीजेपी ने सोमवार को पलटवार किया. प्रियंका का भी नाम लिया बीजेपी की तरफ से कहा गया कि राहुल का मतलब शायद यह है कि वह अनियमितताएं बरत कर हासिल की गई राजस्थान और हरियाणा में अपने जीजा रॉबर्ट वाड्रा और बहन प्रियंका गांधी की हिमाचल प्रदेश की जमीनों में से ‘एक इंच’ भी नहीं देंगे. राहुल को कहा बच्चा बीजेपी के प्रवक्ता एमजे अकबर ने एक भी इंच जमीन नहीं देने के राहुल के बयान पर कहा, ‘कांग्रेस के पास कहने के लिए जब कुछ नहीं होता, तभी भटका बच्चा चिल्लाता है. उम्मीद है कि बच्चा भी बालिग हो जाएगा.’ राहुल पर अपना प्रहार जारी रखते हुए उन्होंने कहा, ‘जब वह एक इंच भी जमीन नहीं देने की बात करते हैं तो उनका मतलब शायद यह होता है कि अनियमितताओं के जरिए राजस्थान और हरियाणा में अर्जित अपने जीजा वाड्रा की भूमि में से एक इंच भी नहीं देंगे. हिमाचल प्रदेश में अपनी बहन प्रियंका गांधी की जमीन में से एक इंच भी नहीं देंगे.’ 'कांग्रेस संसद में अकेली पार्टी नहीं' भूमि बिल और कथित भ्रष्टाचार के कुछ मामलों में मंगलवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र को नहीं चलने देने की कांग्रेस की चेतावनी पर अकबर ने ‘संसद में कांग्रेस अकेला दल नहीं है, और भी पार्टियां हैं. सबकी अलग अलग राय होती है. लोग समझने लगे हैं कि नकारात्मक दिखावटी आक्रामकता ठीक नहीं है.’ राजस्थान में गरजे थे राहुल राहुल गांधी ने हाल में राजस्थान में कहा था, ‘हम संसद में भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित नहीं होने देंगे. एक इंच भी जमीन नहीं देंगे. छह महीने में 56 इंच का सीना 5.6 इंच में बदल जाएगा.’
लेख: महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर जारी गतिरोध के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे राज्य में उन क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं, जहां बेमौसम बारिश के कारण फसल नष्ट हुई हैं. मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने बताया कि फडणवीस ने रविवार को अकोला में किसानों से मुलाकात की और नष्ट फसलों का मुआयना किया. वहीं शिवसेना की ओर से जारी बयान के अनुसार ठाकरे रविवार को औरंगाबाद जिले में पहुंचे, जहां कन्नड़ और वैजापुर तालुका में फसलों को काफी नुकसान हुआ है. बता दें, राज्य सरकार ने शनिवार को बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों को तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए विशेष प्रावधान के तहत 10,000 करोड़ रुपए मंजूर किए थे. फडणवीस ने शुक्रवार को एक समीक्षा बैठक के बाद कहा था कुछ जिलों के 325 तालुकाओं में फैले 54.22 लाख हेक्टेयर में ज्वार, धान, कपास, मक्का, अरहर और सोयाबीन जैसी फसलों को नुकसान हुआ है. अरब सागर में चक्रवात के कारण राज्य को बेमौसम बारिश का सामना करना पड़ा था.
यह एक लेख है: 'द एटरनल्स' फिल्म की शूटिंग कर रही हॉलीवुड एक्ट्रेस एंजलिना जोली (Angelina Jolie) और अभिनेता रिचर्ड मैडेन को इलाके में बम मिलने के बाद को सेट से सुरक्षित बाहर निकाला गया. द सन की रिपोर्ट के अनुसार, बम निरोधक विशेषज्ञों को डिवाइस की मदद से बम को निष्क्रिय करने की अनुमति देने के लिए फ्यूरीटेवेंटुरा के कैनरी द्वीप पर स्थित बेस को खाली करना पड़ा. डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा माना जा रहा है कि यह दूसरे विश्व युद्ध का नाजियों द्वारा छोड़ा हुआ बेस रहा होगा. एक सूत्र ने कहा, "यह स्पष्ट रूप से भयानक था. बम यहां दशकों से रहा होगा, जिसे किसी ने छुआ तक नहीं क्या पता ऐसा करने पर क्या हो जाता. दुनिया के बड़े सितारे उस वक्त सेट पर मौजूद थे और कोई भी चांस नहीं लेना चाहता था. सौभाग्य से विशेषज्ञों इस परिस्थिति से निपटने में कामयाब रहे." घटनास्थल पर मौजूद कई लोगों ने कहा कि 'द एटरनल्स' फिल्म की शूटिंग के दौरान यह सूचना तेजी से फैली और सभी को उचित दूरी पर जाने के लिए कहा गया. एंजलिना जोली Angelina Jolie) और रिचर्ड मैडेन मार्वल की फिल्म 'सुपरहीरो' में एटरनल लीडर थैना और इकारिस का किरदार निभा रहे हैं.
साल 2018 बॉलीवुड के लिए खास होने वाला है. इस साल कई मेगा बजट फिल्में बॉक्स ऑफिस पर दस्तक देंगी. इनमें से कुछ फिल्में ऐसी हैं जिन्हें मिस करना भूल होगी. कई अच्छी कंटेंट की छोटी और बड़ी बजट फिल्में दर्शकों के सामने बेहतरीन सिनेमा की मिसाल पेश करेंगी. इन फिल्मों की लोगों के बीच कम चर्चा है. लेकिन इन्हें देखने की कई बड़ी वजह हैं. चलिए जानते हैं 2018 की उन फिल्मों के बारे जो आपको जरूर देखनी चाहिए... परी अनुष्का शर्मा की फिल्म परी 9 फरवरी को रिलीज होगी. इसे प्रोसित रॉय डायरेक्ट कर रहे हैं. अनुष्का के साथ फिल्म में परमब्रता चटर्जी हैं. यह फिल्म अनुष्का के प्रोडक्शन बैनर तले बन रही है. अनुष्का की प्रोडक्शन फिल्म NH10, फिल्लौरी बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई थी. शादी के बाद यह उनकी पहली फिल्म है जो पर्दे पर रिलीज होगी. पैडमैन में दिखेगा अक्षय कुमार का देसी और शहरी अंदाज- PHOTO अय्यारी नीरज पांडे की थ्रिलर फिल्म अय्यारी 26 जनवरी को रिलीज हो रही है. इसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा, मनोज वाजपेयी, राकुल प्रीत सिंह, अनुपम खेर, नसीरूद्दीन शाह हैं. बॉक्स ऑफिस पर अय्यारी अक्षय कुमार की पैडमैन के साथ क्लैश करेगी. नीरज पांडे के फिल्म होना ही इसका प्लस प्वॉइंट है. सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों के लिए मशहूर नीरज पांडे की इस फिल्म से फैंस को काफी उम्मीदें हैं. हिचकी रानी मुखर्जी प्रेग्नेंसी के बाद फिल्मी पर्दे पर वापसी कर रही हैं. सिद्धार्थ पी मल्होत्रा की निर्देशित मूवी 23 फरवरी को रिलीज हो रही है. दमदार कंटेंट पर बनी यह फिल्म आमिर खान की 'तारे जमीन पर' की याद दिलाती है. साथ ही रानी का एक्टिंग फिल्म का प्लस प्वॉइंट है. परमाणु जॉन अब्राहम, डायना पेंटी और बोमन ईरानी स्टारर फिल्म परमाणु 23 फरवरी को रिलीज होने वाली है. इसे अभिषेक शर्मा ने डायरेक्ट किया है. जॉन की यह फिल्म सच्ची घटना से प्रेरित है जो कि इसे खास बनाती है. फिल्म पोकरण में 11 और 13 मई 1998 को हुए सिलसिलेवार पांच परमाणु परीक्षणों की याद दिलाती है. कालाकांडी सैफ अली खान स्टारर यह फिल्म 12 जनवरी को रिलीज होगी. इसमें अक्षय ओेबेरॉय, कुणाल रॉय कपूर, दीपक डोबरियाल, विजय राज सरीखे स्टार्स मौजूद हैं. कालाकांडी को देखने को सबसे बड़ी वजह है सैफ अली खान का मजेदार रोल. वह पहली बार ऐसे दिलचस्प किरदार में नजर आएंगे. इसे सुपरहिट फिल्म डेल्ही बैली के राइटर अक्षत वर्मा ने लिखा है और डायरेक्ट भी किया है. फिल्मी करियर में अक्षय कुमार का सबसे डरावना लुक, 2.0 का नया पोस्टर जारी पद्मावत यह फिल्म शुरू से ही विवादों में रही है. तमाम राजपूत संगठन फिल्म का विरोध कर रहे हैं. 1 दिसंबर 2017 को रिलीज होने वाली फिल्म पद्मावत सियासी पचड़े में फंसने की वजह से अब तक सिनेमाघरों में नहीं पहुंच पाई. कयास लगाए जा रहे हैं कि फिल्म फरवरी में रिलीज हो जाएगी. संजय लीला भंसाली की निर्देशित फिल्म में दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह अहम रोल में हैं. दासदेव रिचा चड्ढा, राहुल भट्ट और अदिति राव हैदरी की रोमांटिक थ्रिलर फिल्म दासदेव 16 फरवरी को रिलीज होगी. इसे सुधीर मिश्रा ने डायरेक्ट किया है. यह फिल्म सरत चंद्र चट्टोपाध्याय के क्लासिक उपन्यास 'देवदास' का एक आधुनिक फ्लिप है. इसमें देव, चंद्रमुखी और पारो के करेक्टर को अलग क्लेवर में दिखाया गया है. दत्त बायोपिक एक्टर संजय दत्त की बायोपिक पर बनी फिल्म के 30 मार्च को रिलीज होने की खबरें हैं. फिल्म की सबसे अहम बात है कि इसमें संजय दत्त के रोल में रणबीर कपूर नजर आएंगे. जो कि हूबहू संजय दत्त की कॉपी लग रहे हैं. इसे राजकुमार हिरानी ने डायरेक्ट किया है. फिल्म की स्टारकास्ट में परेश रावल, मनीषा कोइराला, दीया मिर्जा, सोनम कपूर, तब्बू हैं. अक्टूबर वरुण धवन की फिल्म अक्टूबर 13 अप्रैल को रिलीज होगी. इसमें उनके अपोजिट न्यूकमर बनिता संधू हैं. फिल्म को सुजीत सरकार निर्देशित कर रहे हैं. मणिकर्णिका-द क्वीन ऑफ झांसी कंगना रनौत की पीरियड ड्रामा फिल्म मणिकर्णिका 27 अप्रैल 2018 को रिलीज होनी है. फिल्म का निर्देशन कृष ने किया है. मणिकर्णिका से छोटे परदे की लाडली बहू और सुशांत सिंह राजपूत की एक्स गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे बॉलीवुड में डेब्यू कर रही हैं. इसमें सोनू सूद, अतुल कुलकर्णी भी हैं. रानी झांसी पर बनने वाली यह पहली फिल्म है. कंगना की दमदार एक्टिंग में रानी झांसी की जिंदगी को देखना इंट्रेस्टिंग है. रिसेप्शन के बाद मुंबई रवाना हुए विराट और अनुष्का, देखें PHOTOS राजी आलिया भट्ट स्टारर थ्रिलर फिल्म राजी 11 मई को रिलीज होने वाली है. इसे मेघना गुलजार ने डायरेक्ट किया है. यह फिल्म हरिंदर सिक्का की कॉलिंग सेहमत नॉवेल पर आधारित है. इसमें आलिया भट्ट पहली बार कश्मीरी लड़की के रोल में दिखेंगी. वीरे दी वेडिंग प्रेग्नेंसी के बाद करीना कपूर वीरे दी वेडिंग से कमबैक कर रही हैं. इसमें सोनम कपूर, स्वरा भास्कर और शिखा तल्सानिया भी नजर आएंगी. इसे शशांक घोष डायरेक्ट कर रहे हैं. यह 18 मई को रिलीज होगी. धड़क श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर मराठी फिल्म 'सैराट' के हिंदी रीमेक धड़क से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली हैं. फिल्म में उनके साथ शाहिद कपूर के भाई ईशान खट्टर हैं. 6 जुलाई 2018 को रिलीज होगी जाह्नवी की फिल्म. गोल्ड अक्षय कुमार ने गोल्ड फिल्म की शूटिंग खत्म कर ली है. इसे रीमा कागती ने डायरेक्ट किया है जोकि 15 अगस्त 2018 को रिलीज होने वाली है. अक्षय के साथ मौनी रॉय, गौहर खान, कुणाल कपूर, अमित साद नजर आएंगे. यह हॉकी प्लेयर बलबीर सिंह की जिंदगी पर बेस्ड है. जिनके निर्देशन में भारतीय टीम ने पहला ओलिंपिक मेडल जीता था. केदारनाथ सैफ अली खान की बेटी सारा अभिषेक कपूर की फिल्म 'केदारनाथ' से डेब्यू करने वाली हैं. फिल्म में सारा के हीरो सुशांत सिंह राजपूत होंगे और यह 21 दिसंबर 2018 को रिलीज होगी. फैशन के साथ ट्रेडिशन: चर्चाओं में रहा 2017 में इन सेलेब्स का 'ब्राइडल लुक' ठग्स ऑफ हिंदोस्तान यह इस साल की बड़ी बजट फिल्मों में से एक है. इसमें आमिर खान, अमिताभ बच्चन, कटरीना कैफ और फातिमा सना शेख हैं. यह 7 नवंबर को रिलीज होगी. इसे विजय कृष्ण आचार्य ने डायरेक्ट किया है. आमिर-अमिताभ के पहली बार एकसाथ आने से फैंस के बीच फिल्म का जबरदस्त क्रेज है.
कश्मीर में इजरायली मॉडल की चर्चा कश्मीरी पंडितों की घर वापसी पर मंथन भारतीय राजनयिक के बयान से PAK को मिर्ची अमेरिका में भारत के एक टॉप राजनयिक ने कहा है कि कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए भारत को कश्मीर में 'इजरायल मॉडल' अपनाना चाहिए और कश्मीरी पंडितों को वहां आबाद करना चाहिए. न्यूयार्क में भारत के काउंसल जनरल संदीप चक्रवर्ती ने कश्मीरी हिंदुओं के एक कार्यक्रम में कहा कि अगर इजरायली ऐसा कर सकते हैं तो हम भी कर सकते हैं. संदीप चक्रवर्ती के इस बयान पर पाकिस्तान तिलमिला गया है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि ये बयान मानवाधिकार के खिलाफ है. हालांकि राजनयिक संदीप चक्रवर्ती ने बाद में कहा कि उनके बयान का गलत अर्थ निकाला गया है. इजरायली मॉडल की चर्चा संदीप चक्रवर्ती न्यूयॉर्क में कश्मीरी पंडितों के एक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाने पर भी चर्चा की. इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "मुझे भरोसा है कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के हालात सुधरेंगे, इससे रिफ्यूजियों को वापस लौटने में मदद मिलेगी, ऐसा होता आप अपनी जिंदगी में देख सकेंगे. आप वापस जा सकेंगे...आप अपने घर जा सकेंगे और आप सुरक्षा का एहसास कर सकेंगे, क्योंकि ऐसा होने का दुनिया में एक मॉडल है." दरअसल संदीप चक्रवर्ती का इशारा इजरायल की ओर था. आगे उन्होंने कहा, "मुझे समझ में नहीं आता है हम लोग इसे फॉलो क्यों नहीं करते हैं. मिडिल ईस्ट में ऐसा हो चुका है, यदि इजरायल के लोग ऐसा कर सकते हैं, हमलोग भी कर सकते हैं." इजरायल ने बसाई है बस्ती बता दें कि 1967 के बाद से इजरायल ने वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरुशलम में लगभग 140 कॉलोनियां बसाई है. कई अंतरराष्ट्रीय संगठन इन कॉलोनियों को अवैध मानते हैं." पाकिस्तान को लगी मिर्ची भारतीय राजनयिक के इस बयान से पाकिस्तान तिलमिला गया है. बुधवार को इमरान खान ने कहा कि ये भारत की मानसिकता को दिखाता है. इमरान खान ने एक ट्वीट कर कहा कि कश्मीर को लेकर ताकतवर देश चुप्पी साधे हुए हैं. भारतीय राजनयिक ने कही पूरी बात वहीं इस मु्ददे पर भारतीय राजनयिक ने कहा कि जम्मू-कश्मीर पर उनकी टिप्पणी और इजरायल के संदर्भ को गलत तौर पर पेश किया गया है. उन्होंने कहा, "मैंने अपने कमेंट पर सोशल मीडिया में टिप्पणियां देखी हैं, मेरे कमेंट गलत संदर्भ में देखा गया है."
लेख: मित्रवर संपादक, मुझे तीन महीने का अवकाश चाहिए। मैं 'लीव' शब्द का इस्तमाल नहीं कर रहा हूं वरना आप समझने लगेंगे कि मैं फोबिया और झूठे प्रचारों के बहकावे में आ गया हूं। जबसे ब्रिटेन में 'लीव' जीता है तब से 'रीमेन' वाले लोग 'लीव' वालों को भला बुरा कह रहे हैं। 'लीव' समर्थकों को कमअक्ल और बदअक्ल समझा जा रहा है। इसलिए मैंने अवकाश शब्द का प्रयोग किया है। ब्रिटेन ने यूरोपियन यूनियन से अलग होने का जो फैसला लिया है उसे ब्रेक्ज़िट कहा जा रहा है। मैं क्यों तीन महीने का अवकाश चाहता हूं? मैं कई दिनों से दुनिया को समझने का प्रयास कर रहा था कि पुराने मॉडल का हवाई जहाज़ लेकर नेता यहां वहां उड़ रहे हैं, कुछ हो नहीं रहा। उल्टा कई तरह के आर्थिक और कूटनीतिक क्लब बन गए हैं। अब ठेके लेने की होड़ में देश भी इस तरह से शामिल होने लगे हैं कि मुझे आशंका है कि वे मुल्क के नाम में कंस्ट्रक्शन लिमिटेड न जोड़ लें। ज़्यादा नहीं बस इतना समझ आया है कि 2008 से इन नेताओं ने कितने तेल फूंक दिये, इसके चक्कर में टीवी के ज़रिये ख़ुद महान और विश्व नायक बन गए लेकिन आर्थिक हालात में सुधार नहीं हुआ। इसमें कमाल यह है कि कोई इस आर्थिक व्यवस्था पर सवालिया निशान नहीं लगाना चाहता। कोई नहीं बता रहा है कि आठ साल के प्रयास के बाद अर्थव्यवस्था के बाग़ों में बहार क्यों नहीं आई। बचपन में मैं जब कमज़ोर विद्यार्थी था तो बैग में सारी किताबें लेकर चलता था। मेरे पड़ोसी अंकल ने कहा कि कमज़ोर विद्यार्थी का बस्ता हमेशा भारी रहता है। वही हाल इन नेताओं का है। ख़ैर इस पत्र का मक़सद अवकाश मांगना है। अर्थव्यवस्था पर लेक्चर देकर नोबल पुरस्कार प्राप्त करना नहीं है। मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, सोनीपत घूमते घूमते बीस साल गुज़र गए तो हिन्दी के इस पत्रकार को ग्लोबल नागरिक होने की इच्छा जागृत हुई है। मैं अपने भीतर संचित उत्तर भारत के तमाम अनुभवों से आज़ाद होना चाहता हूं। कब तक हर चुनाव में एक ही बात जानूंगा और बताऊंगा। लगा कि नए नए विषयों और भूगोल की तरफ कदम बढ़ा कर देखें कि क्या वहां दुनिया कुछ अलग है। मुझे नई जानकारियां रोमांचित भी कर रही थीं। सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था कि ब्रेक्ज़िट हो गया। जिस तरह से भारतीय मीडिया का गुरुत्वाकर्षण बल दिल्ली में होता है उसी तरह से ब्रिट मीडिया का लंदन में होता है। भारत से किसी ने वहां जाकर ब्रिटेन के बदलते समाज को समझने का प्रयास नहीं किया। ब्रिटेन वालों ने भी यही किया, लोगों से बात करने के बजाए सर्वे सर्वे खेलने लगे। वहां के फटीचर मीडिया का जो हाल है वही यहां के मीडिया का है। भारत में सारे लोग इंडिपेंटेंड, गार्डियन, डेली मेल, टेलिग्राफ, न्यू यार्कर, आई टीवी, बीबीसी, सीएनएन के ज़रिये ब्रिटेन को दो दिन में समझ गए हैं और भारत के अखबारों में लेख लिखने लगे हैं। दो दिन से कोई भारतीय अखबार ही नहीं पढ़ रहा है ! जबकि ब्रेक्ज़िट होने से पहले किसी को पता नहीं था कि क्या होने वाला है। हो गया तो यहां वहां का मीडिया होने वालों के समर्थकों को ही गरिया रहा है। मीडिया किसके हित में नागरिकों के विरोध में खड़ा हो रहा है। बोलता क्यों नहीं कि चवालीस लाख रुपये का क़र्ज़ा लेकर कोई ग्रेजुएट बनेगा तो बाकी कई लोग ऐसे भी होंगे जो ग्रेजुएट नहीं बनेंगे। जब ग़रीबों को ऑक्सफोर्ड नहीं मिला तो वे क्यों कैंब्रीज की तरह बात करेंगे। बताओ न भाई कि वहां कम पढ़े लिखे लोग क्यों हैं। कल अगर मोदी फ़ेल हो जाएं तो इसमें मतदाता की क्या ग़लती है। उसका फ़ैसला कैसे ग़लत है। उसी तरह से ब्रिक्जिट को वोट करने वाले ग़रीब और कम पढ़े लिखे मतदाता कैसे दोषी है। लंदन का मीडिया कह रहा है कि लोग बहकावे में आ गए। अरे तो आप लोग क्या कर रहे थे? क्या आप राजनीतिक कॉरपोरेट और मीडिया के इस खेल के खिलाफ लिख रहे थे जिसके खिलाफ वहां के लोग होते जा रहे थे। मीडिया का भी चरित्र कार्टेल क्लब की तरह होता जा रहा है। दुनिया भर में जिस तरह से लिखने वाले सक्रिय हो गए हैं उसी तरह से सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले सक्रिय हो गए हैं। कभी कोई गार्डियन का लेख ठेल दे रहा है तो कभी वॉक्स डॉट कॉम और मीडियम का। हम लोग वहां की मीडिया पर अपने यहां की मीडिया जितना ही भरोसा करते हैं। माडिया आंखें बंद कर लिखता है और हम लोग आंखें बंद कर पढ़ लेते हैं। बताइये सर वहां के मीडिया को पता ही नहीं चला कि 'लीव' जीतने वाला है। वो 'रीमेन' की उम्मीदें परोस रहा था। हम उस मीडिया के विश्लेषण को पढ़े जा रहे हैं। पढ़े जा रहे हैं फिर यहां के अखबारों में लिखे जा रहे हैं। अब सब पढ़कर लिखने लगे हैं कि मैं जिस ब्रिटेन में जागा हूं, वो वह ब्रिटेन नहीं जिसे मैं जानता था। जानने वालों ने समझा था कि नया जानने की ज़रूरत नहीं है। जिन दलों के बीच वे शटल कॉर्क बने हुए हैं उनकी करतूतों पर सवाल लगभग बंद हो गए हैं। राजनीतिक दल 'कार्टेल' का कॉकटेल पी रहे हैं। किसी को देखना चाहिए कि दुनिया भर में पंद्रह साल से अधिक उम्र के दलों की समाप्ति का समय आ गया है। इनमें कुछ बचा नहीं है। नया नेता और मज़बूत नेता के टटपुंजिया तर्क बेकार साबित हो रहे हैं। जानकार कुलीनों की निष्ठा लोगों के प्रति कम इन दलों के प्रति ज़्यादा हो गई है। वहां के लोगों को कुतर्की और अंध राष्ट्रवादी बताने की जगह अमीर और ग़रीब कहा जाना चाहिए। कॉरपोरेट का विस्तार ग़लत नहीं है लेकिन जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। ट्वीटरविहीन भारतीय किसान आत्महत्या कर रहा है और सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षक तक नहीं हैं। इसके बिना भी जीडीपी तरक़्क़ी कर रही है। चाटुकारिता चरम पर हैं। तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए लंदन वाले जानकार सदमे में हैं। उन्हीं के जैसे भाई बंधु भारत में सदमे में हैं। जैसे किसी के नईहर में चोरी हो गई हो। अरे भाई टीवी और अखबार के ज़रिये जब देश को जानेंगे तो इतना ही जानेंगे जो आप जानते रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार मुझे तीन महीने का अवकाश चाहिए। मैं 'लीव' शब्द का इस्तमाल नहीं कर रहा हूं वरना आप समझने लगेंगे कि मैं फोबिया और झूठे प्रचारों के बहकावे में आ गया हूं। जबसे ब्रिटेन में 'लीव' जीता है तब से 'रीमेन' वाले लोग 'लीव' वालों को भला बुरा कह रहे हैं। 'लीव' समर्थकों को कमअक्ल और बदअक्ल समझा जा रहा है। इसलिए मैंने अवकाश शब्द का प्रयोग किया है। ब्रिटेन ने यूरोपियन यूनियन से अलग होने का जो फैसला लिया है उसे ब्रेक्ज़िट कहा जा रहा है। मैं क्यों तीन महीने का अवकाश चाहता हूं? मैं कई दिनों से दुनिया को समझने का प्रयास कर रहा था कि पुराने मॉडल का हवाई जहाज़ लेकर नेता यहां वहां उड़ रहे हैं, कुछ हो नहीं रहा। उल्टा कई तरह के आर्थिक और कूटनीतिक क्लब बन गए हैं। अब ठेके लेने की होड़ में देश भी इस तरह से शामिल होने लगे हैं कि मुझे आशंका है कि वे मुल्क के नाम में कंस्ट्रक्शन लिमिटेड न जोड़ लें। ज़्यादा नहीं बस इतना समझ आया है कि 2008 से इन नेताओं ने कितने तेल फूंक दिये, इसके चक्कर में टीवी के ज़रिये ख़ुद महान और विश्व नायक बन गए लेकिन आर्थिक हालात में सुधार नहीं हुआ। इसमें कमाल यह है कि कोई इस आर्थिक व्यवस्था पर सवालिया निशान नहीं लगाना चाहता। कोई नहीं बता रहा है कि आठ साल के प्रयास के बाद अर्थव्यवस्था के बाग़ों में बहार क्यों नहीं आई। बचपन में मैं जब कमज़ोर विद्यार्थी था तो बैग में सारी किताबें लेकर चलता था। मेरे पड़ोसी अंकल ने कहा कि कमज़ोर विद्यार्थी का बस्ता हमेशा भारी रहता है। वही हाल इन नेताओं का है। ख़ैर इस पत्र का मक़सद अवकाश मांगना है। अर्थव्यवस्था पर लेक्चर देकर नोबल पुरस्कार प्राप्त करना नहीं है। मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, सोनीपत घूमते घूमते बीस साल गुज़र गए तो हिन्दी के इस पत्रकार को ग्लोबल नागरिक होने की इच्छा जागृत हुई है। मैं अपने भीतर संचित उत्तर भारत के तमाम अनुभवों से आज़ाद होना चाहता हूं। कब तक हर चुनाव में एक ही बात जानूंगा और बताऊंगा। लगा कि नए नए विषयों और भूगोल की तरफ कदम बढ़ा कर देखें कि क्या वहां दुनिया कुछ अलग है। मुझे नई जानकारियां रोमांचित भी कर रही थीं। सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था कि ब्रेक्ज़िट हो गया। जिस तरह से भारतीय मीडिया का गुरुत्वाकर्षण बल दिल्ली में होता है उसी तरह से ब्रिट मीडिया का लंदन में होता है। भारत से किसी ने वहां जाकर ब्रिटेन के बदलते समाज को समझने का प्रयास नहीं किया। ब्रिटेन वालों ने भी यही किया, लोगों से बात करने के बजाए सर्वे सर्वे खेलने लगे। वहां के फटीचर मीडिया का जो हाल है वही यहां के मीडिया का है। भारत में सारे लोग इंडिपेंटेंड, गार्डियन, डेली मेल, टेलिग्राफ, न्यू यार्कर, आई टीवी, बीबीसी, सीएनएन के ज़रिये ब्रिटेन को दो दिन में समझ गए हैं और भारत के अखबारों में लेख लिखने लगे हैं। दो दिन से कोई भारतीय अखबार ही नहीं पढ़ रहा है ! जबकि ब्रेक्ज़िट होने से पहले किसी को पता नहीं था कि क्या होने वाला है। हो गया तो यहां वहां का मीडिया होने वालों के समर्थकों को ही गरिया रहा है। मीडिया किसके हित में नागरिकों के विरोध में खड़ा हो रहा है। बोलता क्यों नहीं कि चवालीस लाख रुपये का क़र्ज़ा लेकर कोई ग्रेजुएट बनेगा तो बाकी कई लोग ऐसे भी होंगे जो ग्रेजुएट नहीं बनेंगे। जब ग़रीबों को ऑक्सफोर्ड नहीं मिला तो वे क्यों कैंब्रीज की तरह बात करेंगे। बताओ न भाई कि वहां कम पढ़े लिखे लोग क्यों हैं। कल अगर मोदी फ़ेल हो जाएं तो इसमें मतदाता की क्या ग़लती है। उसका फ़ैसला कैसे ग़लत है। उसी तरह से ब्रिक्जिट को वोट करने वाले ग़रीब और कम पढ़े लिखे मतदाता कैसे दोषी है। लंदन का मीडिया कह रहा है कि लोग बहकावे में आ गए। अरे तो आप लोग क्या कर रहे थे? क्या आप राजनीतिक कॉरपोरेट और मीडिया के इस खेल के खिलाफ लिख रहे थे जिसके खिलाफ वहां के लोग होते जा रहे थे। मीडिया का भी चरित्र कार्टेल क्लब की तरह होता जा रहा है। दुनिया भर में जिस तरह से लिखने वाले सक्रिय हो गए हैं उसी तरह से सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले सक्रिय हो गए हैं। कभी कोई गार्डियन का लेख ठेल दे रहा है तो कभी वॉक्स डॉट कॉम और मीडियम का। हम लोग वहां की मीडिया पर अपने यहां की मीडिया जितना ही भरोसा करते हैं। माडिया आंखें बंद कर लिखता है और हम लोग आंखें बंद कर पढ़ लेते हैं। बताइये सर वहां के मीडिया को पता ही नहीं चला कि 'लीव' जीतने वाला है। वो 'रीमेन' की उम्मीदें परोस रहा था। हम उस मीडिया के विश्लेषण को पढ़े जा रहे हैं। पढ़े जा रहे हैं फिर यहां के अखबारों में लिखे जा रहे हैं। अब सब पढ़कर लिखने लगे हैं कि मैं जिस ब्रिटेन में जागा हूं, वो वह ब्रिटेन नहीं जिसे मैं जानता था। जानने वालों ने समझा था कि नया जानने की ज़रूरत नहीं है। जिन दलों के बीच वे शटल कॉर्क बने हुए हैं उनकी करतूतों पर सवाल लगभग बंद हो गए हैं। राजनीतिक दल 'कार्टेल' का कॉकटेल पी रहे हैं। किसी को देखना चाहिए कि दुनिया भर में पंद्रह साल से अधिक उम्र के दलों की समाप्ति का समय आ गया है। इनमें कुछ बचा नहीं है। नया नेता और मज़बूत नेता के टटपुंजिया तर्क बेकार साबित हो रहे हैं। जानकार कुलीनों की निष्ठा लोगों के प्रति कम इन दलों के प्रति ज़्यादा हो गई है। वहां के लोगों को कुतर्की और अंध राष्ट्रवादी बताने की जगह अमीर और ग़रीब कहा जाना चाहिए। कॉरपोरेट का विस्तार ग़लत नहीं है लेकिन जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। ट्वीटरविहीन भारतीय किसान आत्महत्या कर रहा है और सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षक तक नहीं हैं। इसके बिना भी जीडीपी तरक़्क़ी कर रही है। चाटुकारिता चरम पर हैं। तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए लंदन वाले जानकार सदमे में हैं। उन्हीं के जैसे भाई बंधु भारत में सदमे में हैं। जैसे किसी के नईहर में चोरी हो गई हो। अरे भाई टीवी और अखबार के ज़रिये जब देश को जानेंगे तो इतना ही जानेंगे जो आप जानते रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार मैं क्यों तीन महीने का अवकाश चाहता हूं? मैं कई दिनों से दुनिया को समझने का प्रयास कर रहा था कि पुराने मॉडल का हवाई जहाज़ लेकर नेता यहां वहां उड़ रहे हैं, कुछ हो नहीं रहा। उल्टा कई तरह के आर्थिक और कूटनीतिक क्लब बन गए हैं। अब ठेके लेने की होड़ में देश भी इस तरह से शामिल होने लगे हैं कि मुझे आशंका है कि वे मुल्क के नाम में कंस्ट्रक्शन लिमिटेड न जोड़ लें। ज़्यादा नहीं बस इतना समझ आया है कि 2008 से इन नेताओं ने कितने तेल फूंक दिये, इसके चक्कर में टीवी के ज़रिये ख़ुद महान और विश्व नायक बन गए लेकिन आर्थिक हालात में सुधार नहीं हुआ। इसमें कमाल यह है कि कोई इस आर्थिक व्यवस्था पर सवालिया निशान नहीं लगाना चाहता। कोई नहीं बता रहा है कि आठ साल के प्रयास के बाद अर्थव्यवस्था के बाग़ों में बहार क्यों नहीं आई। बचपन में मैं जब कमज़ोर विद्यार्थी था तो बैग में सारी किताबें लेकर चलता था। मेरे पड़ोसी अंकल ने कहा कि कमज़ोर विद्यार्थी का बस्ता हमेशा भारी रहता है। वही हाल इन नेताओं का है। ख़ैर इस पत्र का मक़सद अवकाश मांगना है। अर्थव्यवस्था पर लेक्चर देकर नोबल पुरस्कार प्राप्त करना नहीं है। मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, सोनीपत घूमते घूमते बीस साल गुज़र गए तो हिन्दी के इस पत्रकार को ग्लोबल नागरिक होने की इच्छा जागृत हुई है। मैं अपने भीतर संचित उत्तर भारत के तमाम अनुभवों से आज़ाद होना चाहता हूं। कब तक हर चुनाव में एक ही बात जानूंगा और बताऊंगा। लगा कि नए नए विषयों और भूगोल की तरफ कदम बढ़ा कर देखें कि क्या वहां दुनिया कुछ अलग है। मुझे नई जानकारियां रोमांचित भी कर रही थीं। सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था कि ब्रेक्ज़िट हो गया। जिस तरह से भारतीय मीडिया का गुरुत्वाकर्षण बल दिल्ली में होता है उसी तरह से ब्रिट मीडिया का लंदन में होता है। भारत से किसी ने वहां जाकर ब्रिटेन के बदलते समाज को समझने का प्रयास नहीं किया। ब्रिटेन वालों ने भी यही किया, लोगों से बात करने के बजाए सर्वे सर्वे खेलने लगे। वहां के फटीचर मीडिया का जो हाल है वही यहां के मीडिया का है। भारत में सारे लोग इंडिपेंटेंड, गार्डियन, डेली मेल, टेलिग्राफ, न्यू यार्कर, आई टीवी, बीबीसी, सीएनएन के ज़रिये ब्रिटेन को दो दिन में समझ गए हैं और भारत के अखबारों में लेख लिखने लगे हैं। दो दिन से कोई भारतीय अखबार ही नहीं पढ़ रहा है ! जबकि ब्रेक्ज़िट होने से पहले किसी को पता नहीं था कि क्या होने वाला है। हो गया तो यहां वहां का मीडिया होने वालों के समर्थकों को ही गरिया रहा है। मीडिया किसके हित में नागरिकों के विरोध में खड़ा हो रहा है। बोलता क्यों नहीं कि चवालीस लाख रुपये का क़र्ज़ा लेकर कोई ग्रेजुएट बनेगा तो बाकी कई लोग ऐसे भी होंगे जो ग्रेजुएट नहीं बनेंगे। जब ग़रीबों को ऑक्सफोर्ड नहीं मिला तो वे क्यों कैंब्रीज की तरह बात करेंगे। बताओ न भाई कि वहां कम पढ़े लिखे लोग क्यों हैं। कल अगर मोदी फ़ेल हो जाएं तो इसमें मतदाता की क्या ग़लती है। उसका फ़ैसला कैसे ग़लत है। उसी तरह से ब्रिक्जिट को वोट करने वाले ग़रीब और कम पढ़े लिखे मतदाता कैसे दोषी है। लंदन का मीडिया कह रहा है कि लोग बहकावे में आ गए। अरे तो आप लोग क्या कर रहे थे? क्या आप राजनीतिक कॉरपोरेट और मीडिया के इस खेल के खिलाफ लिख रहे थे जिसके खिलाफ वहां के लोग होते जा रहे थे। मीडिया का भी चरित्र कार्टेल क्लब की तरह होता जा रहा है। दुनिया भर में जिस तरह से लिखने वाले सक्रिय हो गए हैं उसी तरह से सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले सक्रिय हो गए हैं। कभी कोई गार्डियन का लेख ठेल दे रहा है तो कभी वॉक्स डॉट कॉम और मीडियम का। हम लोग वहां की मीडिया पर अपने यहां की मीडिया जितना ही भरोसा करते हैं। माडिया आंखें बंद कर लिखता है और हम लोग आंखें बंद कर पढ़ लेते हैं। बताइये सर वहां के मीडिया को पता ही नहीं चला कि 'लीव' जीतने वाला है। वो 'रीमेन' की उम्मीदें परोस रहा था। हम उस मीडिया के विश्लेषण को पढ़े जा रहे हैं। पढ़े जा रहे हैं फिर यहां के अखबारों में लिखे जा रहे हैं। अब सब पढ़कर लिखने लगे हैं कि मैं जिस ब्रिटेन में जागा हूं, वो वह ब्रिटेन नहीं जिसे मैं जानता था। जानने वालों ने समझा था कि नया जानने की ज़रूरत नहीं है। जिन दलों के बीच वे शटल कॉर्क बने हुए हैं उनकी करतूतों पर सवाल लगभग बंद हो गए हैं। राजनीतिक दल 'कार्टेल' का कॉकटेल पी रहे हैं। किसी को देखना चाहिए कि दुनिया भर में पंद्रह साल से अधिक उम्र के दलों की समाप्ति का समय आ गया है। इनमें कुछ बचा नहीं है। नया नेता और मज़बूत नेता के टटपुंजिया तर्क बेकार साबित हो रहे हैं। जानकार कुलीनों की निष्ठा लोगों के प्रति कम इन दलों के प्रति ज़्यादा हो गई है। वहां के लोगों को कुतर्की और अंध राष्ट्रवादी बताने की जगह अमीर और ग़रीब कहा जाना चाहिए। कॉरपोरेट का विस्तार ग़लत नहीं है लेकिन जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। ट्वीटरविहीन भारतीय किसान आत्महत्या कर रहा है और सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षक तक नहीं हैं। इसके बिना भी जीडीपी तरक़्क़ी कर रही है। चाटुकारिता चरम पर हैं। तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए लंदन वाले जानकार सदमे में हैं। उन्हीं के जैसे भाई बंधु भारत में सदमे में हैं। जैसे किसी के नईहर में चोरी हो गई हो। अरे भाई टीवी और अखबार के ज़रिये जब देश को जानेंगे तो इतना ही जानेंगे जो आप जानते रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार ख़ैर इस पत्र का मक़सद अवकाश मांगना है। अर्थव्यवस्था पर लेक्चर देकर नोबल पुरस्कार प्राप्त करना नहीं है। मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, सोनीपत घूमते घूमते बीस साल गुज़र गए तो हिन्दी के इस पत्रकार को ग्लोबल नागरिक होने की इच्छा जागृत हुई है। मैं अपने भीतर संचित उत्तर भारत के तमाम अनुभवों से आज़ाद होना चाहता हूं। कब तक हर चुनाव में एक ही 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का क़र्ज़ा लेकर कोई ग्रेजुएट बनेगा तो बाकी कई लोग ऐसे भी होंगे जो ग्रेजुएट नहीं बनेंगे। जब ग़रीबों को ऑक्सफोर्ड नहीं मिला तो वे क्यों कैंब्रीज की तरह बात करेंगे। बताओ न भाई कि वहां कम पढ़े लिखे लोग क्यों हैं। कल अगर मोदी फ़ेल हो जाएं तो इसमें मतदाता की क्या ग़लती है। उसका फ़ैसला कैसे ग़लत है। उसी तरह से ब्रिक्जिट को वोट करने वाले ग़रीब और कम पढ़े लिखे मतदाता कैसे दोषी है। लंदन का मीडिया कह रहा है कि लोग बहकावे में आ गए। अरे तो आप लोग क्या कर रहे थे? क्या आप राजनीतिक कॉरपोरेट और मीडिया के इस खेल के खिलाफ लिख रहे थे जिसके खिलाफ वहां के लोग होते जा रहे थे। मीडिया का भी चरित्र कार्टेल क्लब की तरह होता जा रहा है। दुनिया भर में जिस तरह से लिखने वाले सक्रिय हो गए हैं उसी तरह से सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले सक्रिय हो गए हैं। कभी कोई गार्डियन का लेख ठेल दे रहा है तो कभी वॉक्स डॉट कॉम और मीडियम का। हम लोग वहां की मीडिया पर अपने यहां की मीडिया जितना ही भरोसा करते हैं। माडिया आंखें बंद कर लिखता है और हम लोग आंखें बंद कर पढ़ लेते हैं। बताइये सर वहां के मीडिया को पता ही नहीं चला कि 'लीव' जीतने वाला है। वो 'रीमेन' की उम्मीदें परोस रहा था। हम उस मीडिया के विश्लेषण को पढ़े जा रहे हैं। पढ़े जा रहे हैं फिर यहां के अखबारों में लिखे जा रहे हैं। अब सब पढ़कर लिखने लगे हैं कि मैं जिस ब्रिटेन में जागा हूं, वो वह ब्रिटेन नहीं जिसे मैं जानता था। जानने वालों ने समझा था कि नया जानने की ज़रूरत नहीं है। जिन दलों के बीच वे शटल कॉर्क बने हुए हैं उनकी करतूतों पर सवाल लगभग बंद हो गए हैं। राजनीतिक दल 'कार्टेल' का कॉकटेल पी रहे हैं। किसी को देखना चाहिए कि दुनिया भर में पंद्रह साल से अधिक उम्र के दलों की समाप्ति का समय आ गया है। इनमें कुछ बचा नहीं है। नया नेता और मज़बूत नेता के टटपुंजिया तर्क बेकार साबित हो रहे हैं। जानकार कुलीनों की निष्ठा लोगों के प्रति कम इन दलों के प्रति ज़्यादा हो गई है। वहां के लोगों को कुतर्की और अंध राष्ट्रवादी बताने की जगह अमीर और ग़रीब कहा जाना चाहिए। कॉरपोरेट का विस्तार ग़लत नहीं है लेकिन जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। 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रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार जिस तरह से भारतीय मीडिया का गुरुत्वाकर्षण बल दिल्ली में होता है उसी तरह से ब्रिट मीडिया का लंदन में होता है। भारत से किसी ने वहां जाकर ब्रिटेन के बदलते समाज को समझने का प्रयास नहीं किया। ब्रिटेन वालों ने भी यही किया, लोगों से बात करने के बजाए सर्वे सर्वे खेलने लगे। वहां के फटीचर मीडिया का जो हाल है वही यहां के मीडिया का है। भारत में सारे लोग इंडिपेंटेंड, गार्डियन, डेली मेल, टेलिग्राफ, न्यू यार्कर, आई टीवी, बीबीसी, सीएनएन के ज़रिये ब्रिटेन को दो दिन में समझ गए हैं और भारत के अखबारों में लेख लिखने लगे हैं। दो दिन से कोई भारतीय अखबार ही नहीं पढ़ रहा है ! जबकि ब्रेक्ज़िट होने से पहले किसी को पता नहीं था कि क्या होने वाला है। हो गया तो यहां वहां का मीडिया होने वालों के समर्थकों को ही गरिया रहा है। मीडिया किसके हित में नागरिकों के विरोध में खड़ा हो रहा है। बोलता क्यों नहीं कि चवालीस लाख रुपये का क़र्ज़ा लेकर कोई ग्रेजुएट बनेगा तो बाकी कई लोग ऐसे भी होंगे जो ग्रेजुएट नहीं बनेंगे। जब ग़रीबों को ऑक्सफोर्ड नहीं मिला तो वे क्यों कैंब्रीज की तरह बात करेंगे। बताओ न भाई कि वहां कम पढ़े लिखे लोग क्यों हैं। कल अगर मोदी फ़ेल हो जाएं तो इसमें मतदाता की क्या ग़लती है। उसका फ़ैसला कैसे ग़लत है। उसी तरह से ब्रिक्जिट को वोट करने वाले ग़रीब और कम पढ़े लिखे मतदाता कैसे दोषी है। लंदन का मीडिया कह रहा है कि लोग बहकावे में आ गए। अरे तो आप लोग क्या कर रहे थे? क्या आप राजनीतिक कॉरपोरेट और मीडिया के इस खेल के खिलाफ लिख रहे थे जिसके खिलाफ वहां के लोग होते जा रहे थे। मीडिया का भी चरित्र कार्टेल क्लब की तरह होता जा रहा है। दुनिया भर में जिस तरह से लिखने वाले सक्रिय हो गए हैं उसी तरह से सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले सक्रिय हो गए हैं। कभी कोई गार्डियन का लेख ठेल दे रहा है तो कभी वॉक्स डॉट कॉम और मीडियम का। हम लोग वहां की मीडिया पर अपने यहां की मीडिया जितना ही भरोसा करते हैं। माडिया आंखें बंद कर लिखता है और हम लोग आंखें बंद कर पढ़ लेते हैं। बताइये सर वहां के मीडिया को पता ही नहीं चला कि 'लीव' जीतने वाला है। वो 'रीमेन' की उम्मीदें परोस रहा था। हम उस मीडिया के विश्लेषण को पढ़े जा रहे हैं। पढ़े जा रहे हैं फिर यहां के अखबारों में लिखे जा रहे हैं। अब सब पढ़कर लिखने लगे हैं कि मैं जिस ब्रिटेन में जागा हूं, वो वह ब्रिटेन नहीं जिसे मैं जानता था। जानने वालों ने समझा था कि नया जानने की ज़रूरत नहीं है। जिन दलों के बीच वे शटल कॉर्क बने हुए हैं उनकी करतूतों पर सवाल लगभग बंद हो गए हैं। राजनीतिक दल 'कार्टेल' का कॉकटेल पी रहे हैं। किसी को देखना चाहिए कि दुनिया भर में पंद्रह साल से अधिक उम्र के दलों की समाप्ति का समय आ गया है। इनमें कुछ बचा नहीं है। नया नेता और मज़बूत नेता के टटपुंजिया तर्क बेकार साबित हो रहे हैं। जानकार कुलीनों की निष्ठा लोगों के प्रति कम इन दलों के प्रति ज़्यादा हो गई है। वहां के लोगों को कुतर्की और अंध राष्ट्रवादी बताने की जगह अमीर और ग़रीब कहा जाना चाहिए। कॉरपोरेट का विस्तार ग़लत नहीं है लेकिन जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। ट्वीटरविहीन भारतीय किसान आत्महत्या कर रहा है और सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षक तक नहीं हैं। इसके बिना भी जीडीपी तरक़्क़ी कर रही है। चाटुकारिता चरम पर हैं। तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए लंदन वाले जानकार सदमे में हैं। उन्हीं के जैसे भाई बंधु भारत में सदमे में हैं। जैसे किसी के नईहर में चोरी हो गई हो। अरे भाई टीवी और अखबार के ज़रिये जब देश को जानेंगे तो इतना ही जानेंगे जो आप जानते रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार जबकि ब्रेक्ज़िट होने से पहले किसी को पता नहीं था कि क्या होने वाला है। हो गया तो यहां वहां का मीडिया होने वालों के समर्थकों को ही गरिया रहा है। मीडिया किसके हित में नागरिकों के विरोध में खड़ा हो रहा है। बोलता क्यों नहीं कि चवालीस लाख रुपये का क़र्ज़ा लेकर कोई ग्रेजुएट बनेगा तो बाकी कई लोग ऐसे भी होंगे जो ग्रेजुएट नहीं बनेंगे। जब ग़रीबों को ऑक्सफोर्ड नहीं मिला तो वे क्यों कैंब्रीज की तरह बात करेंगे। बताओ न भाई कि वहां कम पढ़े लिखे लोग क्यों हैं। कल अगर मोदी फ़ेल हो जाएं तो इसमें मतदाता की क्या ग़लती है। उसका फ़ैसला कैसे ग़लत है। उसी तरह से ब्रिक्जिट को वोट करने वाले ग़रीब और कम पढ़े लिखे मतदाता कैसे दोषी है। लंदन का मीडिया कह रहा है कि लोग बहकावे में आ गए। अरे तो आप लोग क्या कर रहे थे? क्या आप राजनीतिक कॉरपोरेट और मीडिया के इस खेल के खिलाफ लिख रहे थे जिसके खिलाफ वहां के लोग होते जा रहे थे। मीडिया का भी चरित्र कार्टेल क्लब की तरह होता जा रहा है। दुनिया भर में जिस तरह से लिखने वाले सक्रिय हो गए हैं उसी तरह से सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले सक्रिय हो गए हैं। कभी कोई गार्डियन का लेख ठेल दे रहा है तो कभी वॉक्स डॉट कॉम और मीडियम का। हम लोग वहां की मीडिया पर अपने यहां की मीडिया जितना ही भरोसा करते हैं। माडिया आंखें बंद कर लिखता है और हम लोग आंखें बंद कर पढ़ लेते हैं। बताइये सर वहां के मीडिया को पता ही नहीं चला कि 'लीव' जीतने वाला है। वो 'रीमेन' की उम्मीदें परोस रहा था। हम उस मीडिया के विश्लेषण को पढ़े जा रहे हैं। पढ़े जा रहे हैं फिर यहां के अखबारों में लिखे जा रहे हैं। अब सब पढ़कर लिखने लगे हैं कि मैं जिस ब्रिटेन में जागा हूं, वो वह ब्रिटेन नहीं जिसे मैं जानता था। जानने वालों ने समझा था कि नया जानने की ज़रूरत नहीं है। जिन दलों के बीच वे शटल कॉर्क बने हुए हैं उनकी करतूतों पर सवाल लगभग बंद हो गए हैं। राजनीतिक दल 'कार्टेल' का कॉकटेल पी रहे हैं। किसी को देखना चाहिए कि दुनिया भर में पंद्रह साल से अधिक उम्र के दलों की समाप्ति का समय आ गया है। इनमें कुछ बचा नहीं है। नया नेता और मज़बूत नेता के टटपुंजिया तर्क बेकार साबित हो रहे हैं। जानकार कुलीनों की निष्ठा लोगों के प्रति कम इन दलों के प्रति ज़्यादा हो गई है। वहां के लोगों को कुतर्की और अंध राष्ट्रवादी बताने की जगह अमीर और ग़रीब कहा जाना चाहिए। कॉरपोरेट का विस्तार ग़लत नहीं है लेकिन जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। ट्वीटरविहीन भारतीय किसान आत्महत्या कर रहा है और सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षक तक नहीं हैं। इसके बिना भी जीडीपी तरक़्क़ी कर रही है। चाटुकारिता चरम पर हैं। तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए लंदन वाले जानकार सदमे में हैं। उन्हीं के जैसे भाई बंधु भारत में सदमे में हैं। जैसे किसी के नईहर में चोरी हो गई हो। अरे भाई टीवी और अखबार के ज़रिये जब देश को जानेंगे तो इतना ही जानेंगे जो आप जानते रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार दुनिया भर में जिस तरह से लिखने वाले सक्रिय हो गए हैं उसी तरह से सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले सक्रिय हो गए हैं। कभी कोई गार्डियन का लेख ठेल दे रहा है तो कभी वॉक्स डॉट कॉम और मीडियम का। हम लोग वहां की मीडिया पर अपने यहां की मीडिया जितना ही भरोसा करते हैं। माडिया आंखें बंद कर लिखता है और हम लोग आंखें बंद कर पढ़ लेते हैं। बताइये सर वहां के मीडिया को पता ही नहीं चला कि 'लीव' जीतने वाला है। वो 'रीमेन' की उम्मीदें परोस रहा था। हम उस मीडिया के विश्लेषण को पढ़े जा रहे हैं। पढ़े जा रहे हैं फिर यहां के अखबारों में लिखे जा रहे हैं। अब सब पढ़कर लिखने लगे हैं कि मैं जिस ब्रिटेन में जागा हूं, वो वह ब्रिटेन नहीं जिसे मैं जानता था। जानने वालों ने समझा था कि नया जानने की ज़रूरत नहीं है। जिन दलों के बीच वे शटल कॉर्क बने हुए हैं उनकी करतूतों पर सवाल लगभग बंद हो गए हैं। राजनीतिक दल 'कार्टेल' का कॉकटेल पी रहे हैं। किसी को देखना चाहिए कि दुनिया भर में पंद्रह साल से अधिक उम्र के दलों की समाप्ति का समय आ गया है। इनमें कुछ बचा नहीं है। नया नेता और मज़बूत नेता के टटपुंजिया तर्क बेकार साबित हो रहे हैं। जानकार कुलीनों की निष्ठा लोगों के प्रति कम इन दलों के प्रति ज़्यादा हो गई है। वहां के लोगों को कुतर्की और अंध राष्ट्रवादी बताने की जगह अमीर और ग़रीब कहा जाना चाहिए। कॉरपोरेट का विस्तार ग़लत नहीं है लेकिन जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। ट्वीटरविहीन भारतीय किसान आत्महत्या कर रहा है और सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षक तक नहीं हैं। इसके बिना भी जीडीपी तरक़्क़ी कर रही है। चाटुकारिता चरम पर हैं। तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए लंदन वाले जानकार सदमे में हैं। उन्हीं के जैसे भाई बंधु भारत में सदमे में हैं। जैसे किसी के नईहर में चोरी हो गई हो। अरे भाई टीवी और अखबार के ज़रिये जब देश को जानेंगे तो इतना ही जानेंगे जो आप जानते रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार अब सब पढ़कर लिखने लगे हैं कि मैं जिस ब्रिटेन में जागा हूं, वो वह ब्रिटेन नहीं जिसे मैं जानता था। जानने वालों ने समझा था कि नया जानने की ज़रूरत नहीं है। जिन दलों के बीच वे शटल कॉर्क बने हुए हैं उनकी करतूतों पर सवाल लगभग बंद हो गए हैं। राजनीतिक दल 'कार्टेल' का कॉकटेल पी रहे हैं। किसी को देखना चाहिए कि दुनिया भर में पंद्रह साल से अधिक उम्र के दलों की समाप्ति का समय आ गया है। इनमें कुछ बचा नहीं है। नया नेता और मज़बूत नेता के टटपुंजिया तर्क बेकार साबित हो रहे हैं। जानकार कुलीनों की निष्ठा लोगों के प्रति कम इन दलों के प्रति ज़्यादा हो गई है। वहां के लोगों को कुतर्की और अंध राष्ट्रवादी बताने की जगह अमीर और ग़रीब कहा जाना चाहिए। कॉरपोरेट का विस्तार ग़लत नहीं है लेकिन जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। ट्वीटरविहीन भारतीय किसान आत्महत्या कर रहा है और सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षक तक नहीं हैं। इसके बिना भी जीडीपी तरक़्क़ी कर रही है। चाटुकारिता चरम पर हैं। तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि 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जनता को बाज़ारवाद का पहाड़ा रटाकर इन्हें सब्सिडी देना कैसे ठीक है। भारत में लाखों करोड़ो का क़र्ज़ा कॉरपोरेट ने पचा लिया किसी को ग़ुस्सा तक नहीं आया। इसके बाद भी नेता लोग महान बने हुए हैं। ट्वीटरविहीन भारतीय किसान आत्महत्या कर रहा है और सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षक तक नहीं हैं। इसके बिना भी जीडीपी तरक़्क़ी कर रही है। चाटुकारिता चरम पर हैं। तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए लंदन वाले जानकार सदमे में हैं। उन्हीं के जैसे भाई बंधु भारत में सदमे में हैं। जैसे किसी के नईहर में चोरी हो गई हो। अरे भाई टीवी और अखबार के ज़रिये जब देश को जानेंगे तो इतना ही जानेंगे जो आप जानते रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार तो आप बताइये कि जो इस सिस्टम से बाहर है वो क्या करें। उसे सिस्टम ने क्या दिया कि खाने की मेज़ पर कांटा छुरी से ब्रेड और आम कतरे। क्या लंदन और भारत के जानकार इन लोगों की पीड़ा जानते हैं जो कपार धुन रहे हैं कि यह वो लंदन नहीं जिसे मैं जानता था। सोशल मीडिया का बोगस राष्ट्रवाद किसी मुल्क का आइना नहीं होता। एक्सपर्ट नहीं जानते होंगे उस लंदन को लेकिन लंदन का ग़रीब मज़दूर उनको जान गया होगा। बिना पेंशन और सस्ते अस्पताल के एक्सपर्ट जी सकते हैं, आम लोग कैसे जी लेंगे। भारत में सांसद विधायक, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को पेंशन है लेकिन कर्मचारी को नहीं। जिस दिन लोग समझेंगे उस दिन वे क्या करेंगे। एक्सपर्ट बता दें कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए लंदन वाले जानकार सदमे में हैं। उन्हीं के जैसे भाई बंधु भारत में सदमे में हैं। जैसे किसी के नईहर में चोरी हो गई हो। अरे भाई टीवी और अखबार के ज़रिये जब देश को जानेंगे तो इतना ही जानेंगे जो आप जानते रहे हैं। वहां के सोशल मीडिया में भी वही सब झलका जो मीडिया में छलका था। सब सर्कस के मौत के कुएं में बाइक गोगियां रहे थे। एक ही बात को कोई सर्वे में कह रहा था तो कोई डिबेट में ।टिप्पणियां यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर 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हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार यहां तक तो ठीक है। अब ब्रिक्जिट हो गया है तो इस पर हज़ारों की संख्या में विश्लेषण छप रहे हैं। इतने एंगल से लेख छपे हैं कि मैं पढ़ते पढ़ते परेशान हूं। घटना से बड़ी घटना इस पर छपे लेखों के भंडार हैं। लोगों को ही गरियाने का इतना बड़ा प्रोजेक्ट मैंने कभी नहीं सुना इसलिए मैं सारे लेख पढ़ना चाहता हूं। इसके लिए मुझे तीन महीने का वक्त चाहिए। भाई लोगों ने इतना लिख दिया है कि छठ पूजा तक को टाइम लग ही जाएगा। पर मैं तीन महीने में ब्रेक्ज़िट का डोज़ पूरा कर लूंगा। इसलिए आप मेरे 'लीव एप्लिकेशन' पर विचार करें और अवकाश प्रदान करें। आपका 'रीमेन' रवीश कुमार आपका 'रीमेन' रवीश कुमार
पैसा कमाने के लिए और अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए लोग शहर की ओर रुख करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शहर की जिंदगी आपको पैसा तो देती है लेकिन आपके स्वास्थ को खराब भी बहुत तेजी से करती है. कानपुर और दिल्ली जहां भारत के सबसे पॉल्यूटेड शहर हैं तो वहीं चेन्नई और अहमदाबाद में सबसे कम पॉल्यूशन है. सौजन्यः न्यूजफ्लिक्स
दिए गए शीर्षक के अनुरूप एक पाठ यह हो सकता है: बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ की कमाई को बेशक फिल्म के हिट होने का पैमाना माना जाने लगा हो लेकिन शाहिद कपूर इसे एक चलन से ज्यादा कुछ नहीं मानते। उनका कहना है कि फिल्मों को सिर्फ इसी आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए। शाहिद कहते हैं, ‘‘100 करोड़ क्लब एक सनक भर है जो कि पिछले तीन सालों से इंडस्ट्री में है। इस वर्ग में आने वाली फिल्में एक अलग शैली की होती हैं और उनमें वही अभिनेता काम करते हैं जो पिछले 20 सालों से इंडस्ट्री में हैं। देश के दिल तक पहुंचने में कुछ वक्त लगता है।’’ दबंग, बॉडीगार्ड और द डर्टी पिक्चर जैसी फिल्मों ने 100 करोड़ से भी ज्यादा कमाई करके एक ऐसा मील का पत्थर खड़ा कर दिया है, जिसे पार करना काफी मुश्किल है।टिप्पणियां शाहिद कहते हैं कि ये सभी बड़े दर्शक वर्ग की फिल्में थीं जिनमें आधारभूत समझ और बहुत सा मनोरंजन था। लेकिन अगर हम सिर्फ आंकड़ों के पीछे ही भागते रहे तो हम अभिनेताओं के तौर पर खुद को रोक लेंगे। ‘तेरी मेरी कहानी’ के प्रमोशन के दौरान शाहिद ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि फिल्म बनाने का अकेला मकसद सिर्फ यही नहीं हो सकता। हमे खुद को अलग-अलग स्थितियों में खोजना है।’’ शाहिद की पिछली फिल्म ‘मौसम’ बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा कमाल नहीं कर पाई थी। उनकी अगली फिल्म कुनाल कोहली के निर्देशन में बनने वाली ‘तेरी मेरी कहानी’ है। इसमें शाहिद के साथ प्रियंका दिखाई देंगी। इस फिल्म में शाहिद 1910, 1960 और 2012 के तीन अलग-अलग किरदार निभाते हुए नजर आएंगे। शाहिद कहते हैं, ‘‘100 करोड़ क्लब एक सनक भर है जो कि पिछले तीन सालों से इंडस्ट्री में है। इस वर्ग में आने वाली फिल्में एक अलग शैली की होती हैं और उनमें वही अभिनेता काम करते हैं जो पिछले 20 सालों से इंडस्ट्री में हैं। देश के दिल तक पहुंचने में कुछ वक्त लगता है।’’ दबंग, बॉडीगार्ड और द डर्टी पिक्चर जैसी फिल्मों ने 100 करोड़ से भी ज्यादा कमाई करके एक ऐसा मील का पत्थर खड़ा कर दिया है, जिसे पार करना काफी मुश्किल है।टिप्पणियां शाहिद कहते हैं कि ये सभी बड़े दर्शक वर्ग की फिल्में थीं जिनमें आधारभूत समझ और बहुत सा मनोरंजन था। लेकिन अगर हम सिर्फ आंकड़ों के पीछे ही भागते रहे तो हम अभिनेताओं के तौर पर खुद को रोक लेंगे। ‘तेरी मेरी कहानी’ के प्रमोशन के दौरान शाहिद ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि फिल्म बनाने का अकेला मकसद सिर्फ यही नहीं हो सकता। हमे खुद को अलग-अलग स्थितियों में खोजना है।’’ शाहिद की पिछली फिल्म ‘मौसम’ बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा कमाल नहीं कर पाई थी। उनकी अगली फिल्म कुनाल कोहली के निर्देशन में बनने वाली ‘तेरी मेरी कहानी’ है। इसमें शाहिद के साथ प्रियंका दिखाई देंगी। इस फिल्म में शाहिद 1910, 1960 और 2012 के तीन अलग-अलग किरदार निभाते हुए नजर आएंगे। शाहिद कहते हैं कि ये सभी बड़े दर्शक वर्ग की फिल्में थीं जिनमें आधारभूत समझ और बहुत सा मनोरंजन था। लेकिन अगर हम सिर्फ आंकड़ों के पीछे ही भागते रहे तो हम अभिनेताओं के तौर पर खुद को रोक लेंगे। ‘तेरी मेरी कहानी’ के प्रमोशन के दौरान शाहिद ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि फिल्म बनाने का अकेला मकसद सिर्फ यही नहीं हो सकता। हमे खुद को अलग-अलग स्थितियों में खोजना है।’’ शाहिद की पिछली फिल्म ‘मौसम’ बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा कमाल नहीं कर पाई थी। उनकी अगली फिल्म कुनाल कोहली के निर्देशन में बनने वाली ‘तेरी मेरी कहानी’ है। इसमें शाहिद के साथ प्रियंका दिखाई देंगी। इस फिल्म में शाहिद 1910, 1960 और 2012 के तीन अलग-अलग किरदार निभाते हुए नजर आएंगे। ‘तेरी मेरी कहानी’ के प्रमोशन के दौरान शाहिद ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि फिल्म बनाने का अकेला मकसद सिर्फ यही नहीं हो सकता। हमे खुद को अलग-अलग स्थितियों में खोजना है।’’ शाहिद की पिछली फिल्म ‘मौसम’ बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा कमाल नहीं कर पाई थी। उनकी अगली फिल्म कुनाल कोहली के निर्देशन में बनने वाली ‘तेरी मेरी कहानी’ है। इसमें शाहिद के साथ प्रियंका दिखाई देंगी। इस फिल्म में शाहिद 1910, 1960 और 2012 के तीन अलग-अलग किरदार निभाते हुए नजर आएंगे।
अम्पारा (, ) श्रीलंका के अम्पारा जिले का प्रमुख कस्बा है। यह पूर्वी प्रान्त, श्रीलंका में स्थित है, जिसकी दूरी कोलम्बो से 360 किमी की है। इतिहास ब्रिटिश उपनिवेश के समय यह स्थान शिकारियों का विश्राम स्थल था। १९४९ में पूर्व प्रधानमन्त्री डी॰ एस॰ सेनानायके द्वारा चलायी गयी गलोया योजना के तहत इस स्थान का कस्बें के रूप में विकास हुआ। प्रारम्भ में यह इन्गिनियागला बाँध को बनाने वाले मजदूरों का निवास स्थान था। बाद में यह गलोया घाटी का मुख्य प्रशासनिक कस्बा बन गया। सन्दर्भ श्रीलंका के शहर
यह लेख है: मुस्लिम नेताओं के एक शिष्टमंडल ने मंगलवार को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की और जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने में पूर्ण सहयोग की पेशकश की. करीब 30 मिनट तक चली इस बैठक के दौरान शिष्टमंडल में शामिल 20 मुस्लिम नेताओं ने गृहमंत्री को बताया कि वे कश्मीर घाटी में वर्तमान स्थिति से चिंतित हैं और शांति लाने में मदद करना चाहते हैं.टिप्पणियां सूत्रों ने कहा कि मुस्लिम नेताओं ने गृहमंत्री को बताया कि वे जम्मू एवं कश्मीर जाकर सभी वर्गों के लोगों से बात करने को तैयार हैं, यदि इससे शांति लाने में मदद मिलती है. (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) करीब 30 मिनट तक चली इस बैठक के दौरान शिष्टमंडल में शामिल 20 मुस्लिम नेताओं ने गृहमंत्री को बताया कि वे कश्मीर घाटी में वर्तमान स्थिति से चिंतित हैं और शांति लाने में मदद करना चाहते हैं.टिप्पणियां सूत्रों ने कहा कि मुस्लिम नेताओं ने गृहमंत्री को बताया कि वे जम्मू एवं कश्मीर जाकर सभी वर्गों के लोगों से बात करने को तैयार हैं, यदि इससे शांति लाने में मदद मिलती है. (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) सूत्रों ने कहा कि मुस्लिम नेताओं ने गृहमंत्री को बताया कि वे जम्मू एवं कश्मीर जाकर सभी वर्गों के लोगों से बात करने को तैयार हैं, यदि इससे शांति लाने में मदद मिलती है. (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
एक्स-रे विकिरण आयनकारी विकिरण है, इसलिए इसका जोखिम संभावित रूप से हानिकारक है। मोबाइल सी-आर्म की तुलना में, जिसका उपयोग शास्त्रीय रूप से सर्जरी में किया जाता है, सीटी स्कैनर और फिक्स्ड सी-आर्म्स बहुत अधिक ऊर्जा स्तर पर काम करते हैं, जो उच्च खुराक को प्रेरित करता है। इसलिए, रोगी और चिकित्सा कर्मचारियों दोनों के लिए हाइब्रिड या दोनों में लागू विकिरण खुराक की निगरानी करना बहुत महत्वपूर्ण है। ओआर में लोगों को बिखरने वाले विकिरण से बचाने के लिए कुछ सरल उपाय हैं, इस प्रकार उनकी खुराक कम हो जाती है। जागरूकता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, अन्यथा उपलब्ध सुरक्षा उपकरण उपेक्षित हो सकते हैं। इन उपकरणों में ट्रंक के लिए एक सुरक्षात्मक एप्रन, गर्दन के चारों ओर एक सुरक्षात्मक थायरॉयड ढाल और सुरक्षात्मक चश्मे के रूप में सुरक्षात्मक कपड़े शामिल हैं। बाद वाले को छत से निलंबित लीड ग्लास पैनल द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है। निचले शरीर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए टेबल के किनारे अतिरिक्त सीसे के पर्दे लगाए जा सकते हैं। गर्भवती स्टाफ सदस्यों पर और भी अधिक प्रतिबंधात्मक नियम लागू होते हैं। स्टाफ और रोगी दोनों के लिए सुरक्षा का एक बहुत प्रभावी उपाय निश्चित रूप से कम विकिरण लागू करना है। विकिरण खुराक और छवि गुणवत्ता के बीच हमेशा एक समझौता होता है। अधिक एक्स-रे खुराक से तस्वीर साफ़ हो जाती है। आधुनिक सॉफ्टवेयर तकनीक पोस्ट-प्रोसेसिंग के दौरान छवि गुणवत्ता में सुधार कर सकती है, जैसे कि कम खुराक के साथ समान छवि गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार छवि गुणवत्ता का वर्णन कंट्रास्ट, शोर, रिज़ॉल्यूशन और कलाकृतियों द्वारा किया जाता है। सामान्य तौर पर, ALARA सिद्धांत (जितना कम संभव हो) का पालन किया जाना चाहिए। खुराक यथासंभव कम होनी चाहिए, लेकिन छवि गुणवत्ता को केवल उस स्तर तक कम किया जा सकता है कि परीक्षा का नैदानिक ​​लाभ अभी भी रोगी को संभावित नुकसान से अधिक है।
महाराष्ट्र में सियास घमासान जारी सभी शिवसेना विधायक मातोश्री पहुंचे महाराष्ट्र में शिवसेना के दिग्गज नेता संजय राउत ने सरकार गठन पर जारी खींचतान के बीच कहा कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है. उन्हें सरकार बनाने के लिए अवसर देना चाहिए. सभी शिवसेना विधायक मातोश्री पहुंचे हैं. आगे की रणनीति पर उद्धव ठाकरे चर्चा करेंगे. संजय राउत ने कहा कि मैं बयानबाजी नहीं करता, मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा, मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है. इससे पहले मंगलवार को शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा था कि महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री शिवसेना से ही होगा.  उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि पार्टी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में सच्चाई, न्याय और अधिकारों के लिए लड़ रही है.  राउत ने आत्मविश्वास के साथ कहा था, 'राज्य के ऊपर लगा ग्रहण जल्द हट जाएगा और नए मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह जल्द होगा.' राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) अध्यक्ष शरद पवार से मिलने के बारे में पूछने पर राउत ने कहा था, 'हां, मैंने उनसे मुलाकात की और बात की.  क्या यह अपराध है? वह एक सम्माननीय राष्ट्रीय नेता हैं, उनसे किसी मुद्दे पर चर्चा करने में क्या गलत है? उनसे बात करनी भी चाहिए. हम जानते हैं कि सभी उनके संपर्क में हैं.' बता दें कि बीजेपी और शिवसेना ने एक साथ महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा था. 24 अक्टूबर को आए नतीजों में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका और बीजेपी 105 सीटों पर सिमट गई, जबकि शिवसेना 56 सीटें जीतने में कामयाब रही. दोनों दलों के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त विधायक हैं, लेकिन दोनों दलों में आपसी सहमति नहीं बन पा रही है. मोहन भागवत से मिलेंगे गडकरी महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर सस्पेंस पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात करेंगे. यह मुलाकात नागपुर में संघ मुख्यालय पर होगी.
किसी मुक़ाबले में पिरिक जीत (अंग्रेजी: Pyrrhic victory, पिरिक विक्ट्री) ऐसी जीत को कहा जाता है जिसको पाने के लिए विजेता को इतनी भारी हानि उठानी पड़े कि वास्तव में यह असली जीत ही न हो। यह आधुनिक भाषा में एक सूत्रवाक्य बन चुका है जिसका अर्थ है "ऐसी जीत जो ली तो जा सकती है, लेकिन अपने ही भले के लिए लेनी नहीं चाहिए।" शब्दोत्पत्ति माना जाता है कि "पिरिक जीत" का नाम प्राचीन यूनान और अल्बानिया के सीमावर्ती इलाके में स्थित इपायरस क्षेत्र के राजा पिरस (Pyrrhus, यूनानी: Πύρρος) पर रखा गया। इनकी रोमन साम्राज्य की फ़ौजों से सन् २८० ईसापूर्व में हेराक्लेया में और आस्क्युलम में २७९ ईसापूर्व में दो युद्ध हुए जिनमें यह विजयी रहे। हालांकि दोनों युद्धों में पिरिक सेना की मृतों से अधिक रोमन सेना के मृत थे, फिर भी रोमन सेना पिरस की सेना से कई गुना बड़ी थी और इन हारों के बावजूद उन्हें अंत में पराजित करने में सक्षम थी। कहा जाता है कि जब किसी ने राजा पिरस को उनकी जीत पर मुबारक दी तो उन्होंने कहा कि "अगर हम रोमनों से एक और युद्ध जीत गए, तो हम पूरी तरह बरबाद हो जाएँगे।" प्रयोग का उदाहरण कई आधुनिक युद्धों के सन्दर्भ में इस सूत्रवाक्य का प्रयोग हुआ है। मिसाल के लिए भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश द्वारा आरम्भ किये गए सन् २००३ के इराक़ युद्ध में औपचारिक रूप से तो अमेरिका की जीत हुई क्योंकि उनके मुख्य प्रतिद्वंदी, इराक़ के भूतपूर्व शासक सद्दाम हुसैन, की सेनाएँ हार गई और स्वयं सद्दाम हुसैन को फांसी मिली। फिर भी युद्ध में औपचारिक जीत के बाद अमेरिका की सेनाएँ इराक़ में गृह युद्ध और विद्रोहों में फँस गई और सन् २०११ तक ४,५०० से भी अधिक अमेरिकी सैनिक अपनी जानें खो चुके थे। इस स्थिति को राष्ट्रपति बुश की नीतियों के आलोचकों ने "पिरिक जीत" बुलाया है। इन्हें भी देखें सूत्रवाक्य प्राचीन यूनान रोमन साम्राज्य सन्दर्भ सूत्रवाक्य सैन्य पारिभाषिकी हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना सैन्य रणनीति fi:Pyrrhos#Pyrrhoksen voitto
टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों की तैयार जल्द से जल्द शुरू करने की बात पर जोर देते हुए खेल मंत्री विजय गोयल ने कहा है कि सरकार तमाम खेलों के लिए विदेशी कोच नियुक्त करने पर फैसला लेगी. गोयल ने हालांकि कहा है कि सरकार इस संबंध में राष्ट्रीय महासंघों से चर्चा करेगी. निशानेबाज गगन नारंग, पूर्व हॉकी खिलाड़ी विरेन रसकिन्हा, जगबीर सिंह और भारतीय खेल प्रधिकरण (साई) के महानिदेशक के साथ बैठक करने के बाद गोयल ने कहा कि राष्ट्रीय खेल महासंघ को इसके लिए जवाबदेह बनाया जाएगा और अंतिम फैसला लेने से पहले उनसे बात की जाएगी. टोक्यो ओलंपिक की तैयारियां अभी से गोयल ने कहा, 'तैयारियां अभी से शुरू की जानी चाहिए इसलिए हमने यह बैठक बुलाई है. हमें कई सुझाव मिले हैं. अब एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी जिसमें देश में मौजूद संरचना का भी जिक्र होगा.' खेल मंत्री ने कहा, 'भारतीय कोचों को 50,000 से दो लाख रुपये तक दिए जाएंगे. महासंघ विदेशी कोच नियुक्त कर सकेंगे लेकिन इसके लिए उन्हें जरूरत पड़ने पर इश्तिहार देना होगा.' विदेशी कोचों की नियुक्ति के लिए इश्तिहार दिया जाएगा गोयल ने कहा, 'सरकार ने पहले ही विदेशी कोचों की नियुक्ति पर इश्तिहार देने का फैसला किया था. साथ ही यह बात भी सुनिश्चित की जाए कि विदेशी कोच भारतीय कोचों को भी प्रशीक्षित करें. साई के साथ-साथ भारत में मौजूद सभी खेल सुविधाओं का सदुपयोग भी किया जाए.' गोयल ने बताया कि उन्होंने वित्त मंत्रालय से दुगने खेल बजट की मांग की है. खेल विज्ञान को बढ़ाने के लिए मजबूत कदम उठाए जाएंगे उन्होंने कहा, 'हम एनएसएफ द्वारा कराई जा रहे टूर्नामेंट का समर्थन करेंगे. हमने एनएसएफ को पत्र लिखकर उनकी चयन प्रक्रिया और टूर्नामेंट के आयोजन कराने की जानकारी मांगी है.' गोयल ने कहा, 'देश में खेल विज्ञान को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए जाएंगे. जिसमें खेल विज्ञान केंद्र और साई में नए खेल विज्ञान उपकरण खरीदना भी शामिल है. देश के कुछ विश्वविद्यालयों का चुनाव किया जाएगा जहां खेल विज्ञान विभाग खोला जा सके.'
ये इश्क हाय एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जो स्टार वन पर प्रसारित होती है। यह शो 1 नवंबर 2010 को प्रीमियर हुआ और 6 अगस्त 2011 तक चला।इसका कुल 226 एपिसोड्स है। कथानक ये इश्क है छोटे शहर आगरा में स्थापित है और बचपन के दोस्त मंजरी और अक्षय के जीवन का पता लगाता है। मंजरी चतुर्वेदी एक लापरवाह किशोरी है जो अपने दोस्तों के साथ घूमना पसंद करती है। अक्षय एक कैफे चलाते हैं और लंबे समय से चुपके से मजारी के प्यार में हैं। पूजा, मंजरी की बड़ी बहन, एक गलतफहमी के बाद अक्षय के लिए गिर जाती है, जिससे उसे विश्वास हो जाता है कि वह उसकी भावनाओं को वापस कर देता है। मंजरी को रणबीर से प्यार हो जाता है। मजारी के कहने पर अक्षय ने पूजा से सगाई कर ली। उसके लापरवाह रवैये से तंग आकर, मंजरी के माता-पिता उसकी शादी करना चाहते हैं, इसलिए वह घर बसा लेती है लेकिन मंजरी रणबीर की सलाह पर मुंबई भागने का फैसला करती है। अक्षय उसके साथ जाने की जिद करता है और मुंबई पहुंचने पर उन्हें पता चलता है कि रणबीर वास्तव में संजय है और वह नकली पहचान का उपयोग करके लड़कियों को धोखा देता है। अक्षय और मंजरी बाद में मुंबई में रहने और अपने लिए एक नाम बनाने का फैसला करते हैं। मंजरी को अक्षय से प्यार हो जाता है लेकिन वह उससे दूर रहता है क्योंकि वह पूजा का मंगेतर है। वापस आगरा में, पूजा को मंजरी के लिए अक्षय की भावनाओं के बारे में पता चलता है। वह मुंबई आती है और उन्हें अलग करने की योजना बनाती है लेकिन बाद में उनके प्यार और जाने का एहसास होता है। उनकी चुनौतियों के बावजूद, मंजरी और अक्षय आखिरकार एकजुट हो जाते हैं। कलाकार मंजरी के रूप में सृष्टि रोडे पूजा के रूप में नीतू नवल सिंह, मंजरी की बड़ी बहन रौनक आहूजा अक्षय शुक्ला के रूप में, मंजरी के बचपन के दोस्त जो उससे प्यार करते रहे हैं मंजरी की मां के रूप में जया ओझा पंकज बेरी मंजरी के पिता के रूप में राहुल अरोड़ा संजय शर्मा के रूप में आनंद सूर्यवंशी के रूप में रणबीर मल्होत्रा अक्षय के भाई अजय शुक्ला के रूप में यशदीप नैन संदर्भ बाहरी संबंध http://www.starone.in/show.aspx?sid=75 http://uk.startv.com/?q=synopsis/yeh-ishq-haaye http://www.starone.in/news/840/latest-offerings-from-star-one.aspx स्टार वन के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
बिहार के उपमुख्‍यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी 'हुंकार रैली' में शामिल होने के लिए बिहार के दौरे पर नहीं आ रहे हैं. अटकलों पर लगा विराम सुशील मोदी ने कहा कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्‍व यह नहीं चाहता है कि नरेंद्र मोदी इस रैली में शिरकत करें. सुशील मोदी ने एक इंटरव्यू के दौरान ये बातें कहीं. सुशील मोदी के ताजा बयान के बाद नरेंद्र मोदी के बिहार आने या न आने से जुड़ी तमाम अटकलों पर विराम लग गया है. सीपी ठाकुर ने कहा था, आएंगे मोदी गौरतलब है कि हाल ही में बिहार प्रदेश बीजेपी अध्‍यक्ष डॉ. सी. पी. ठाकुर ने कहा था कि नरेंद्र मोदी हुंकार रैली में शामिल होंगे. इसके बाद से सियासत में अचानक उबाल आ गया था.
शाहदरा निवासी 12वीं पास महिला थी गैंग की सरगना सरगना समेत तीन गिरफ्तार, फर्जी परिचय पत्र बरामद उत्तर-पश्चिमी दिल्ली जिले की पुलिस ने मियां बीवी द्वारा चलाए जा रहे फर्जी क्राइम ब्रांच का भंडाफोड़ किया है. दोनों पति-पत्नी क्राइम ब्रांच और खुफिया विभाग का अधिकारी बनकर लोगों से अवैध उगाही में जुटे हुए थे. पुलिस ने दोनों पति-पत्नी समेत तीन को गिरफ्तार कर लिया है. गिरफ्तार लोगों में एक पुरुष और दो महिलाएं शामिल हैं. पुलिस उपायुक्त विजयंता आर्या ने बताया कि गिरफ्तार 33 वर्षीय दीपक कुमार और ज्योति रिश्ते में पति-पत्नी हैं, जबकि तीसरी 43 वर्षीय पूनम सेठी है. दीपक और ज्योति दिल्ली से सटे गाजियाबाद में रहते हैं, जबकि पूनम मंडोली रोड, शाहदरा की निवासी है. दीपक पहले टूर और ट्रैवल तथा प्रापर्टी डीलिंग का काम करता था. आर्या के अनुसार कुछ समय पहले दीपक सोशल मीडिया के जरिए पूनम सेठी के संपर्क में आया. दोनों ने मिलकर फर्जी क्राइम ब्रांच और अपना फर्जी इंटेलिजेंस ब्यूरो बना डाला. इसके बाद दोनों ने मिलकर दीपक की पत्नी ज्योति को भी ठगी के इस काले कारोबार में जोड़ लिया. उन्होंने कहा कि गैंग की मास्टरमाइंड 12वीं तक पढ़ी पूनम ही है. पुलिस के अनुसार, इस फर्जी क्राइम ब्रांच के खिलाफ 15 सितंबर को उस्मानपुर निवासी एक शख्स ने थाना सुभाष प्लेस में शिकायत दी थी. शिकायत में कहा गया था कि कुछ लोग क्राइम ब्रांच का अधिकारी बनकर उससे पांच लाख रुपये वसूलने की कोशिश में लगे हैं. इसी शिकायत के आधार पर सहायक पुलिस आयुक्त संजीव कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. जब फर्जी क्राइम ब्रांच के ब्लैकमेलर महिला-पुरुष अधिकारियों का सामना असली पुलिस से हुआ तो ठगी के इस खेल का भांडा फूट गया. डीसीपी आर्या ने बताया कि गिरफ्तार फर्जी क्राइम ब्रांच गैंग के कब्जे से पुलिस टीम को चार मोबाइल फोन, दोस्त पुलिस का एक फर्जी परिचय-पत्र और नेशनल क्राइम इंटेलिजेंस ब्यूरो का एक फर्जी परिचय-पत्र मिला है. (आईएएनएस के इनपुट के साथ)
८ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३१२वॉ (लीप वर्ष मे ३१३ वॉ) दिन है। साल मे अभी और ५३ दिन बाकी है। प्रमुख घटनाएँ 1895 बिजली के साथ प्रयोग करते समय विल्हेम रान्टगन ने एक्स रे की खोज की। 1917 वाल्दमीर लेनिन, लियो ट्रोटस्की और जोसेफ स्टालिन को 1917 की अक्टूबर क्रांति के बाद पीपुल्स कमीसार अधिकृत किया। 1923- बीयर हॉल क्रान्ति। म्यूनिख में एडोल्फ हिटलर ने जर्मन सरकार को अपदस्थ करने की नाजियों की एक कोशिश का नेतृत्व किया। सेनाओं ने नाजियों के इस प्रयास के असफल कर दिया। 1933 मंदी के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलीन रूजवेल्ट ने 40 लाख लोगों का रोजगार देने के लिए सिविल वर्क्स एडमिनिस्ट्रेशन का गठन किया। 1960 जॉन एफ केनेडी संघर्षपूर्ण मुकाबले में रिचर्ड निकसन को बहुत कम अंतर से हरा कर अमेरिका के 35 वें राष्ट्रपति बने। 2002 इराक में निशाीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रस्ताव पारित किया। जिसमें तत्कालीन इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को कहा गया कि वे हथियार खत्म करें या मुश्किलों का सामना करें। 2003 इराक के साथ युद्ध में दस हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिकों ने इराक के शहर फालुजा की घेराबंदी की। 2016 भारत में इस दिन प्रधानमंत्री श्री नरेेेन्द्र मोदी द्वारा 500 और 1000 के नोटों की नोटबन्दी की गई । जन्म 1922- क्रिस्चियान बर्नार्ड, दक्षिण अफ्रीकी सर्जन (मृ. 2001) निधन बाहरी कडियाँ बीबीसी पे यह दिन नवंबर
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर छिड़े सियासी संग्राम के बीच राजनीतिक विश्लेषक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि आज हम हिंदू-मुस्लिम लड़ रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि देश के विभाजन के लिए जिन्ना से ज्यादा अंग्रेज दोषी हैं. आजतक की ओर से आयोजित पंचायत 'जिन्ना एक विलेन पर जंग क्यों' के पांचवें सत्र 'हिंदुस्तान में किसको चाहिए जिन्ना' पर बहस के दौरान कुलकर्णी ने कहा कि हमारी सभी की राय इस बात पर एक है कि भारत का विभाजन नहीं होना चाहिए था और खून-खराबा नहीं होना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ. उन्होंने कहा कि देश के विभाजन के लिए जिन्ना से ज्यादा अंग्रेज दोषी हैं. अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाई थी. उन्होंने कहा कि आजादी तो जून 1948 में मिलने वाली थी, लेकिन वायसराय माउंटबेटन ने इसको अगस्त 1987 तक ही खींचा, जिसके कारण डर का माहौल पैदा हुआ. इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि जब साल 1979 में माउंटबेटन की मौत हुई, तो भारत सरकार ने सात दिन का शोक घोषित किया था और राष्ट्र ध्वज आधा झुकाया था. जबकि हकीकत यह है कि जिन्ना से ज्यादा ये अंग्रेज दोषी हैं, लेकिन आज हम हिंदू-मुसलमान में लड़ रहे हैं. लेखक सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि साल 2005 में लालकृष्ण आडवाणी के साथ मैं भी पाकिस्तान गया था. तब जिन्ना की मजार पर आडवाणी ने कहा कि साल 1930 तक हिंदू-मुसलिम एकता के जिन्ना हिमायती थे. दूसरी बात आडवाणी ने यह कही कि 11 अगस्त 1947 को जिन्ना ने पाकिस्तान की संविधान समिति में अपने भाषण में कहा कि पाकिस्तान मजहबी मुल्क नहीं होगा. इस्लामी मुल्क नहीं होगा. यहां हिन्दू-मुसलमान सब मिलकर बराबर रहेंगे. कुलकर्णी ने कहा, ''आडवाणी ने यह भी कहा था कि यह सेक्युलरिज्म का एक मॉडल है, तो उस समय आडवाणी ने सच्चाई ही बताई थी. जिन्ना ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत और पाकिस्तान के संबंध अमेरिका और कनाडा जैसे होने चाहिए. जिन्ना ने अपने पहले हाई कमिश्नर श्रीप्रकाशा से कहा कि जाकर जवाहर लाल नेहरू को कहिए कि मैं मुंबई वापस आकर रहना चाहता हूं. मैंने वहां जो घर बनवाया है, वहां रहना है.''
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शांति बहाली के मकसद से कश्मीर गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के लौटने के बाद कश्मीर घाटी के ताजा हालात पर रिपोर्ट दी. उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ के कश्मीर पर नई रणनीति को लेकर चर्चा की. पीएम नरेंद्र मोदी भी सोमवार रात ही चीन में जी-20 सम्मेलन में शिरकत कर लौटे हैं. सूत्रों की मानें तो पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बीच कश्मीर में हिंसा से बिगड़ते हालात सामान्य करने को लेकर भविष्य में सरकार की आगे की क्या क्या रणनीति हो इस पर चर्चा हुई है. हालांकि सरकार ने अलगाववादियों पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर जाने से पहले ही साफ कर दिया था कि केंद्र सरकार अलगाववादियों के सामने नरम नहीं पड़ने वाली नहीं हैं. 8 जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की सुरक्षा बलों के हाथों मौत के बाद से हुर्रियत नेताओं पर घाटी में माहौल बिगाड़ने के आरोप लगे हैं. सरकार का मानना है कि हुर्रियत नेताओं से तब तक नहीं चाहिए, जब तक वो घाटी में हालात सामान्य करने में सरकार की मदद नहीं करते. बुधवार को सवर्दलीय प्रतिनिधिमंडल के नेताओं की बैठक सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने पीएम को ये भी बताया कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के कुछ नेताओं ने जरूर हुर्रियत नेताओं से जा कर मिलने की कोशिश की थी लेकिन हुर्रियत नेताओं ने मिलने से इनकार कर दिया था. राजनाथ सिंह ने पीएम को ये भी बताया की बुधवार को एक बार फिर से सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की बैठक होगी जिसमे कश्मीर के संगठनों और ग्रुप से मिले सुझावों पर चर्चा की जाएगी और प्रतिनिधिमंडल के नेताओं से कश्मीर के हालात पर सरकार को क्या-क्या कदम उठाने चाहिए, इस पर राय ली जाएगी. हुर्रियत पर बरसे राजनाथ राजनाथ सिंह ने सोमवार को बताया था कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के कुछ सांसद निजी तौर पर अलगाववादियों से मुलाकात करने गए थे. लेकिन उनके साथ अलगाववादियों का बर्ताव कश्मीरियत और इंसानियत वाला नहीं था. उन्होंने कहा, 'जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत के दायरे में कश्मीर में शांति और सामान्य स्थिति लाने के इच्छुक लोगों के लिए न केवल हमारे दरवाजे, बल्कि खिड़की और रोशनदान भी खुले हुए हैं.' घाटी में दो महीने में मारे गए 74 लोग दो महीने से घाटी में कायम अशांति के दौरान कम से कम 74 लोग मारे जा चुके हैं और करीब 12,00 लोग घायल हुए हैं. घाटी में इस तरह की हिंसा इससे पहले 2010 में हुई थी. तब 120 लोग पुलिस और अर्धसैनिक बलों की गोलियों से मारे गए थे.